सोशल मीडिया पर भी चाचा नहीं दिखाई दिए. अपने चाचा को कहीं बच्चे भूल नहीं जाएं

फतह सिंह उजाला

खुशी और गम के बीच गुम हुए चाचा को बहुत तलाश किया ! लेकिन ना जाने चाचा कहां गुम हो गए  ? बच्चों के बीच प्रिय चाचा का एक दिन पहले ही जन्मोत्सव था । यह जन्मोत्सव दीपावली पर्व के मौके पर आया ।

दीपावली के त्यौहार की बधाई से सोशल मीडिया भी अटा रहा, लेकिन ना जाने ऐसा क्या हुआ कि चाचा दिखाई ही नहीं दिए या फिर चाचा को याद करना  भूल गए ? इस बात की संभावना नहीं के बराबर है कि चाचा को  भूल गए । यहां सीधी और साफ बात यह है कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू जिन्हें कि चाचा नेहरू के नाम से याद किया जाता है । लेकिन 1 दिन पहले के अधिकांश समाचार पत्रों पर भी गौर किया जाए तो चाचा कहीं भी भूल से ही दिखाई दिए होंगे । जो भी कुछ दिखाई दिया वह था सिर्फ दीपावली पर्व की शुभकामनाओं के संदेश और जिस पार्टी अथवा राजनीतिक दल से चाचा का संबंध रहा या फिर सीधे-सीधे जिस पार्टी और राजनीतिक दल के नेता के रूप में वह प्रधानमंत्री बने, उसी पार्टी के कार्यकर्ताओं -नेताओं के 1 दिन पहले 14 नवंबर दीपावली के पर्व पर अनगिनत चित्र दीपावली के बधाई से भरे हुए ही जहां तक नजर गई वहां तक दिखाई दिए ।

संभवत यह पहला मौका रहा है कि 14 नवंबर बाल दिवस के मौके पर चाचा के चित्र और उनसे संबंधित प्रेरणादाई बधाई के संदेश नहीं के बराबर ही दिखाई दिए । दूसरी ओर बरोदा में चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस पार्टी में एक नया ही जोश सहित जश्न का माहौल अभी तक हिलोरे ले रहा है । इसके विपरीत बिहार में हार का गम भी कम नहीं है । कोरोना महामारी के चलते यह पहला मौका रहा कि बिहार में और अलग-अलग राज्यों में संपूर्ण और उपचुनाव हुए । चुनाव में हार और जीत चलती ही रहती है । लेकिन  राजनीतिक पार्टी और उनके वरिष्ठ नेता भूले नहीं बुलाई जा सकते । फिर भी ना जाने ऐसा क्या हुआ, क्या कारण रहे कि खुशी दीपावली के त्यौहार की बरोदा में चुनाव की जीत की और बिहार में हार का गम, कहीं इन्हीं सबके बीच में ही बच्चों के चाचा तो गुम नहीं हो गए ?

चाचा जो कि देश के प्रधानमंत्री रहे , बच्चों के प्रिय और बच्चों में ही नहीं, कांग्रेस पार्टी में भी चाचा के नाम से प्रिय और याद किए जाने वाले नेहरु चाचा  को पहली बार अनदेखा महसूस किया गया । अब इसके क्या कारण रहे ? यह अपने अपने विचार और दृष्टिकोण के साथ इसका विश्लेषण भी संभवत किया जा सकेगा । यह बात अलग है कि सरकारी विज्ञापनों में जरूर चाचा का नाम और जिक्र देखा गया। हैरानी इस बात की है कि चाचा को सोशल मीडिया पर भी जगह देना क्यों उचित नहीं समझा ?

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