उमेश जोशी मतदाताओं को ‘लॉलीपॉप’ देने का वायदा कर उन्हें रिझाना और जीत के झंडा गाड़ना लोकतंत्र के आजमाए हुए भरोसेमंद नुस्खों में से एक है। लॉलीपॉप भी भांति भांति के होते हैं। लेकिन, बाजीगर के पिटारे से निकली जादुई चीजों की तरह ‘लॉलीपॉप’ सिर्फ दिखाने के लिए होते हैं; मतदाताओं को दिए नहीं जाते इसलिए मतदाताओं से उनका स्वाद पूछा जाए तो नहीं बता पाएँगे। सत्तारूढ़ पार्टी के पास ‘विकास’ का लॉलीपॉप तो हमेशा होता ही है और जब सारे हथियार भोंथरे हो जाते हैं तब विकास का लॉलीपॉप अचूक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाता है। यह दीगर बात है कि चुनाव सम्पन्न होने के बाद नेताओं को याद ही नहीं रहता। अंततः मतदाता अगले चुनाव तक बाट जोहता है कि कोई आएगा और विकास के लॉलीपॉप का वायदा पूरा करेगा। सत्तारूढ़ पार्टी के नेता धौंस और धमकी के लहजे में मतदाताओं को यह संदेश भी देते हैं कि विपक्ष के हाथ में कुछ नहीं है; विकास तो हमारे पास है। हम चाहेंगे तो ही विकास आपके पास आएगा। बीजेपी के हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ का बयान गौर से पढ़ें तो उससे यही ध्वनि आ रही है कि विकास हुड्डा के पास नहीं हमारे पास है यानी हुड्डा के झांसे में आकर काँग्रेस को जिता दिया तो विकास से हाथ धो बैठोगे। धनखड़ ने कहा है- ”हुड्डा साहब बरोदा के लोगों को विकास के झूठे आश्वासन दे रहे हैं। 2024 तक हम कराएंगे विकास। हुड्डा कहाँ से विकास कराएगा?” यह सच है कि विपक्ष में बैठे भूपेंद्र हुड्डा के पास विकास नहीं है। विकास तो सत्तारूढ़ बीजेपी के खूंटे से बंधा हुआ है। 2024 तक बीजेपी के खूंटे से खुल कर बरोदा तक विकास पहुंच जाएगा, इस बाबत धनखड़ ने कोई भरोसा भी नहीं दिया है। धनखड़ मतदाताओं को यह भी बताएँ कि 2014 से विकास तो आपके पास ही था फिर भी बरोदा तक क्यों नहीं पहुंच पाया; उसे कौन रोक रहा था? चुनाव के बाद भी विकास वहाँ पहुँच जाएगा, इस बात पर यकीन करने के लिए मतदाता के पास कोई ठोस आधार तो हो। मतदाताओं का मन पलटने के लिए रोज़ाना बीजेपी की ओर से हर साइज़ और शक्ल के बयान आ रहे हैं। घुमा फिरा कर हर बयान का एक ही मक़सद है, गले की फांस बने तीन कृषि कानूनों से मतदाताओं काध्यान हटाना। अब इसी रणनीति के तहत खिलाड़ियों से प्रचार करवाया जा रहा है और अपने उम्मीदवार की खिलाड़ी की छवि सामने रखी जा रही है। उसी छवि पर वोट मांगे जा रहे हैं। इस चुनाव में ना कहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं और ना ही मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर। बिहार में चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि पर लड़ा जा रहा है लेकिन बरोदा में उनके नाम, काम और छवि परहेज किया जा रहा है। ताज्जुब की बात है, बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष को अपनी ही सरकार के विकास कार्यों और अपने ही मुख्यमंत्री की ईमानदार’ छवि पर भी भरोसा नहीं है। भरोसा होता तो वे अपना सारा चुनावी अभियान खिलाड़ी से नेता बने योगेश्वर दत्त की छवि पर नहीं टिकाते। कहाँ गई विकास कार्यों की लंबी फेहरिस्त जिसे चुनाव की घोषणा से पहले तक रोज़ाना लहराते थे। ओमप्रकाश धनखड़ ने कहा है, खिलाड़ी पूरे देश का होता है। खिलाड़ियों का सम्मान करना चाहिए। खिलाड़ी देश का गौरव होते हैं। इनको तो वैसे भी राज्यसभा में भेज देना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि सचिन तेंदुलकर भारत का गौरव हैं इसलिए उन्हें राज्यसभा में भेजा गया है। इसी प्रकार योगेश्वर दत्त भी हरियाणा का गौरव हैं। हलके की जनता को चाहिए कि उन्हें विधानसभा भेजे। इस बयान से एक बात साबित हो गई है कि बीजेपी की कथनी और करनी में भारी अंतर है। कोई शक नहीं कि खिलाड़ी पूरे देश का होता है। यह बात तब तक लागू होती है जब तक वह सिर्फ खिलाड़ी होता है। आज योगेश्वर दत्त एक राजनेता हैं, खिलाड़ी नहीं। वो फिर से खिलाड़ी बन जाएं और वोट की राजनीति छोड़ दें, पूरा देश उन्हें फिर से पलकों पर बिठाएगा। वाह धनखड़ जी! देश के गौरव पर राजनीति का गारा लगा कर उजली छवि की उम्मीद करते हैं। रही बात सचिन तेंदुलकर की, तो उन्होंने कभी चुनावी राजनीति नहीं की इसलिए उनका खिलाड़ी के रूप में सम्मान बरकरार है। प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ खिलाड़ियों को देश का गौरव मान कर राज्यसभा में भेजने की पैरवी भी कर रहे हैं। योगेश्वर दत्त को हरियाणा का गौरव बताया है। यह बात सौलह आने सच है। धनखड़ जी की यह बयान देने से पहले अपनी पार्टी के मात्र सात महीने पुराने इतिहास में झांक लेते तो यह बयान देने से बचते। हो सकता है उन्हें मालुम भी हो और यह भी हो सकता है कि जानबूझ कर भूल गए हों। याद कीजिये अध्यक्ष जी। बीजेपी ने महज सात महीने छह दिन पहले 18 मार्च 2020 को रामचंद्र जांगड़ा और दुष्यंत कुमार गौतम को राज्यसभा में भेजा है। योगेश्वर दत्त उस दिन भी हरियाणा के गौरव थे। बकौल आपके, उस दिन भी योगेश्वर दत्त पूरे देश के थे। उन दो सीटों में से एक सीट हरियाणा के गौरव योगेश्वर दत्त को क्यों नहीं दी गई। उस दिन अपना यह सामान्य ज्ञान अपनी पार्टी के नेताओं को क्यों नहीं दिया। आज उस ‘गौरव’ का सम्मान बचाने के लिए अपनी गलतियाँ ही भूल गए; अब भुगतो। Post navigation खट्टर और दुष्यन्त की लाचारी, योगेश्वर पर पड़ेगी भारी एक कैडर के लिए आरक्षित नौकरियों पर दूसरे कैडर के अधिकारियों को दी जा रही पोस्टिंग, अफसरशाही में असंतोष