सर्व शक्तियों का भंडार आपका शरीर।
विचारों को एकचित कर नाममय हो जाओ : हजूर कंवर साहेब

भिवानी जयवीर फोगाट,

।।29.11.2020।।इंसान जो चाहता है वो परमात्मा को मंजूर हो ये आवश्यक नहीं। इंसान को मालिक की रजा और हुक्म में रहना चाहिए क्योंकि इंसान की चतुराई कभी नहीं चलती, चलती केवल परमात्मा की है। इंसान की चेती और चाही नहीं होती होता वही है जो परमात्मा की चाहना है।       

 यह सत्संग वाणी परमसन्त सतगुरु कँवर साहेब जी महाराज ने भिवानी के रोहतक रोड पर स्थित राधास्वामी आश्रम में फ़रमाई। गुरु महाराज गुरु नानक जयंती के अवसर पर सत्संग फरमा रहे थे। हुजूर महाराज जी ने कहा कि यह बड़ा मुबारक दिन है क्योंकि इस दिन की महत्ता तीन तरीको से है। गुरु नानक जयंती, गुरु पूर्णिमा और गंगा स्नान। हुजूर कँवर साहेब ने कहा कि नानक साहब बहुत आला सन्त थे जिन्होंने सच्चे सौदे की असल महता को समझा था। नानक साहब के पिता ने नानक साहब को छोटी उम्र में रुपयों का थैला देते हुए कहा कि इनसे व्यापार करो और व्यापार ऐसा करना जिसमे सच्चा सौदा हो। नानक साहब ने उन रुपयों को परोपकार में लगा दिया। पिता ने पूछा कि इतने रुपये कहां बर्बाद कर दिए तो नानक साहब ने कहा कि आपने ही कहा था कि सौदा सच्चा ही करना सो मैंने जरूरतमंदों की मदद करके सच्चा सौदा ही किया है। 

  हुजूर महाराज जी ने कहा कि परमात्मा को कभी मत भूलो क्योंकि क्या पता कब कैसा वक़्त आ जाये। उन्होंने कहा कि किसे पता था कि इन परिस्थितियों से भी इंसान को गुजरना पड़ेगा। एक पल में ही पूरे विश्व की योजनाएं धरी की धरी रह गई। कोई अपने ज्ञान से कोई बुद्धि से अपने आपको सर्वेसर्वा मानने लगा था। ये परमात्मा का इंसान को सन्देश है कि बुरे कर्मो का नतीजा बुरा ही होता है। इंसान पीड़ा दुख की घड़ी में ही परमात्मा को याद करता है यदि उसी परमात्मा को हम सुख में भी हाजिर नाजिर मान ले तो दुख आये ही ना। हुजूर महाराज जी ने कहा कि इस विकट घड़ी में सत्संग से जुड़े जीवो ने जो अनुशाशन दिखाया, जो धर्य दिखाया वो देखने काबिल था। इस तरह की विकट घड़ी में आपका समर्पण ये दिखाता है कि सत्संग सतनाम और सतगुरु को आपने कितना समझा है।

  उन्होंने कहा कि कलयुग में नाम से बढ़ कर कोई चीज नहीं। कलयुग में केवल नाम का ही आधार है जिसको सुमर कर आप पार उतर सकते हो। विपरीत परिस्थितियों में यदि कोई सच्चा सहारा हैै, तो वह नाम का सहारा है। जो समझदार है वो जानते हैं कि नाम से बढ़ कर आपका कोई मीत नहीं है। नाम के दीवाने हो जाओ क्योंकि नाम ही है जो आपको परमात्मा की संगति करवाता है। उन्होंने कहा कि राम नाम की महिमा गाई नहीं जा सकती उसे तो केवल महसूस किया जा सकता है। नाम तो सब गुणों से भरपूर है। वो तो हर सुख समृद्धि को देने वाला है। अपने विचारों को एकचित करके नाममय हो जाओ। इस दुनिया के भोग पदार्थो को केवल इतना ही भोगों जितने की आवश्यकता है।

गुरु महाराज जी ने फरमाया कि स्वस्थ तन में स्वस्थ मन रहेगा इसलिए सबसे पहले अपने तन को स्वस्थ रखने का प्रयास करो। तन प्रबल रहेगा तभी भक्ति कर पाओगे। भक्ति सज्जनता प्रदान करती है। जो सज्जन है उसे धर्य भी आ जाता है। सज्जन पुरूष कटु वचन भी बड़े धर्य से सहन करते है।  रामायण भी यही कहती है कि धीरज धर्म मित्र और नारी की परिक्षा बिपरीत परिस्थितयो में ली जाती है। उन्होंने कहा कि सन्तमत की सीधी सी लाइन है कि यदि मां के गर्भ से जन्म लिया है तो आप दाता की भांति या शूरवीर की भांति जीवन जीओ। उन्होंने कहा कि सन्त सब जीवो के लिए समान ज्ञान बांटते है लेकिन एक उनको जीवन में धारण कर लेता है तो दूसरा उसके महत्व को नहीं समझ पाता। हंस और बगुला दोनो एक ही परिस्थिति में रहते हैं लेकिन दोनों की रहनी में दिन रात का अंतर है। ये आपके ऊपर है कि आप अपनी रहनी और करनी कैसे निभाते हो।कर्म दो प्रकार के होते हैं। एक गंदे और एक बुरे। इंसान के दिल मे दोनो बसते हैं। पाप कर्म भी और पुण्य कर्म भी। बुरी और अच्छी शक्तियां आपके अंतर में है। फ़र्क़ ये है कि अच्छाई सोई रहती है और बुराई जागृत। हमें बार बार अपनी अच्छाई को जगाने का प्रयास करना है और सचेत रहना है क्योंकि बुराई की हल्की सी चिंगारी भी एक ही पल में सारी अच्छाई को स्वाहा कर देती है।

इसी अच्छाई को जगाने का सबसे अच्छा और सरल तरीका है सतगुरु का संग। सतगुरु का संग आपको भटकने नहीं देता। गुरु महाराज जी ने कहा कि दो बातें हमेशा याद रखो कि दुख के समय अरदास करो और सुख के समय में शुकराना करो।  हिम्मत आप जुटाओ मदद परमात्मा करेगा। सारी शक्तियों का भंडार आपका शरीर है इसलिए इसको तन्दुरुदत और स्वस्थ रखो। तन स्वस्थ रहेगा मेहनत करने पर और मन स्वस्थ रहेगा अच्छे विचार रखने से। जब मन और तन दोनो स्वस्थ होंगे तो आप निर्विघ्न परमार्थ कर पाओगे। स्वस्थ तन और मन आपकी रूह को स्वस्थ रखेंगे। रूह की खुराक है नाम का सुमिरन। नाम के सुमिरन से आपके अंतर के सभी विषय विकार उसी प्रकार जल जाएंगे जैसे पुरानी घास एक छोटी सी चिंगारी से ही जल जाती है। उन्होंने कहा कि जीते जी की भक्ति ही भक्ति है। जीते जी भक्ति होगी जिंदा मत अपनाने से और जिंदा मत सन्तमत ही है। गुरु की शिक्षाओं को भुनाओ और उनको आत्मसात करके अपने अंतर में पूर्णिमा मनाओ।

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