आत्मा परमात्मा से इसी प्रकार बिछड़ी हुई है जैसे बून्द बादल से बिछड़ती है। : कंवर साहेब जी महाराज. चौरासी लाख चोलो में से सबसे उत्तम चोला इंसानी चोला है, इन्सानी चोला मिला है प्रभु से लग्न जगाने के लिए।

दिनोद धाम जयवीर फोगाट,24.11.2020 –  इस दुनिया मे भांति भांति के लोग हैं।सबके कर्म भी अलग हैं और विचार भी अलग हैं। जगत में कर्म की ही प्रधानता है। जिन को ये बात समझ आ जाती है वे सन्तों की शरण मे जाकर अपना जीवन संवार लेते हैं जबकि जो ये नहीं समझ पाते वो यूं ही भटका खाते हैं। समझते वो है जो गुरु के स्थूल और सूक्ष्म दोनो रूपों को समझ लेते हैं। 

यह सत्संग विचार परमसन्त सतगुरु कँवर साहेब जी महाराज ने दिनोद गांव में स्थित राधास्वामी आश्रम में प्रकट किए। हुजूर महाराज जी ने कहा कि गुरु रूप को वो ही देख सकता है जिसने पांचों इंद्रियों और पांचों विकारों को जीत लिया है। गुरु की देह तो सगुन रुप है और ये ही सगुन रूप निर्गुण का भेद देता है। निर्गुण रूप विदेह है और जो विदेह है वो तो कण कण में बसा हुआ है। जब विदेह रूप में परमात्मा हमें हर पल देख रहा है तो फिर हम क्यों गंदे मंदे कामो से नही घबराते।  हुजूर कँवर साहेब ने कहा कि सतगुरु ने सगुन रूप भी जीव को चेताने के लिए धरा है। सतगुरु चेताते हैं कभी चेतावनी दे कर तो कभी विरह जगा कर। कभी भयानक भाव दिखा कर तो कभी प्रेम जगा कर। रूह जो इस जगत में आकर भटक गईं है उसे उसका असल लक्ष्य जताना ही सतगुरु का कार्य है। आत्मा परमात्मा से इसी प्रकार बिछड़ी हुई है जैसे बून्द बादल से बिछड़ती है। सतगुरु इस आत्मा को परमात्मा से इसी प्रकार मिला देता है जैसे बून्द वापिस सागर में समा जाती है। उन्होंने कहा कि हमारी आत्मा हमारे शरीर में वैसे ही सवारी कर रही है जैसे हम कार में सफर करते हैं।  हमें बहुत सी वस्तुओं का अहंकार हो जाता है। इस अहंकार को मिटाना आवश्यक है। जिस शरीर का बल का काया का हम अहंकार करते हैं वो शरीर एक बूंद मात्र था जब हम मां के गर्भ में आये थे। परमात्मा ने उसी बून्द को आकार दिया और चौरासी लाख चोलो में से सबसे उत्तम चोला इंसानी चोला दिया।   

  उन्होंने कहा कि चोला मिला था प्रभु से लग्न जगाने के लिए। मालिक की मौज में रहकर परमात्मा की भक्ति के लिए लेकिन इंसान बल बुद्धि चतुराई में गाफिल हो गया। इसी गफलत में ही वो एक दिन पानी के बुलबुलें की भांति फूट जाता है और पछताता है। उन्होंने फरमाया कि इस शरीर को इंसान सुख आराम और वैभव के संग्रह का कारण मान लेता है। दो घड़ी के आगे के भविष्य के लिए तो हम इतने चिंतित रहते हैं लेकिन असल भविष्य को अंधकारमय कर रहे हैं। असल भविष्य तो उस अगत का है जब हम जगत को त्याग कर जाएंगे। उन्होंने पूछा कि हम किस बात का अभिमान करते हैं। जो सूरज अब चढ़ा है वो शाम को ढल जाएगा। सुख दुख में और दुख सुख में बदलेगा। धर्म परीक्षा मांगता है। इस पर चलना बहुत धर्य और साहस का काम है। धर्म पर चलने वाला तो सब कुछ बर्दाश्त करता है। जिसने गुरु को मान लिया उसने बाकी सब कुछ त्याग दिया। सतगुरु राजी तो कर्ता राजी। बुल्ले शाह ने अपने गुरु को सर्वस्व माना था। गुरु को प्रसन्न करने के लिए बुल्ले शाह ने नाचना सीखा। गुरु महाराज जी ने कहा कि हर पल परीक्षा का पल है। सबका पालनहार वो परमात्मा है। जीवन में कोई हमें एक चीज दे देता है कोई दो। एक या दो चीजें देने वाले का तो हम शुकराना करते नहीं थकते पर जिस परमात्मा ने हमें सब कुछ दिया उसका हम जिक्र भी नहीं करते। उन्होंने कहा कि जिसके जैसे विचार हैं उनका वैसा ही समय बीतता है। रात दिन ख्याल तो दुनियादारी का रखते हैं तो भक्ति कैसे सम्भव हो। शरीर को क्या सजाना सजाना हो तो रूह को सजाओ। रूह सजेगी परमात्मा की भक्ति से। करनी अच्छी करो। करनी अच्छी होगी सतगुरु की शरण से। गुरु की नकल ना करो गुरु का संग करो, गुरु के वचन को पकड़ो। ये सतगुरु ही जानता है कि किस जीव का कल्याण कैसे करना है।

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