— दिल्ली की निर्भया, थानागाजी, बलरामपुर, हाथरस से करौली तक राजनीतिक हितो को देखा गया
— राजस्थान के करौली के बकुनी गाव में कोई कांग्रेसी नेता पुजारी के जिंदा जलाने पर नहीं गया
— अब देश में विवाद का विषय बनती जा रही है दान दी गई जमीन । दान कर्ताओ कि निगाहे अब उस पर फिर से कब्जा करने की होने लग गई है
— क्या हर मामले को जातिगत चश्मे से देखना जरूरी है?

अशोक कुमार कौशिक

बात 1977 की है जब इंदिरा गांधी केंद्र की सत्ता से बेदखल हो चुकी थीं। देश में जनता पार्टी की सरकार थी। मोरार जी देसाई प्रधानमंत्री थे। सरकार तकरीबन 9 महीने चल चुकी थी। बिहार विधानसभा के चुनाव होने वाले थे। इससे कुछ दिन पहले ही हथियारों से लैस कुर्मियों के गिरोह ने बेलछी गांव पर हमला बोल दिया। घंटों गोलियां चलीं। 11 लोगों को जिंदा जला दिया गया। एक 14 साल के लड़के ने आग से निकलने की कोशिश की तो उसे उठाकर फिर आग में झोंक दिया गया। उसकी चीखें आग की लपटों में दफन हो गईं। मरने वालों में 8 पासवान और 3 सुनार थे। घटना जंगल में आग की तरह फैली। जब इंदिरा गांधी को इसका पता चला तो वह दिल्ली में अपने घर पर थीं। उन्होंने तुरंत बेलछी जाने का फैसला कर लिया। उनके साथ प्रतिभा सिंह पाटिल भी थीं जो बाद में भारत की राष्ट्रपति बनीं।

 आपातकाल से निकले गुस्से से राजनीति के हाशिए पर धकेल दी गईं इंदिरा गांधी ने ताड़ लिया था कि बेलछी की घटना देश ही नहीं दूसरे देशों का भी ध्यान जरूर खींचेगी। जब उन्होंने बेलछी जाने की बात की तो सोनिया गांधी ने कहा कि सुना है कि बिहार बहुत खराब जगह है। सुरक्षा की लिहाज से आपको वहां नहीं जाना चाहिए। लेकिन इंदिरा ने उन्हें समझाया कि ऐसा मानना ठीक नहीं है। सोनिया गांधी के बायोग्राफर जविएर मोरो ने अपनी किताब ‘दी रेड साड़ी’ में इस घटना को विस्तार से बताया है।

तेज बारिश बन गई बाधा

वो लिखते हैं कि 13 अगस्त 1977 को तेज बारिश हो रही थी। इंदिरा गांधी पटना तक फ्लाइट से पहुंचीं। इसके बाद कार से बेलछी के लिए निकल लीं। कार कुछ दूर ही चल सकी क्योंकि कीचड़ की वजह से आगे जाना मुश्किल था। इसके बाद ट्रैक्टर का सहारा लिया गया। साथ चल रहे लोगों ने कहा कि मौसम को देखते हुए कार्यक्रम स्थगित कर दिया जाना चाहिए। लेकिन इंदिरा गांधी अपने फैसले पर अड़ी रहीं। क्योंकि उन्हें पता था कि अगर वह चलेंगी तो कार्यकर्ता भी आगे बढ़ेंगे। इसके बाद आगे नदी थी। नदी पार करने के लिए हाथी का इंतजाम किया गया जिसका नाम मोती था। हाथी पर बैठने के लिए हौदा नहीं था लेकिन इंदिरा ऐसे ही बैठने को तैयार हो गईं। महावत के बाद इंदिरा गांधी बैठीं और पीछे प्रतिभा सिंह पाटिल इंदिरा गांधी अंधेरे में नदी पार कर वह बेलछी पहुंचीं।

उन्होंने लिखा है कि प्रतिभा एकदम डरी हुई उनकी साड़ी का पल्लू पकड़कर बैठी थीं। एक जगह पानी कमर तक आ गया था लेकिन उन्होंने हार नहीं मानीं। जब वह बेलछी पहुंचीं तो गांववालों को ऐसा लगा कि कोई देवदूत आया है। किसी पूर्व प्रधानमंत्री का लोगों के आंसू पोंछने के लिए गांव में पहुंचना उस समय ही नहीं आज भी बड़ी बात है। इंदिरा गांधी ने बताया था कि लोगों ने उन्हें भीगे कपड़े पहने देखा तो नई साड़ी दी। खाने को मिठाई दी। लोगों ने उनसे यह भी कहा कि आपको वोट न देकर गलती की। इंदिरा गांधी जब दिल्ली लौटीं तो उनके चेहरे पर चमक थी. हाथी पर सवार इंदिरा गांधी कि फोटो ने तब देश ही नहीं अतरर्राष्ट्रीय मीडिया का भी ध्यान खींचा था। 

क्यों बेलछी को हाथरस से जोड़कर देखना वाजिब है?

हाथरस में जाने के राहुल और प्रियंका के संघर्ष को इंदिरा के बेलछी जाने से जोड़कर देखा जा रहा है। इस पर पटना के वरिष्ठ पत्रकार राहुल कहते हैं कि बेलछी से इसकी तुलना नहीं की जा सकती। अगर प्रियंका-राहुल पहले ही दिन किसी भी दम पर वहां पहुंचने की कोशिश करते तो कुछ हद तक यह माना जा सकता था लेकिन दोनों उस दिन दिल्ली लौट गए थे। योगी ने पहले डीजीपी को वहां भेजा, सीबीआई जांच की सिफारिश कर दी इसके बाद इन लोगों को जाने की अनुमति दे दी। बिना कार्यकर्ताओं के किसी नेता का ऐसी जगह पर जाना माहौल नहीं बन पाता फिर आप मीडिया पर निर्भर हो जाते हैं कि आपको कितनी कवरेज मिलती है। हालांकि कोरोना के समय में प्रियंका का पीड़िता को गले लगाकर सांत्वना देना लोगों का ध्यान जरूर खींचा। प्रियंका और राहुल ने इतना तो कर ही दिया है कि दूसरे दल पीड़िता के परिवार से मिलने का प्रोग्राम बनाने लगे। योगी सरकार भी हठ छोड़कर नरम पड़ी । यह भी बड़ी उपलब्धि है।

क्यों बेलछी को करोली से भी जोड़कर देखना वाजिब है?

अब तीसरी सबसे महत्वपूर्ण बात राजस्थान के करौली जिले की है। जहा के एक गांव बुकना (सपोटरा) में दलित मीणाओं ने एक ब्राह्मण पुजारी को केवल इसलिए मार दिया कि वह अतीत मे मंदिर को दी गई जमीन पर कब्जा नहीं करने दे रहा था। इस मामले में 5 लोगों व उनके परिवार ने सुनियोजित तरीके से उस ब्राह्मण पुजारी बाबुलाल को उसी खेत में जिंदा जला दिया जहां वह कब्जा करना चाहते थे। इस मामले में शामिल मुख्य आरोपी कैलाश मीणा के पूर्वजों ने अन्य गाववालो  के साथ मिलकर गांव के राधाकृष्ण मंदिर को कुछ जमीन दान स्वरूप दी थी। कैलाश के परिवार की शुरू से ही उस जमीन पर बदनीयत थी और वह उसको कब्जाना चाहते थे। इस मामले को लेकर 5 अक्टूबर को एक पंचायत हुई और पंचायत ने कैलाश मीणा को ऐसा न करने के लिए ताकिद किया, पर वह नहीं माना तो उसे सौवा हिस्सा लेने को कह दिया। बताया जा रहा है कि कैलाश मीणा वहां के स्थानीय कांग्रेसी विधायक का खासम खास है।

इस मामले में पुलिस की कार्रवाई हाथरस की तरह संदेह के दायरे में रही। वहां के थाना प्रभारी और जांच अधिकारी ने शुरू से ही इस मामले को आत्महत्या सिद्ध करने की कोशिश की। पुलिस का भरकस प्रयास था कि वह  मामले को आरोपियों के पक्ष में रखा जाए, पर वहां पहुंचे मीडिया के दबाव के कारण मामला सार्वजनिक हो पाया और पुलिस अपनी मनमानी न कर पाई। अब मीडिया और राजनीतिक दबाव के चलते सरकार ने थाना प्रभारी को बदल दिया है और जांच के निर्देश दिए। इनके साथ पीड़ित परिवार को मुआवजा देकर मलहम लगाने की कोशिश की है। यह मामला शुरू से ही पुलिस के संज्ञान में था। यदि हाथरस की तरह इसे भी पुलिस चाहती तो आसानी से भी सुलझा देती। पुलिस की पूरे देश में एक जैसी कार्यप्रणाली है। उनका मुख्य मकसद पैसा और अपने राजनीतिक आकाओं को खुश करने का रहता है। यही कारण है देश में बहुत बहुत से मामले सार्वजनिक नहीं हो पाते और पुलिस बड़ी बेरहमी से उन्हें दबा देती है। देश में पुलिस प्रणाली में सुधार अति आवश्यक है पुलिस को अब जनउपयोगी बनाना बेहद जरूरी है।

राजस्थान के करौली जिले के इस गांव में मीडिया के दबाव और किरोडीलाल मीणा सहित दो सांसदों के अनशन पर बैठने पर मामला तूल पकड़ा। राजस्थान के मुख्यमंत्री और स्थानीय कांग्रेसी विधायकों ने इस मामले को कोई तवज्जो नहीं दी। कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व की तो यहां उपेक्षा ही देखने को मिली। हां सांसद किरोड़ी लाल मीणा वह भाजपा ने इस मामले को हाथों-हाथ लपका। यदि इस मामले को शुरू से ही राजनीतिक दृष्टिकोण से हटकर एक समस्या के रूप में देखा जाता तो मामला इतना बड़ा ना बनता।

अब  यह भी सच है कि देश में मंदिरों,  ब्राह्मणों और अन्य लोगो को अतीत में दान में दी गई जमीन अब दानकर्ताओ की वर्तमान पीढ़ियों को खटक ने लगी है, वह अब इस पर अपना हक जताने लग गए है । हरियाणा राजस्थान के अनेक मंदिरों में जमीन के विवाद खुलेआम देखे जा सकते हैं और देश की अदालतों में अनेक मामले आज भी चल रहे हैं।

 हाथरस की तरह अब इस मामले मे भी जातिगत विभाजन स्पष्ट रूप से देखने को आ रहा है। सपोटरा के एक अध्यापक ने सोशल मीडिया पर खुलकर आरोपियों का पक्ष लिया है। उसने अपने फेसबुक पेज पर विद्वेष फैलाने की कोशिश की है। 

इन घटनाओ  ने एक बार फिर से सालों से चली आ रही एक बहस को भी जिंदा कर दिया है कि क्या रेप और माव लीचिन्ग की घटनाओं में जाति जोड़कर देखना चाहिए ? ऐसा करना कितना सही है और ग़लत है? रेप को रेप कहा जाना चाहिए और माव लिचिन्ग को माव लीन्चिन्ग, ना कि हिन्दू मुस्लिम दलित जोड़ जाना चाहिए!!, लेकिन ऐसा बोलने वाले घटना के बाद होने वाले प्रक्रिया को समझना चाहिए कि रेप करने वाले ऊंची जाति के निकलते हैं तब उनकेे साथ इलाके के ऊंची जात का बड़ा तबका खड़ा होकर पीड़िता को ही ग़लत और उसके पूरे समुदाय को निचा दिखाने और सामाजिक बहिष्कार में लग जाते हैं  तब वहां पर जाति जोड़कर देखना पड़ता है समाज को फिर से बताना पड़ता है कि  दलितों-पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के साथ 21वीं सदी में भी जातियां घृणा खत्म नहीं हुई है। ये जातियां हिंसा यौन व हिंसा तक ही सीमित नहीं बल्कि मौलिक अधिकारों के हनन के रूप में देखने को भी मिल जाती है। ये समाजिक पैटर्न सिर्फ एक राज्य तक सीमित नहीं है अगर देश की अलग अलग घटनाओं पर नजर डालेंगे तो ये जातियां घृणा देखने को मिल जाएंगी।

दो साल पहले जम्मू कश्मीर के कठुआ में मुस्लिम अल्पसंख्यक खानाबदोश बकरवाल समुदाय की लड़की के साथ गैंगरेप हत्या कर जंगलों में फेंक दिया गया था तब भी यहीं कहां गया था कि क्या मुस्लिम अल्पसंख्यक जोड़ना सही है बलात्कार की घटना को जातियां के चश्में से देखना जरूरी है?, लेकिन जब घटना के बाद आरोपियों को बचाने के इलाके के बहुसंख्यक तबके के सैकड़ों लोग सड़कों पर आ गए थें और वहां का पूरा पुलिस प्रशासन भी मामले को दबाने में संभव प्रयास किया गया और पीड़िता के समुदाय को निचा दिखा गया। कठुआ में हुई घटना जातियां हिंसा और मानसिक घृणा का ही पैटर्न था। यहीं पैटर्न हमें हाथरस और सपोटरा में देखने को मिला बस कठुआ वाले पैटर्न में हिन्दू मुस्लिम का रंग था और हाथरस व सपोटरा वालें में ऊंची और निची जाति का रंग है। इस जातियां घृणा में कुर्सी पर बैठे हुए नेताओं की ताकत भी मिली हुई है। यहीं ताक़त पहले जम्मू कश्मीर में और अब हाथरस में आरोपियों को समर्थन में उतरे लोगों को खुला समर्थन और बढ़ावा दे रहीं हैं।

अब सत्ता पक्ष आरोप लगा रहा है कि विपक्षी दल अपने शासित राज्यों में हो रही बलात्कारों की घटनाओं पर क्यो नही बोलते तो ये कहने वाला सत्ता पक्ष क्यो भूल जा रहा है  कि विरोध विपक्ष ही करता है और सत्ता पक्ष कार्रवाई!! विपक्षी दलों के विरोध से ही सरकार होश में आती है और सत्ता पक्ष के कार्रवाई विपक्ष को चुप कराया जाता है। हाथरस और सपोटरा में हंगामा विरोध सिर्फ और सिर्फ सत्ता पक्ष कार्रवाई करने में ढीलापन और नकारेपन की देन है। 

इसमें कोई भी संदेह नहीं है कि बलात्कार और माव लीन्चिग की घटना कल भी अखबारों मे थी और आज भी लेकिन आज जिस तरह अपराधियों को बचाने के लिए रैली तिरंगा यात्रा निकाली जा रही है और सभाएं हो रही है वो पहले शाय़द ही हो रहा था। ये एक विकासशील देश के समाज के लिए ठीक नहीं है आगे चलकर ये समाजिक दूरियां टकराव का रूप लेती। इसलिए रेप की घटनाओं में अपरधियों के  समर्थन में बोलने वाले लोगों का बहिष्कार करना होगा चुनाव में उन नेताओं को भी सबक सिखाना होगा जो बलात्कारियों के पक्ष में खड़े हो जातें हैं। अब हमें भी पहले खुद में बदलाव लाना होगा जातियां राजनीति की मानसिक गुलामी की जंजीरों को तोड़ कर अपने प्रतिनिधि ( विधायक ‘ सांसद) चुनने होंगे जो अपरधियों के साथ नहीं अपरधियों के खिलाफ खड़े हो।

क्योंकि पुलिस प्रशासन भी तभी सुधरेंगा और महिलाओं के लिए और समाज के लिए अच्छा होगा जब हम पुलिस शासन प्रशासन के ऊपर बैठै सफ़ेद पोशाक वालो को हम सही से चुनेंगे क्योंकि शासन प्रशासन अच्छे से तभी काम कर पाएगा जब तक आपराधियो को बचाने के लिए उन पर कोई राजनैतिक दबाव नहीं डाला जाए।

एक कड़वी बातें ये भी हैं  कि बलात्कार की घटनाओं में मोमबत्ती जलाने आंसूओं को बहाने से कुछ नहीं होने वाला अब हमें सामाजिक तौर बदलाव की पहल करनी होंगी।  वरना आज जो ये सोच कर खुश हो रहे कि ये सरकार और ये समाज के ठेकेदार हमारे साथ हैं तो वो अपनी बारी का इंतजार करें क्योंकि सरकार और समाज के ठेकेदार सिर्फ और सिर्फ अपने फायदे के लिए सोचती है जिस दिन इनको समर्थन करने वाले मानसिक गुलामी के लोग इनके विपरीत हुए तो यहीं समाज के ठेकेदार मानसिक गुलामी वाले कठपुतलियों को उठाकर फेंक देंगे। इसलिए मानसिक गुलामी से बाहर निकले और समाज की जड़ों और सामाजिक मूल्यों को मजबूत बनाए। क्योंकि एक बेहतर समाज  बेहतर राष्ट्र का निर्माण करता है।

error: Content is protected !!