-कमलेश भारतीय दोनों घटनायें उत्तरप्रदेश की हैं । अयोध्या में अट्ठाइस साल पहले बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराया गया और उस मौके पर लालकृष्ण आडवाणी , मुरली मनोहर जोशी, साध्वी उमा भारती , ऋतम्भरा और कितने ही महत्त्वपूर्ण लोग मौजूद थे । इस कारण इन्हें लोगों को उकसा कर बाबरी मस्जिद का जर्जर ढांचा गिराने का आरोपी माना गया और अट्ठाइस साल बाद फैसला हुआ कि जी नहीं , इन नेताओं ने किसी को नहीं उकसाया यह तो अचानक भीड़ उग्र हो गयी और ढांचा गिरा दिया । इसका फैसला करने में अट्ठाइस साल लग गये ।और किसी का तो कुछ बिगड़ा या नहीं लेकिन सबसे बड़ा खामियाजा लालकृष्ण आडवाणी जी को उठाना पड़ा इस केस में नामजद होने का कि वे राष्ट्रपति पद के योग्य न माने गये । कल टीवी के सामने बैठे फैसले का इंतज़ार करते दिखे पर कहीं मन में मलाल जरूर रहा होगा कि काश , यह फैसला काफी पहले ही गया होता तो वे कुछ और होते । वक्त वक्त की बात है और वक्त किसी को माफ नहीं करता । जो रथयात्रा लेकर निकले और दो सांसदों से भाजपा को सत्ता तक लाये , वही नेता आज अज्ञातवास झेलने को विवश है । इनके साथ ही मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती के हिस्से भी यही अज्ञातवास आया । फिर भी फैसले पर दिन भर लड्डू बंटते रहे और जय श्री राम के जयकारे सुनते रहे । दूसरी घटना बड़ी हृदयविदारक है । उत्तर प्रदेश से ही है । हाथरस में दलित लड़की से न केवल गैंग रेप होता है बल्कि उसकी जुबान तक काट दी जाती है और निर्भय जैसी यातनाएं दी जाती हैः और आखिर पंद्रह दिन बाद वह संकेतों में सब बताने के बाद दम तोड़ देती है । इसके विरोध को दबाने के लिए आधी रात को पुलिस की देखरेख में अंतिम संस्कार तक कर दिया जाता है । किसी पत्रकार को झांकने भी नहीः दिया जाता । यहां योगी आदित्यनाथ जी मुख्यमंत्री हैं और विकास दुबे के साथियों के एनकाउंटर कर वाहवाही लूटने वाले मुख्यमंत्री को दलित बेटी की चिंता नहीं सताई । किसी ने फेसबुक पर बहुत कमाल की बात लिखी कि यदि इस बेटी के ये रेपिस्ट मुस्लिम समाज से होते तो यह बेटी कब की दलित न रह कर हिंदू बना दी गयी होती और दंगे शुरू हो गये होते । अफसोस वे हमारे ही समाज से थे पर वे हमारे कैसे हुए ? जिन्होंने कलंकित किया हमें ? बताइए योगी जी । अब किस किस को उत्तरप्रदेश आने से रोकेंगे ? प्रियंका गांधी को या अखिलेश को या मायावती को ? शुक्र है पहली बार मायावती ने भाजपा के सुर में सुर नहीं मिलाया । पहली बार आलोचना की ।अब बताइये कि जय श्री राम के जयकारे लगायें या शर्म शर्म के नारे लगायें ? इंसाफ के लिए मोमबत्ती जलायें या बस चुप कर जायें ? होंठ सी लें क्योंकि मीडिया को मुम्बई की फिल्मी दुनिया से फुर्सत नहीं है । सुशांत केस को भटकाने का जिम्मा जो ले रखा है । खैर । बेटी बचाओ या पढ़ाओ पर इन शर्मनाक स्थितियों से बचाओ । प्रियंका रेड्डी याद होगी ? किस किस को याद करोगे? Post navigation क्या शिक्षक पात्रता परीक्षा अभ्यर्थियों के साथ सरकारी ठगी है ? सत्य, अंहिसा व सत्याग्रह पूरी दुनिया के लिए प्ररेणा का स्त्रोत