बिल्डर यदि वित्तीय संस्था अथवा बैंक का ऋण नहीं चुकाता है तो भी अलाटी के अधिकारों पर नही पडे़गा विपरीत असर- डा. के के खंडेलवाल

-हरेरा गुरुग्राम द्वारा फलैट खरीददारों के हितो की रक्षा के लिये लिया अभूतपूर्व फैसला।

गुरूग्राम, 18 सितंबर। बिल्डर अथवा डैव्लपर फलैट निर्माण आदि के लिए बैंक अथवा किसी वित्तीय संस्था से जमीन या रियल एस्टेट प्रोजेक्ट को गिरवी रखकर ऋण लेता है और उसकी समय पर अदायगी नही करता है तो भी अलाॅटी का पैसा सुरक्षित रहेगा। यह अभूतपूर्व, ऐतिहासिक तथा समय अनुकूल फैसला अलाॅटी के हितों की रक्षा करने के लिए हरेरा गुरूग्राम ने लिया है।

आज इस फैसले की जानकारी देते हुए हरेरा गुरूग्राम के चेयरमैन डा. के के खंडेलवाल ने गुरूग्राम के लोक निर्माण विश्राम गृह में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में बताया कि रियल स्टेट प्रोजक्ट व अलाटियों से प्राप्त राशि के बैंको को गिरवी रखने की स्थिति में बैंक अथवा वित्तीय संस्था भी प्रमोटर की परिभाषा में आएगी तथा अलाटियों के प्रति उत्तरदायी होगी।  उन्होंने हरेरा गुरूग्राम के दीपक चैधरी बनाम मैसर्स पीएनबी हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड मामले में सुनाए गए फैसले का उल्लेख करते हुए बताया कि इस मामले में सुपरटेक लिमिटेड प्रमोटर की भूमिका में था, जिसे सरकार ने लाइसैंस नही दिया था और ना ही वह कोलाब्रेटर था। सुपरटेक लिमिटेड ने पीएनबी फाइनेंस लिमिटेड से सुपरटेक हयूज नामक प्रोजेक्ट के निर्माण के लिए ऋण लिया जिसमें मैसर्स सर्व रियलटर प्राइवेट लिमिटेड , जिसके नाम प्रोजेक्ट का लाइसैंस जारी किया गया था, भी हिस्सेदार था। परंतु मैसर्स सुपरटेक लिमिटेड ऋण की वापसी करने में नाकाम रहा और डिफाल्टर हो गया। परिणामस्वरूप बैंक ने प्रोजेक्ट को टेकओवर करके ई-आॅक्शन पर डाल दिया। दीपक चैधरी नामक अलाॅटी ने इस मामले में हरेरा से हस्तक्षेप करने का आग्रह किया। मामले की गंभीरता को देखते हुए हरेरा गुरूग्राम ने ई-आॅक्शन प्रक्रिया को स्टे कर दिया क्योंकि नीलामी के लिए अथोरिटी की पूर्व अनुमति नही ली गई थी और इससे प्रोजेक्ट में शामिल 950 अलाॅटियों के हितों का कुठाराघात होता जिन्होंने इस प्रोजेक्ट में 328 करोड़ रूप्ये से अधिक की राशि का निवेश किया है। 

इस मामले में सुनाए गए अपने ऐतिहासिक फैसले में हरेरा गुरूग्राम ने कहा है कि बैंक अथवा वित्तीय संस्था की ओर से प्रोजेक्ट की प्रगति का आंकलन तथा माॅनीटरिंग में जो कमी रही उसका खामियाजा अलाॅटी क्यों भुगते। अथोरिटी ने यह भी कहा कि वह बैंक द्वारा अपने ऋण की वसूली के लिए प्रोजेक्ट की निलामी के विरोध में नही है लेकिन बैंक अलाॅटियों के हितों की रक्षा करते हुए निलामी कर सकता है। डा. खंडेलवाल ने कहा कि हरेरा गुरूग्राम का इस मामले में यही प्रयास रहा कि प्रोजेक्ट पूरा हो और उसके बाद ऋण देने वाली संस्था अपनी धनराशि की वसूली तैयार फलैट अथवा यूनिट को बेचकर कर सकती है। इससे अलाॅटियों के हितों की रक्षा होगी। उन्होंने कहा कि चूंकि प्रोजेक्ट हरेरा में पंजीकृत है इसलिए प्रमोटर तथा रियल एस्टेट एजेंट या अलाॅटी तीनों में से कोई भी पक्ष अपनी जिम्मेदारी पूरी नही करता है तो अन्य प्रभावित पक्ष हरेरा के पास आ सकता है। हरेरा उस पक्ष को अपनी जिम्मेदारी पूरी करने की हिदायत देगा। उन्होंने बताया कि इस मामले में ऋण प्रदाता बैंक को हिदायत दी गई हैं ंिक प्रोजेक्ट हरेरा में पंजीकृत होने की वजह से अथाॅरिटी बीच में है और सेफटी वाॅल्व का काम कर रही है। 

उन्होंने बताया कि चूंकि प्रोजेक्ट मे युनिट के लिये जौ पैसा अलाटी ने लगाया ह,ै उसके लिये बिल्डर बायर ऐग्रीमेंट मे जोे संबंध बनता है, वह अलाटी और प्रोमोटर के बीच में था। वित्तीय संस्थान जिसने प्रोमोटर को लोन दिया है उनका अलाटी से कोई सीधा सम्बन्ध नही है।

वित्तीय संस्थान ने इसलिये टेक ओवर किया कि उन्होने अपनी वसूली करनी थी, लेकिन सरफैसरी एक्ट मे यह प्रावधान है कि वह प्रोजेक्ट की सभी देनदारियों तथा जिम्मेवारियों को ध्यान में रखते हुए निलाम कर सकता है। हरियाणा रीयल स्टेट रेगूलेटरी अथोरिटी गुरूग्राम द्वारा निर्धारित  किया गया है कि गिरवी रखे गए प्रोजेक्ट को वित्तीय संस्थान टेक ओवर करता है तो वह प्रमोटर के स्थान पर आ जायेगा और वह प्रोमोटर कहलाएगा। ऐसी स्थिति में अलाॅटियों के हितों को वित्तीय संस्थान को की जाने वाली देनदारियांे के अधीन नही रखा जा सकता। बिल्डर  बायर एग्रीमेंट होने के बाद कोई भी प्रोपर्टी गिरवी नहीं रखी जा सकती है। यदि गिरवी रखी गई तो अलाॅटी के अधिकार सुरक्षित रहेगे।

 इस निर्णय से हरेरा गुरूग्राम द्वारा पहली बार यह निधार्रित किया गया है कि  वित्तीय संस्थान, जिनके पास सम्पति गिरवी है और जिसने टेक आवर किया है, वह प्रमोटर की परिभाषा मे आएगा और उसकी देनदारी  की वही जिम्मेवारी बनी रहेगी जो मूल रूप से पहले प्रोमेटर अथवा बिल्डर की थी। यदि वह सम्पति को  निलाम करते हंै तो वह सारे एसेट घोषित  करेगें और ओथेरिटी से अनुंमति लेगे। उसके बाद ही नीलाम कर सकते हैं।  वित्तीय संस्थान यह सुनिश्चित करेंगे कि अलाॅटियों से प्राप्त 70 प्रतिशत राशि का प्रयोग प्रोजेक्ट को पूरा करने  पर खर्च होगा ।

यदि यह पाया गया कि कोई वित्तीय संस्थान प्राधिकरण के अनुमोदन के बिना परियोजना को नीलाम करने मे शामिल है तो इसे गम्भीरता से लिया जायेगा तथा उस देनदार प्रोमोटर व वित्तीय संस्थान /व्यक्तियों के खिलाफ दंडात्मक कार्यवाही आरम्भ की जायेगी। 

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