-कमलेश भारतीय

सुबह से चुनावों के नतीजे और रुझान जारी हैं । खुद राजनीतिज्ञ इन परिणामों की तुलना टी ट्वंटी से कर रहे हैं । बिहार में खासतौर पर यही रुझान दिख रहे हैं । शुरूआत में लालू यादव के क्रिकेटर रहे बेटे तेजस्वी और उनका महागठबंधन बहुत अच्छा परिणाम और रुझान दे रहा था और आज तक के चुनाव सर्वेक्षण के अनुसार काफी बढ़त बनाए हुए था और एनडीए के नेता दम साधे बैठे थे । एकाएक हालात बदले और एनडीए ने बहुमत का आंकड़े को छू लिया रुझानों में । तब एनडीए नेताओं के दावे शुरू हुए । यह उलट फेर चलता रहेगा क्योंकि अभी चुनाव आयोग के अनुसार सिर्फ बीस प्रतिशत वोटों की ही गिनती हुई है ।

भाजपा नेता यह कह रहे हैं कि पंद्रह वर्ष के शासन के बाद यदि हम आगे हैं तो यह बहुत बड़ी बात है । रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान ने एनडीए का साथ बिहार में छोड़ दिया और उनके वोटों की कमी एनडीए महसूस कर रही है । अभी तक के रुझानों के अनुसार कांग्रेस अपना प्रदर्शन सुधार नहीं पाई । यदि कांग्रेस के प्रदर्शन में सुधार हो जाता तो तेजस्वी या महागठबंधन की स्थिति बेहतर होती । विशेषज्ञ कह रहे हैं कि कांग्रेस के बोझ तले तेजस्वी का चमत्कार दबता दिख रहा है ।

भाजपा के प्रदर्शन में सुधार हुआ है और भाजपा जेडीयू से आगे है । यदि ऐसा ही रहा तो कहीं भाजपा मुख्यमंत्री पद पर दावा न ठोक दे पर यह बहुत बड़ी भूल होगी जैसी महाराष्ट्र में अपनी पुरानी सहयोगी पार्टी शिवसेना के साथ की । नेता और मुख्यमंत्री तो नीतीश कुमार ही बनाये जाने चाहिएं यदि बहुमत मिलता है तो । आखिर सुशासन बाबू ने बीच राह में महागठबंधन को छोड़ कर एनडीए का साथ दिया था । तेजस्वी उपमुख्यमंत्री थे । अब तेजस्वी को जन्मदिन का तोहफा मिलेगा या नहीं ? मध्य प्रदेश में भी रुझानों में भाजपा बीस सीटों पर आगे है और,कांग्रेस मात्र सात सीटो पर । इस तरह मध्य प्रदेश में उपचुनावों के बावजूद सरकार को कोई खतरा नहीं दिखता ।

जहां तक हरियाणा के बरोदा उपचुनाव का परिणाम है , वहां बरोदा में फिर कांग्रेस ने फहराया परचम । एक बार भी योगेश्वर लीड नहीं ले पाए । सभी जानते हैं कि यह सीट कांग्रेस के ही श्रीकृष्ण हुड्डा के निधन से खाली हुई थी और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के प्रभाव वाली सीट मानी जाती थी । फिर भी मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर पूरे मंत्रिमंडल सहित बरोदा की गलियों की खाक छानते रहे । दूसरी ओर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा व उनके बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने दिन रात एक कर प्रचार किया और एक अनजान प्रत्याशी की जीत का मार्ग प्रशस्त किया । यदि योगेश्वर दत्त हार जाते हैं तो उनका राजनीतिक सफर भी बुरी तरह प्रभावित होगा क्योंकि यह उनकी दूसरी हार होगी ।

ये चुनाव काफी रोचक रहे । आम बात है कि एक चुनाव परिणाम से भी उत्साहित होकर मुख्यमंत्री का इस्तीफा मांगने लगते हैं । सबसे खराब प्रदर्शन तो इनेलो का है जो राजकुमार सैनी से भी नीचे है । क्या इनेलो ने समर्पण कर दिया या वोट ट्रांसफर कर दिया ? मुख्य टक्कर तो कांग्रेस व भाजपा में ही रही ।
खैर । नतीजे देर से आयेंगे ।।तब तक धैर्य रखें ।

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