भाजपा ने प्रथम बार मानी अपनी गलती, लगी डैमेज कंट्रोल में

भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

कल पीपली में किसानों पर हुआ लाठीचार्ज आज सारा दिन हरियाणा के राजनैतिक गलियारों में छाया रहा। पक्ष या विपक्ष दोनों ने स्वीकारा कि किसानों पर लाठीचार्ज करना अनुचित था। जबसे भाजपा सरकार बनी है, तब से यह प्रथम अवसर है कि सत्ता पक्ष अपनी गलती को सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर रहा है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि भाजपा को लगने लगा है कि वह हरियाणा में अपना जनाधार खो चुकी है।

कल सर्वप्रथम दिग्विजय चौटाला ने कहा कि लाठीचार्ज अनुचित है, इसकी जांच होनी चाहिए। उसके पश्चात पूर्व वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु ने कहा कि यह नहीं होना चाहिए था, बहुत दुखद है, किसानों को समझाना चाहिए था इस गलती को सुधारना पड़ेगा। आज भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ ने भी माना कि यह गलत हुआ है और डैमेज कंट्रोल करने के लिए कमेटी गठित कर दी है।

भाजपा के गलियारों में यह चर्चा है कि जबसे ओमप्रकाश धनखड़ प्रदेश अध्यक्ष बने हैं, तभी से ही वह किसानों की तीनों अध्यादेशों के बारे में हर मीटिंग में चर्चा करते रहे हैं और किसान सेल के मार्फत भी बात कहते रहे हैं। वह केवल ध्यान देते रहे, धरातल पर जाकर किसानों से मिलकर किसानों की समस्याओं को समझने का और उनकी मानसिकता को पढऩे का प्रयास नहीं किया तथा शायद इसी का कारण है कि सरकार अपने प्रदेश अध्यक्ष के प्रयासों पर विश्वास कर किसान रैली को हलके में लेती रही।

अब इतनी बहुत बड़ी घटना हो तो उसका दोषी एक को तो नहीं ठहराया जा सकता। अत: चर्चा यह भी है कि दुष्यंत चौटाला किसानों के नेता के नाम से ही सत्ता में आए हैं। अत: वह किसानों की मनोवृति को समझ रहे होंगे और इस घटना से लगता है कि दुष्यंत चौटाला को बड़ा धक्का लगा है और शायद इस धक्के को कम करने के लिए ही दिग्विजय चौटाला का ब्यान आया है। दूसरी ओर संपूर्ण जिम्मेदारी तो मुख्यमंत्री की होती है। मुख्यमंत्री कल ही मेदांता से आए। अत: उन्हें इस जिम्मेदारी से मुक्त भी किया जा सकता है परंतु वह तब जब वह बीमारी में सरकारी कामकाज न कर रहे होते। वह तो वर्चुअल रैली से संपर्क में रहते ही थे। तो क्या इसका जिम्मेदार उन्हें माना जाए। आगे सोचें तो प्रदेश की कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी प्रदेश के गृहमंत्री की होती है और गृहमंत्री अनिल विज हैं। अत: प्रश्न उन पर भी बहुत बड़ा उठता है कि वह इन परिस्थितियों से कैसे अंजान रहे और जब किसानों का रैला आ रहा था तो वह क्या उनके आधीन पुलिस महकमे को निर्देश नहीं दे सकते थे कि इन्हें शांतिपूर्ण ढंग से रोका जाए और हिंसा न की जाए। यूं देखो तो कृषि मंत्री का भी नाम लिया जा सकता है पर खैर फिलहाल इतना ही कहा जाएगा कि सरकार इस घटना से हतप्रभ है और यह सोचने पर मजबूर है कि कैसे डैमेज कंट्रोल किया जाए?

अब बात करें विपक्ष की तो कहा जा सकता है कि विपक्ष भी पूर्ण रूप से हमलावर रहा। चाहे निर्दलीय विधायक बलराज कुंडू की बात करें या कांग्रेस के भूपेंद्र सिंह हुड्डा, रणदीप सुरजेवाला, कुलदीप बिश्नोई, चंद्रमोहन व अन्य विधायक हल्ला बोल रहे हैं लेकिन एक बात विशेष रूप से ध्यान देने लायक है कि कांग्रेस के हमले में कांग्रेसी अमर्यादित नजर नहीं आए। भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि जब कोरोना का डर समाप्त हो जाएगा, तब बहुत बड़ी रैली करेंगे। रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि सरकार को किसानों के कदमों में झुकाना होगा। हां, आप पार्टी की चुप्पी कुछ समझ से बाहर है।

आने वाले समय की संभावनाएं

आने वाले समय में यह माना जा सकता है कि हरियाणा गठबंधन सरकार में इस कांड का जिम्मेदार एक-दूसरे को ठहराने में खटास ला सकती हैं। दूसरी ओर भाजपा के अपने मंत्रियों और संगठन में भी वैचारिक मतभेद खड़े हो सकते हैं। वह कहा जाता है न कि मुसीबत में ही समझ और धैर्य की परीक्षा होती है। तो वही अब भाजपा का समय है। शायद अब यह बरोदा उपचुनाव से अधिक किसान संगठनों की मांगों के बारे में अधिक ध्यान करेंगे।

वैसे इस बार घटना के पश्चात जो स्थितियां बन रही हैं, वह निसंदेह आश्चर्यचकित करने वाली हैं, क्योंकि गठबंधन में शामिल दोनों दलों के शीर्ष नेता इस घटना को गलत बता रहे हैं। वरना तो इस सरकार में मेरी बात हुई प्रवक्ताओं से तो उनका कहना है कि जो कोई कमी हो, उसे कांग्रेस के ऊपर डाल दो। अत: यह अचंभित करने वाला है कि अब तक यह ध्यान नहीं आया कि यह आंदोलन किसानों का नहीं कांग्रेस द्वारा प्रयोजित किया गया था, शायद आ जाए।

क्या किसानों को समझा पाएगी भाजपा की कमेटी :

प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ ने तीन सांसदों को लेकर कमेटी बनाई है। इस विचार करने के लिए और डैमेज कंट्रोल करने के लिए तथा अपने उपलब्ध सभी कार्यकर्ताओं, किसान सेल आदि को इसमें किसानों को समझाने के लिए निर्देश दिए हैं। प्रयास करना ही नियति है लेकिन सफलता प्रभु वशीभूत है। अत: प्रश्न यहां भी यही खड़ा होता है कि इन्हें सफलता मिलेगी। जो किसान लाठी खाकर, दुखी होकर आक्रोश में बैठा है, वह इनकी बात सुनेगा? नहीं, यह समझाने जाएं और अप्रिय स्थिति बन जाए ऐसा भी संभव है। परंतु मेरे अनुमान से राजनीति में आयोजक ही बहुत समझदार होते हैं। वह हाइकमान के निर्देश भी पूरे कर देते हैं और अपने ही लोगों में बैठकर ब्यान जारी कर, अखबारों में छपवा अपने कार्य की पूर्ति का प्रमाण दे देते हैं। और ऐसे प्रमाणों से क्या जमीनी स्तर पर किसानों की मानसिकता में फर्क पड़ेगा?

आज प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ ने कहा है कि अभी अध्यादेश है, कानून नहीं बना है। हम इस पर विचार करेंगे। पर राजनीति के जानकारों का कहना है कि यह सब केवल और केवल किसानों को भ्रमित करने का ब्यान है। वास्तव में तो केंद्र सरकार अर्थात मोदी द्वारा जारी किए गए अध्यादेश पर टिप्पणी करने का या सुधार करने का साहस प्रदेश अध्यक्ष या सरकार में है ही नहीं।

कोरोना काल में मुसीबत:

हरियाणा की त्रासदी देखिए, एक ओर रोज कोरोना के केस बढ़ते जा रहे हैं। भाजपा और सरकार की ओर से भी आइसीएमआर के नियमों का पालन नहीं हो रहा है। जब प्रदेश का नागरिक अपनी जान की चिंता में पड़ा है, ऐसे समय में पहले तो भाजपा अपने प्रचार में लगी रही है और तब भी लगी रहेगी तथा अब किसान समस्या को सुलझाने के लिए सारे संगठन को निर्देश दे दिए हैं। यह सरकार और प्रदेश अध्यक्ष क्यों नहीं समझते कि इंसान के लिए जान और स्वास्थ सबसे महत्वपूर्ण होता है। जब जान और स्वास्थ ही नहीं रहेगा तो अन्य सुविधाएं किस काम की। तो हम तो सरकार से यही कहेंगे कि यदि जनता को अपने पक्ष में करना है तो सभी ओर से ध्यान हटाकर कोविड-19 के इलाज की संभावनाओं पर सारा ध्यान लगाना चाहिए और स्वास्थ सेवाओं को मजबूत कर नागरिकों में विश्वास जमाना चाहिए।

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