न केवल स्वीकार होने से पूर्व बल्कि बाद में भी वापिस लिया जा सकता है त्यागपत्र: एडवोकेट हेमंत चंडीगढ़। हरियाणा कैडर 2014 बैच की महिला आईएएस अधिकारी रानी नागर ने अपना त्यागपत्र छ: माह पूर्व 4 मई को तत्कालीन मुख्य सचिव केशनी आनंद अरोड़ा को भेजा था। जिसमे उन्होंने इसके कारण के रूप में सरकारी ड्यूटी दौरान अपनी निजी सुरक्षा पर खतरे का उल्लेख किया था। उन्होंने अपने त्यागपत्र की प्रति अपने निजी फेसबुक और ट्विटर अकाउंट पर भी अपलोड कर सार्वजानिक की थी। *इसके बाद हरियाणा सरकार ने रानी का त्यागपत्र केंद्र सरकार को भेज दिया। हालांकि इस सम्बन्ध में दायर एक आरटीआई याचिका के जवाब से यह खुलासा हुआ कि राज्य सरकार ने केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय से उनका त्यागपत्र स्वीकार करने की बजाए उन्हें अपने गृह राज्य उत्तर प्रदेश में इंटर कैडर ट्रांसफर अर्थात उन्हें वर्तमान हरियाणा कैडर से उत्तर प्रदेश कैडर में स्थायी तौर पर स्थानांतरित करने की अनुसंशा की। हालांकि बीते दिनों ऐसी खबरें आयी हैं कि रानी ने अपना त्यागपत्र वापिस ले लिया है हालांकि इस सम्बन्ध में कोई आधिकारिक जानकारी सार्वजनिक नही हुई है। वर्तमान में हरियाणा मुख्य सचिव कार्यालय की वेबसाइट पर उन्हें 11 नवंबर 2020 से ताजा तैनाती आदेशों की प्रतीक्षा में दर्शाया जा रहा है जिसके यह स्पष्ट होता है कि उन्होंने अपना त्यागपत्र वापिस ले लिया है। बहरहाल, इस सम्बन्ध में पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार, जिन्होंने इस सम्बन्ध में केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय ने आरटीआई दायर की, ने बताया कि अगस्त 2011 में केंद्र के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) द्वारा अखिल भारतीय सेवाओं के सदस्यों, जिसमे आईएएस के अलावा आईपीएस. (भारतीय पुलिस सेवा) और आईएफएस (भारतीय वन सेवा) भी शामिल हैं, द्वारा दिए त्यागपत्र की प्रक्रिया से सम्बंधित जारी दिशा निर्देशों के अनुसार आईएएस अधिकारियों के त्यागपत्र स्वीकार करने का सक्षम प्राधिकारी केंद्र सरकार के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के राज्यमंत्री होते है। सम्बंधित आईएएस अधिकारी द्वारा अपना त्यागपत्र अपने आबंटित रा’य कैडर अर्थात रा’य सरकार को ही दिया जाता हैं. यहा तक कि अगर ऐसा आईएएस अधिकारी केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर है और अपना त्यागपत्र अपने सम्बंधित मंत्रालय/विभाग के सचिव को देता है, फिर भी वह त्यागपत्र वहां से उस अधिकारी की राज्य सरकार/कैडर को ही भेजा जाता है। उन्होंने बताया कि राज्य सरकार आईएएस अधिकारी द्वारा दिए गए त्यागपत्र के बाद यह सुनिश्चित करने के बाद कि उस अधिकारी के विरूद्ध किसी प्रकार की कोई विभागीय कार्यवाही या कोई अन्य जांच आदि लंबित न हो अर्थात वह विजिलेंस दृष्टि से बेदाग हो एवं इसके साथ साथ ही उस अधिकारी की राज्य सरकार के प्रति किसी प्रकार की कोई देनदारी लंबित न हो, के बाद उक्त त्यागपत्र के मामले में राज्य सरकार द्वारा अपनी अनुसंशा अर्थात सिफारिश केंद्र सरकार को भेजनी होती है. लिखने योग्य है कि आईएएस अधिकारी के त्यागपत्र को स्वीकार करने के लिए केवल केंद्र सरकार ही सक्षम प्राधिकारी है। हालांकि अगर वह अधिकारी सस्पेंडेड अर्थात निलंबित चल रहा हो हो फिर केंद्र सरकार द्वारा इस आशय की जांच की जाती है कि क्या उस अधिकारी का त्यागपत्र स्वीकार करना जनहित में होगा अथवा नही क्योंकि ऐसे मामलो में कानूनी और विभागीय कार्यवाही संपन्न होने के बाद सम्बन्घित अधिकारी को आईएएस से केंद्र सरकार द्वारा हटाया या बर्खास्त भी किया जा सकता है. हालांकि अगर त्यागपत्र स्वीकार होने से पहले अधिकारी इसे वापिस लेने के लिए लिख कर दे देता है तो त्यागपत्र स्वत: ही वापिस लिया माना जाएगा और उसके स्वीकार करने का प्रश्न भी उत्पन्न नही होता.बहरहाल, हेमंत ने आगे बताया कि जुलाई, 2011 में आईएएस अधिकारी द्वारा अपना त्यागपत्र देने के बाद भी केंद्र सरकार द्वारा उसे वापिस लेने की अनुमति देने का प्रावधान किया गया। उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार लोकहित में एवं कुछ विशेष परिस्थितियों में आईएएस अधिकारी द्वारा दिए गए त्यागपत्र को वापिस लेने की अनुमति दे सकती है। अगर किसी आईएएस द्वारा कुछ विवशतापूर्ण कारणों से त्यागपत्र दिया गया था हालांकि उसमें उसकी सत्यनिष्ठा, दक्षता और आचरण पर किसी प्रकार का कोई प्रश्न चिन्ह न हो एवं त्यागपत्र वापिस का अनुरोध अब पूर्व की परिस्थितियों में भौतिक बदलाव के दृष्टिगत सम्बंधित अधिकारी द्वारा किया गया है, तो केंद्र सरकार ऐसी अनुमति दे सकती है। इसके अलावा उस अधिकारी के त्यागपत्र स्वीकार होने के बाद अर्थात उसके प्रभावी होने से लेकर वापिस लेने के अनुरोध की मध्यवर्ती अवधि के बीच उस अधिकारी का आचरण किसी प्रकार से अनुचित नही होना चाहिए. इसके अतिरिक्त अधिकारी का त्यागपत्र स्वीकार होकर प्रभावी होने और उसे वापिस लेने की अनुमति देकर दोबारा ड्यूटी ग्रहण करने की अनुमति देने के बीच सेवा में अनुपस्थिति की अवधि 90 दिनों से अधिक नहीं होनी चाहिए। इसके अलावा जो पद आईएएस अधिकारी के त्यागपत्र स्वीकार होने के बाद रिक्त हुआ है या उससे समकक्ष कोई पद राज्य सरकार के पास उपलब्ध होना चाहिए. हालांकि अगर उस अधिकारी को त्यागपत्र वापिस लेने की अनुमति प्रदान कर दी जाती है, तो इस बीच के समय की अवधि को सेवा में व्यवधान तो नहीं माना जाएगा हालांकि यह अवधि पेंशन आदि के लिए योग्यता सेवा नही होगी। Post navigation कांग्रेस पार्टी तीनों किसान विरोधी काले क़ानूनों को ख़त्म करने को वचनबद्ध है-सुरजेवाला किसान आंदोलन पर कांग्रेस के राज्यसभा सांसद दीपेंद्र हुड्डा का बड़ा बयान