–एमएसपी की गारंटी नहीं की और फसलों के दाम और खरीद की सुरक्षा तथा गरीबों की खाने की सुरक्षा, विदेशी कम्पनियों व कार्पोरेट के हाथों सौंपी जायेगी तो देश भर में आशांति– कार्पोरेट भगाओ किसानी बचाओ के लिए दिल्ली घेराव की योजना– अगली योजना 27 सितम्बर को दिल्ली मे हरियाणा, पंजाब व पश्चिम उप्र के संगठनों की संयुक्त बैठक मे बनेगी– एआईकेएससीसी ने माननीय राष्ट्रपति से अपील की कि इन कानूनों को स्वीकृति न दें– गांवों में पुतला दहन शुरू– 25 सितम्बर को पंजाब, हरियाणा व स्थानीय इलाकों में बंद और पूरे देश में चक्का जाम व विरोध सभायें– बिलों का समर्थन करने वाले दलों का विभिन्न रूपों में सामाजिक बहिष्कार अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिती ने 20 सितम्बर को भारतीय किसानों के जीवन तथा संसदीय इतिहास का सबसे काला दिवस बताया है। अपने किसानों के हित के विपरीत विदेशी कम्पनियों व कार्पोरेट के पक्ष में सरकार ने संसद के सारे नियमों को ताक पर रखा। सरकार गलत तथ्य पेश कर रही है और भ्रामक तर्क दे रही है। जहां वह सरकारी समर्थन मूल्य व सरकारी खरीद की सुविधा छीन रही है, प्रधानमंत्री यह कह रहे हैं कि वह किसानों के हित में सबकुछ करेंगे। प्रधानमंत्री ने अभी यह कानून पारित कर ग्रामीण इलाकों में कार्पोरेट व विदेशी कम्पनियों को मंडियां खोलने की अनुमति दी है। अबतक इनपर प्रतिबंध था क्योंकि ये किसानों और उपभोक्ताओं दोनों को धोखा देते थे। ये सस्ता खरीद कर मंहगा बेचते हैं और जमाखोरी, कालाबाजारी कर अति मुनाफा खींचते थे। प्रधानमंत्री कहते हैं कि वह किसानों को बिचैलियों, अढ़तियो से बचा रहे हैं। यह अढ़तिये सरकार की ओर से खरीद करते हैं। इस क्रम में यह किसानों को कर्ज देते हैं और गैर कानूनी ढ़ग से भारी सूद वसूलते हैं। किसान सूद का विरोध कर रहे थे सरकारी खरीद का नहीं। सरकार ने सूदखोरी होने दी थी जबकि इसे रोकना चाहिए था। अब सरकार ने खुद को फसल की खरीदारी की जिम्मेदारी से पूरी तरह हटा लिया है। यह वैसा है जैसे सरकारी अस्पताल के काम न करने पर उन्हें पूरी तरह से बंद कर दिया जाये और निजी क्षेत्र की लूट के लिए चिकित्सा खोल दी जाये। यह कानून किसानों की फसल खरीदनें के लिये विदशी कम्पनियो ंव कार्पोरेट को खुली छूट देते हैं पर यह कानून न तो एमएसपी की घोंषणा के लिये सरकार को बाध्य करते हैं और न ही उस दाम पर न खरीदने पर निजी कम्पनी को सजा देने का प्रावधान करते हैं। एआईकेएससीसी ने सी-2$ 50 फीसदी पर एमएसपी और अस्वस्थ सरकारी खरीद के कानून पेश किये थे। मोदी सरकार ने उन कानूनों को झांक कर भी नहीं देखा है। प्रधानमंत्री कहते हैं कि किसान अब आजाद है कि वह अपनी फसल जिसको चाहे बेचे, जहां चाहे बेचें और जिस दाम पर चाहे बेचें। किसान अपनी फसल खेत से दूर नहीं ले जा सकता और करीब की मंडी में ही बेच सकता है। अब जब केवल कार्पोरेट खरीदार होगा और सरकार गायब होगी तो फसल के दाम औंधे मुह गिरेंगे। हम आरएसएस भाजपा सरकार को चुनौती देते हैं कि वह एमएसपी व सरकारी खरीद का कानून बनाये और हर मंडी में कार्पोरेट के समक्ष कम्पटीसन में खड़ी रहे। केवल इस स्थिति में किसानों को बेचने की आजादी मिलेगी। कानून में ठेका खेती का प्रावधान। यह कार्पोरेट द्वारा पूर्व तय दामों पर फसल खरीदने का ‘सुरक्षा कवच’ है। यह किसानों द्वारा खुले बाजार में लाभकारी रेट पर अपनी फसल बेचने पर रोक लगाता है। इस कानून में ठेके में मध्यस्थ का प्रावधान है जो तय करेगा कि खेती में कुछ गलत काम तो नहीं हुआ या फसल क्वालिटी क्या है, जिससे नमी आदि के नाम पर तय रेट घटाये जा सकते हैं। ठेकों के अमल के लिये कोई पेनाल्टी का प्रावधान नहीं है, बल्कि पेमेंट करने में कम्पनियों को 3 दिन की छूट है। विवाद कोर्टो में नहीं जा सकते और इनका निपटारा एसडीएम द्वारा नियुक्त एक कमेटी करेगी या एसडीएम खुद करेगा। यह कानून कार्पोरेट को किसानों की जमीन एकत्र करके खेती कराने की छूट देता है, दाम गिरने या फसल के नुकसान के घाटे को किसान पर लादता है, उसपर कर्ज का बोझ बढ़ाता है और सारा मुनाफा कम्पनियों को सौंपता है। आशंका है कि लागत के सामान पर नियंत्रण तथा आयात-निर्यात की छूट कम्पनियों को देकर यह बाजारों को गेहूं, चावल, दाल, दूध, सोया आदि से पाट देगा और इनके दाम बहुत गिरा देगा। इससे किसानों की ‘आत्मनिर्भरता’ और घटेगी और वह खेती से बेदखल होंगे। ‘आत्मनिर्भरता’: कोई भी देश अपने खाने पर विदेशी लुटेरों को नियंत्रण करा कर आगे नहीं बढ़ा है। मोदी सरकार यही कर रही है। दुनिया भर में सरकारें कम्पनियों से अपने किसानों की रक्षा करती है। अनियंत्रित कार्पोरेट पर सरकारी खरीद व दाम आस्वासन नियंत्रण का एक मात्र तरीका है।किसान भारी कर्जो में लदे हैं, जमीन से बेदखल हो रहें हैं, आत्म हत्या कर रहे हैं और प्रशासक निश्चििंत बैठे हैं। भारतीय कारपोरेट के बड़े संगठन फिक्की व सीआईआई लम्बे समय से अनाज की सरकारी खरीद रोकने तथा इसके बाजार को खोलने की मांग करते रहे हैं। विश्व व्यापार संगठन राशन की दुकाने बंद करने को कहता रहा है। यह कानून अनाज, तिलहन, दलहन व सब्जियों को आवश्यक वस्तुओं की श्रेणी से हटाते हैं और अब इनकी बिक्री व दाम पर सरकारी नियंत्रण समाप्त हो जाएगा। जनता का भोजन अब आवश्यक नहीं होगा और खाद्यान्न श्रृंखला, अधिरचना तथा कृषि बाजारों पर कारपोरेट का कब्जा होगा। 75 करोड़ राशन के लाभार्थी कारपोरेट से खाना खरीदने के लिए मजबूर होंगे, जिनके बाजार की ताकत बढ़ जाएगी। एआईकेएससीसी कर्जा मुक्ति पूरा दाम: की लड़ाई किसानो के हित में उनकी जीत तक लड़ने के लिए प्रतिबद्ध है। एआईकेएससीसी सभी किसानों, खेत मजदूरों, आदिवासियों, मछुआरों, ग्रामीण व्यापारियों, जनवादी ताकतों, ट्रेड यूनियन पार्टियों को कंधे से कंधा मिलाने के लिए अपील करती है। यह आन्दोलन नए बिजली बिल 2020, जो किसानों व कमजोर तबकों के लिए बिजली की तमाम रियायती दरें समाप्त करता है के विरुद्ध तथा डीजल-पेट्रोल के दाम घटाने के लिए भी प्रतिबद्ध है। देश कई टेªड यूनियनों व जनवादी संगठनों ने किसानों के आंदालन का समर्थन किया है। Post navigation लौटा मी टू : पायल घोष ने लगाये अनुराग कश्यप पर आरोप किसानों को बड़ी-बडी कम्पनियों का गुलाम बनाने का सुनियोजित षडयंत्र : विद्रोही