कई-कई घंटो के इंतजार के बाद आता है बिक्री का नंबर.
ऐसी हालत में किसानों की आमदनी दुगनी कैसे होगी
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फतह सिंह उजाला

पटौदी।  सरकार भले ही बाजरे की खरीद को लेकर अपनी पीठ थपथपाने का कार्य कर रही हो। लेकिन बाजरे की खरीद के दौराण ऑन लाईन प्रक्रिया में आने वाली दिक्कतों के चलते किसान, व्यापरी, मजदूर काफी परेशान। प्रति दिन कम किसानों को उपर से मैसिज कम मिलना, गेट पास काटने में पोर्टल नहीं चलने के कारण पल्लेदार भी मंडी में दिन भर बोरियों के ढेर पर लौट कर आराम फरमाने पर मजबूर हो रहें है।

खरीद को लेकर किसान और व्यपारियों में ज्यादा खुशी नहीं है। किसानों का कहना है कि सरकार एक तरफ तो दाना दाना खरीदने की बात करती है वहीं मंडी में एक एकड की सिर्फ 8 क्विंटल बाजरे की खरीद की जा रही है। शेष बची फसल को वह औने पौने दामों में बेचने पर मजबूर है। बाजरे की फसल सरकार 2150 रुपए प्रति क्विंटल सर्मथन मुल्य पर खरीद रही है। जबकि प्रति एकड़ कटाई 4 से 6 हजार रूपए तो मजदूर ले जाते है। मंडी तक लाने के किराया, तूडी आदि का हिसाब लगाये तो बाजरे की फसल में किसान को मजदूरी भी नसीब नहीं हो रही है। ऐसी हालत में किसानों की आमदनी दुगनी कैसे होगी।

किसान महावीर सिंह जोनियावास का कहना है कि उन्होंने अपनी 6 एकड़ भूमि में लगाई गई बाजरे की फसल कर पंजीकरण कराया था। लेकिन विभागीय खामियों के कारण केवल पांच एकड़ का ही पंजीकरण हुआ है। सरकार भी प्रति एकड़ 8 क्विंटल बाजारा ही खरीद रही है। खेष बाजरे की फसल उन्हें फिर औने पौने दामों पर मजबूर होना पडेगा।

सरकार खरीद प्रक्रिया को जटिल कर रही

किसान अमर जीत सिंह प्रधान याकुबपुर का कहना है कि चाहे किसी की भी सरकार रही हो किसान हमेशा घाटे में रहा है। सरकार द्वारा लागू किया गया तीन बील अधिनियम किसान, मजदूर, व्यापारी ही नहीं बल्कि सभी वर्ग के लोग प्रभावित होंगे। किसान के पास फसल भंडारण की व्यवस्था नहीं होने के चलते समस्या का सामना करना होगा। सरकार खरीद प्रक्रिया को और जटिल कर रही है। किसान पंजीकरण के लिए धक्के खा रहा है। सुंदर सिंह यादव आढ़ती का कहना है कि मंडी में खरीद का कार्य तो ठीक चल रहा है। खरीद एजेंसी प्रति एकड़ 8 क्विंटल बाजारा खरीद रही है। फसल के पंजीकरए के अंदर किसानों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। किसानों ने बाजरे की फसल ज्यादा एकड़ में बोई और पंजीकरण कम का हुआ है। जिसके कारण समस्या आ रही है। मंडी में सफाई व्यवस्था ना के बराबर है। सब राम भरोसे चल रहा है।

खरीद प्रक्रिया व्यवस्था से खुश नहीं

बलवान सिंह का कहना है कि वह मंडी बाजरे की फल लेकर आये है। सरकार 8 क्विंटल की खरीद कर रही है और प्रति एकड़ पैदावर 40-45 मन की हो रही है। एक डेढ माह से बाजरे की फसल निकाल कर खेत में डाले हो गए। वह खरीद से खुश नहीं है। 700 से 800 रुपए ट्रैकटर ट्राली का किराया देकर फसल लेकर मंडी में आये है उन्हें शेष फसल को वापिस ले जाना पडेगा।  अमरनाथ गोयल अध्यक्ष व्यापार मंडल का कहना है कि खरीद के दौरान पोर्टल चलना  नहीं चलना एक बड़ी समस्या है। किसान सांय तक परेशान हो जाता है। शनिवार तीन अक्टूबर को खरीद शुरु हुई थी। उसमें 24 गेट पास निकले जबकि 54 किसान अपनी बाजरे की फसल लेकर आये थे। 30 किसान सांय तक परेशान होते रहे। किसी ने कोई समस्या हल नही की। आढ़तियों ने मिल कर किसानों की मदद की और उनका बाजरा फड पर उतरवा दिया। रविवार को पोर्टल चला तो उन किसानों को राहत मिली। उन्होंने बताया कि सफाई व्यवस्था में पहले से सुधार तो है लेकिन ज्यादा नहीं है। मंडी की सारी सड़के टूटी हुई है। उनकी मरम्मत नहीं की गई है। तीन बिल व्यपारियों के हीत में नहीं है। यह तो किसान पर निर्भर है कि वह सीधा अपनी फसल बेचते है या व्यापारी के माध्यम से। व्यापारियों का तो व्यापार धीरे धीरे समाप्त हो जाएगा।

करीब 1850 क्विंटल की खरीद

कमेटी के सचिव मनीष रोहिल्ला का कहना है कि मंडी में एक अक्टूबर से खरीद शुरु की जानी थी। लेकिन उपर से किसानों के पास मैसिज नहीं आने के कारण दो दिन बाद खरीद शुरु हुई है। मंडी में 70 से 75 किसान रोज अपनी फसल लेकर मंडी में पहुंच रहे है। अभी तक करीब 1850 क्विंटल की खरीद की जा चुकी है। बिजली, पानी , सफाई की सुविधा पर विशेष ध्यान है। मंडी में फसल उतारने में किसी प्रकार कह समस्या ना आये इसके लिए खरीदे गए बाजरे की बोरियों का उठान शुरु हो गया है।

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