भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

हरियाणा का वर्तमान में ज्वलंत मुद्दा बरौदा उपचुनाव है। इसका विशेष कारण यह दिखाई दे रहा है कि इसमें पार्टियों की साख दांव पर लगी है। विशेष रूप से मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर व पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की। वर्तमान में योगेश्वर दत्त को टिकट मिलने के बाद भाजपा में यह माना जाने लगा कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल के कारण से ही यह टिकट मिली है, जबकि प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ व कृषि मंत्री व बरौदा उपचुनाव के प्रभारी जेपी दलाल यह टिकट किसी जाट को दिलाना चाहते थे। शायद उनका उम्मीदवार डॉ. कपूर सिंह नरवाल ही रहा हो। असलियत तो वे ही जानें।

डॉ. कपूर सिंह नरवाल इस समय ऐसे चर्चा में आए, जैसे चुनाव का परिणाम उन्हीं के समर्थन पर निर्भर है परंतु ऐसा होता कहां है। चुनाव में सबसे बड़ी बात पार्टी की नीति और एकता होती है। अत: यह कहना कि कपूर नरवाल के कारण ही कांग्रेस जीत जाएगी, कुछ उचित नहीं लगता।
भारत सारथी ने पहले भी लिखा था कि वर्तमान उप चुनाव में दोनों पार्टियों की सबसे बड़ी लड़ाई अपना घर संभालने की होगी। जो अपना घर जितना अच्छा संभाल जाएगा, वह अपने उम्मीदवार को जिता पाएगा।

अब भाजपा की ओर देखें तो मुख्यमंत्री का कहना है कि वह अपनी उपलब्धियों पर चुनाव लड़ेंगे, जबकि प्रदेश अध्यक्ष व प्रदेश प्रभारी का कहना है कि वे मोदी के नाम पर चुनाव लड़ेंगे। इधर गृह मंत्री अनिल विज तो सदा ही हरियाणा की कम, देश की अधिक बातें करते हैं। वर्तमान में भी उनके बिहार और मध्य प्रदेश पर ब्यान आते रहते हैं। भाजपा की सहयोगी गठबंधन की पार्टी जजपा अब दिखाई तो देने लगी है भाजपा के साथ परंतु उम्मीदवार का नाम भरने के बाद दो-तीन दिन वह भी नदारद दिखाई दिए। फिर जबसे सरकार बनी है, तब से आज तक भाजपा और जजपा के कार्यकर्ता आपस में मेल बिठा नहीं पाए हैं। जब भाजपा का कोई नेता कहीं जाता है तो जजपा के कार्यकर्ता नदारद दिखाई देते हैं और वैसे ही जब कहीं उपमुख्यमंत्री गए हैं तो भाजपा के कार्यकर्ताओं की अनुपस्थिति पाई गई है। ऐसी अवस्था में यह कहना कि अब यह घी-शक्कर होकर चुनाव जीतने में लगेंगे, कुछ अतिश्योक्ति ही लगता है।

कांग्रेस के भूपेंद्र सिंह हुड्डा की तो जैसे लॉटरी ही लग गई। एक तो उन्हें बैठे-बिठाए कपूर सिंह नरवाल, बलराज कुंडू व अन्य अनेक नेताओं का साथ मिल गया। दूसरी ओर बात करें कि कांग्रेस में उनका जो दिग्गज नेताओं से विवाद चलता है, उसमें अब यह कह सकते हैं कि जब उन्हें दिखाई दे रहा है कि इस समय बरौदा की जमीन हुड्डा के अनुकूल नजर आ रही है तो वह विरोध में तो जाएंगे नहीं। कहीं न कहीं सहयोग न करेंगे तो सहयोग का दिखावा जरूर करेंगे, क्योंकि कहावत है कि उगते सूरज को सभी सलाम करते हैं। हालांकि यह अवश्य कहा जा रहा था कि जो दो दर्जन से अधिक उम्मीदवार कांग्रेस के थे, व खिलाफत करेंगे परंतु तीन किसान अध्यादेश हुड्डा के लिए वरदान साबित होते नजर आ रहे हैं। फिर भी उन्होंने सभी उम्मीदवारों की मीटिंग बुलाकर, सभी काम सौंप दिए हैं। अत: कह सकते हैं कि उन्होंने अपने घर के विवादों को समय रहते भाजपा से भली प्रकार सुलझाया है।

परिस्थितियां तो कांग्रेस के पक्ष में नजर आ रही हैं परंतु यह चुनाव है कब क्या हो जाएगा, कह नहीं सकते। इसलिए कहा है कि ऊंट किस करवट बैठेगा।

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