लघु कहानी : प्रहरी, डा. सुरेश वशिष्ठ

प्रहरी

राजपूताना संस्कृति में सैनिक युद्धभूमि से पीठ दिखाकर नहीं भागता । वीरगति को प्राप्त होना वह अपना सौभाग्य समझता है । झुंझुनू जिले के गांव मसलीसर में एक सैनिक की प्रतिमा है । कारगिल युद्ध में वह वीरगति को प्राप्त हुआ था । पूरे सैनिक सम्मान के साथ उसे विदाई दी गई थी । उसकी प्रतिमा उसके गांव में ही स्थापित की गई है । लोग उसकी वीरता के किस्से बड़े चाव से सुनते और सुनाते हैं ।       

 आज रक्षाबंधन है । गांव के हर घर में पकवान बन रहे हैं । बहने अपने वीरों की कलाइयों पर राखी बांधने में व्यस्त दिखती हैं । नृत्य-संगीत और लोक धुनों पर गीतों की बहार है । लड़कियां परियों सी दमक रही हैंं । शादी-शुदा बहनेे अपनी ससुराल से अपने वीरों को राखी बांधने मायके आ-जा रही हैं । आदर सत्कार के साथ गांव की बहुएं उनके स्वागत में पलक-पावडे बिछा देती हैं । उन्हें उपहार स्वरूप कुछ भेंंट भी देती हैं । जगह-जगह नाच-नृत्य भी हो रहा है ।      

  समूह में लोकगीत गाती हुई बहनें अपने भाइयों की लंबी आयु की कामना करती हुई उनकी कलाइयों पर राखी सुशोभित कर रही हैंं । कोई आता है, कोई जाता है । गांव में खुशी की लहर है । 

  ‘लाडो’ भी अपने भाई की कलाई पर राखी बांधने हर बार ससुराल से अपने गांव आती है । आज भी वह आने वाली है । पूरा गांव– नर-नारी, युवक-युवतियां उसके पधारने की इंतजार में, घंटों रास्ते पर खड़े रहे । लाडो आई । स्वागत हुआ । लोकाचार करते हुए उसे लिवाकर ले जाने लगे । समूह में वधुुुएं गीत गाती हुई चलने लगी । सन्नाटा भी पसरने लगा था । यह ‘लाडो’ शहीद सैनिक गजराज सिंह की बहन है । अपने वीर की कलाई पर राखी बांधने मायके आई है ।      

  प्रतिमा स्थल जैसे-जैसे नजदीक आता गया, औरतों के गीत के बोल भी बदलने लगे । आंखें भी नम होने लगीं ।उनके गीत में शहीद गजराज सिंह की शान में, उसके कर्तव्य पालन का जिक्र सजने लगा था । उसकी वीरता को गा-कर सुनाया जा रहा था ।     

  पूरा गांव भाव विह्वल होने लगा था । अश्रुधारा फूटने लगी थी । गीत में थिरकन पैदा होने लगी थी । हृदय विदारक कोई हूक कंपन के साथ फूटने लगी थी । छलकने लगी थी ।       

‘लाडो’ के लिए उसका भाई आज भी जीवित है । उसकी यादों में, उसके रन्ध्र-रन्ध्र में वह आज भी जिंदा है । वह उसे देखती है, उस मौन प्रतिमा में । उस प्रतिमा में वह अपने शहीद भाई की जिंदा छवि को देखती है ।      

अपार जनसमूह के होंठ थिरथिराने लगे । वीर की कलाई पर राखी बांधते समय लाडो भी रो पड़ी । रोते-रोते मुख से शब्द फूटे–“कोई बोल बोल दे मेरे वीर…कुछ तो कह दे ! ” भाव विह्वल वह सिसक पड़ी । औरों का सब्र भी छलक पड़ा । नेत्रों से जलधारा बहने लगी । देश पर जान न्योछावर करने वाला अमर शहीद गजराज सिंह अब भी मौन खड़ा रहा । अपना रक्षात्मक कवच धारण किए वह एक प्रखर प्रहरी की तरह तैनात खड़ा रहा ।   

  ‘लाडो’ की सिसकियां अब भी विद्यमान थींं । पूरा गांव रो रहा था । अपने भाई की प्रतिमा से लिपटकर लाडो भी बहुत रोई थी । प्रतिमा स्थल पर लोग देशभक्ति गीत गाने लगे थे ।ऐसे योद्धा को स्मरण कर सिसक भी रहे थे और ‘वंदे मातरम्’ के बाद लाडो ने अपन वीर को सल्यूट भी किया था । ‘जय हिंद’ के नारों से समस्त वातावरण गुंजित हो चला था ।

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