गाय हमारी भारतीय सनातन संस्कृति की अमूल्य धरोहर. जिस घर आंगन में गाय वह वास्तव में स्वर्ग के समान फतह सिंह उजाला पटौदी । भारतीय सनातन संस्कृति के हित में गाय का संरक्षण बहुत जरूरी है । सही मायने में गाय अथवा गोधन हमारी अपनी अनादि काल से चली आ रही सनातन संस्कृति की अमूल्य धरोहर है । इस ब्रह्मांड में गाय एक जीव अथवा जानवर नहीं है । शास्त्रों के मुताबिक गाय इस ब्रह्मांड की ऐसी अमूल्य धरोहर है, जिसकी व्याख्या के लिए पृथ्वी के जितना कागज और सागर के जितनी स्याही भी कम पड़ सकती है। यह बात जारी एक बयान में काशी सुमेरु पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती ने देवउठनी ग्यारस और आंवला नवमी के पर्व के मौके पर कही है । उन्होंने कहा जिस घर अथवा आंगन में गाय हैं , वह वास्तव में स्वर्ग के समान है। आज दुनिया भर में अग्रणी देशों के वैज्ञानिक भी गाय के रोम-रोम के वैज्ञानिक और आध्यात्मिक महत्व को स्वीकार कर अपनी मुहर लगा चुके हैं । इतना ही नहीं भारतीय देसी गाय की प्रजाति को और अधिक श्रेष्ठ बनाने के साथ-साथ इसके बेहतर उपयोग सहित संरक्षण के लिए भी व्यापक स्तर पर अनुसंधान किए जा रहे हैं । यह हमारा दुर्भाग्य है कि अपने ही देश में गाय और गोधन की अनदेखी कर हम अनदेखे विनाश की तरफ अपने कदम बढ़ा रहे हैं। समय रहते भी नहीं संभले तो आने वाले समय में संपूर्ण मानव जाति को बहुत बड़ी कीमत भी चुकानी पड़ सकती है । वेद, पुराणों में भी उल्लेख किया गया है की गाय की पूंछ को छूने मात्र से मुक्ति का मार्ग किसी के लिए भी खुल सकता है । गाय की महिमा के लिए शब्द ही नहीं है । यह एक परंपरा बन गई है कि वर्ष में केवल एक बार गोपाष्टमी जैसे पर्व के मौके पर गाय का पूजन कर गाय का श्रृंगार कर गाय के नाम पर दान इत्यादि करके हम अपना धार्मिक दायित्व अपने पुण्य के स्वार्थ के लिए पूरा कर रहे हैं । शंकराचार्य नरेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि 130 करोड़ की आबादी वाले भारत देश में सभी के लिए गाय पालना और गाय घर में रखना संभव नहीं ? अनेक गौशाला हैं ऐसी हैं जहां आवारा और बेबस गायों को रखा जा रहा है । इतना ही नहीं ऐसे भी गौ सेवक और गौशाला हैं जहां अपंग दुर्घटनाग्रस्त जख्मी बीमार गोधन को रखकर उनकी निस्वार्थ भाव से गो प्रेमी समाजसेवियों के सहयोग से गांय के संरक्षण के लिए सेवा का कार्य निरंतर जारी है। आज जिस प्रकार से गाय और गोधन को विभिन्न स्थानों पर शहरों में कस्बों में महानगरों में आवारा घूमते हुए कूड़े करकट के ढेर में अपना पेट भरते देखा जाता है तो मन को बहुत पीड़ा होती है । 130 करोड़ की आबादी वाले सनातन संस्कृति और हिंदुत्व विचारधारा के इस देश में क्या ऐसा संभव नहीं की कुछ लाख संख्या की इस प्रकार की आवारा गायों और गोधन की सेवा का संकल्प लेकर अपना अपना सहयोग प्रदान कर सकें । उन्होंने कहा गाय को गौमाता तो हम कहते हैं , लेकिन आज इसका माता के रूप में कितना सम्मान किया जा रहा है, इस बात पर भी विचार किया जाना जरूरी है । वास्तव में गाय हमारे देवी देवताओं के द्वारा मानव कल्याण के लिए दिया गया एक ऐसा अमूल्य धरोहर है, जिसकी बदौलत दुनिया के किसी भी असाध्य रोग का निवारण किया जाना भी संभव है । ठसी कड़ी में निकेतन मठ मछली बंदर के महंत स्वामी विमलेश आश्रम ने कहा कि गाय का पूजन और संरक्षण करने से मनुष्य को पुण्य फल की प्राप्ति होती है । स्वामी अखंड आनंद तीर्थ महाराज ने कहा जिस घर आंगन में गोपालन किया जाता है , वहां सभी लोग संस्कारी और सुखी होते हैं । स्वामी बृज भूषण दास जी महाराज ने कहा गाय अथवा गौ माता की सेवा जीवन मरण से मोक्ष भी दिलाती है । यदि मरने से पहले या प्राण त्यागने से पहले गाय की पूंछ को छू लिया जाए तो पापों से मिलना भी निश्चित है । आज के भौतिकवादी युग में धन दौलत वैभव पाने की इच्छा तो रखते हैं , लेकिन यह भूल जाते हैं कि इस ब्रह्मांड में केवल और केवल गाय की सेवा ही किसी का भी भाग्य बदल सकती है । यह बात भी चिकित्सा जगत के साथ-साथ वैज्ञानिक रूप से स्पष्ट हो चुकी है कि जननी अथवा मां के बाद केवल मात्र गाय का दूध ही एकमात्र विकल्प है। यही कारण है किसी भी प्रसूता के द्वारा अपने शिशु को दूध पिलाने में जब परेशानी हो तो डॉक्टर एक ही सलाह देते हैं कि नवजात शिशु को गाय का दूध का सेवन करवाया जाए । शंकराचार्य नरेंद्र ने सरस्वती ने कहा भारतीय सनातन संस्कृति और संस्कार ऐसे हैं कि सभी जीवो के प्रति दया रखने के साथ-साथ यथा सामर्थ उनका पेट भरने की भी शिक्षा देते आ रहे हैं । इसका सबसे बड़ा उदाहरण करोना कोविड-19 महामारी के दौरान विभिन्न प्रकार के आवारा लाचार बेबस पशु पक्षियों जीवो की लोगों के द्वारा की गई सेवा के रूप में देखने को मिला है । उन्होंने कहा प्रतिदिन पंचगव्य का सेवन करने वाले किसी भी व्यक्ति के शरीर पर जहर का कोई प्रभाव नहीं होता तथा वह सभी व्याधियों से मुक्त रहता है । गाय के दूध में दुनिया का हर प्रकार का पौष्टिक तत्व मौजूद है । यह बात और विषय आज भी जिज्ञासा के साथ साथ वैज्ञानिक खोज का विषय हो सकता है कि आखिरकार मीराबाई भी जहर का भरा प्याला पी कर जीवित कैसे बच गई ? सच्चाई यही है कि भगवान श्री कृष्ण की दीवानी मीराबाई पंचगव्य का सेवन करती थी । उन्होंने कहा आज के समय में सभी सनातन प्रेमियों और हिंदुत्व के समर्थक लोगों को प्रतिदिन गाय अथवा गांव माता के दर्शन करते हुए गाय के शरीर को अवश्य सपर्श करना चाहिए । संभव हो तो ऐसा कार्य करते समय गाय अथवा गौ माता को श्रद्धा के साथ नमन भी करना चाहिए। Post navigation इंसान बल बुद्धि चतुराई में गाफिल हो परमात्मा को भूल गया : हजूर कंवर महाराज मन और तन दोनो स्वस्थ होंगे तो आप निर्विघ्न परमार्थ कर पाओगे। : कंवर साहेब महाराज जी