भारत सारथी/धर्मपाल वर्मा

चंडीगढ़। कहने वाले कुछ भी कहें बिहार का नाम लें, यूपी का या चाहे पश्चिमी बंगाल का, सबसे घिसी-पिटी राजनीति हरियाणा की है। यहां परिवारवाद, जातिवाद, आरक्षण विवाद, क्षेत्रवाद और भी न जाने कितने वाद हावी रहते हैं। इनसे भी बड़ा एक वाद है यहां के राजनीतिक क्षत्रपों का, जो खुद के वर्चस्व को कायम करने के लिए पार्टी की नीतियों, नेताओं को समय आते ही धता बता देते हैं, वे खुद का फायदा पहले और पार्टी का फायदा बाद में देखते हैं। इन सबसे लोहा लेना छोटी बात नहीं है।

आप समझ सकते हैं कि अहीरवाल में राव इंद्रजीत सिंह अपने लिए पहले और पार्टी के लिए बाद में सोचते हैं, वे खुद बड़े और पार्टी छोटी रहे ऐसा प्रयास करते रहे हैं। यह अलग बात है कि कई बार पार्टी ने उन्हें सिखाया तो कई बार उन्होंने पार्टी को झुकाया और दबाव बनाया। ऐसे ही कांग्रेस के भूपेंद्र सिंह हुड्डा कई बार कर चुके हैं और तो और चौधरी देवीलाल, चौधरी बंसीलाल के परिवार की इस समय की ध्वजवाहक किरण चौधरी ने समय आया तो कांग्रेस को कड़ा जवाब देने की कोशिश की, भारतीय जनता पार्टी में जाने की धमकी दे डाली, चुनाव आया तो योजना बनाकर पार्टी और पार्टी के आदेशों को दरकिनार कर कहीं कथित तौर पर जेपी दलाल को हटाने का काम किया तो कहीं नैना चौटाला को जिताने और रणबीर महेंद्रा को हराने का काम किया.

ऐसे ही चौधरी देवीलाल के परिवार को देख लें, उन्होंने व्यक्तिगत हित को सर्वोपरि रखकर किसी को जिताया, किसी को हराया, जरनल सीट पर दलित को खड़ा कर दिया, किसी ने किसी को जिताने के लिए कमजोर उम्मीदवार को खड़ा कर दिया। यह जो हालात हैं वह हरियाणा से बाहर कम ही जगह देखने को मिलते हैं।

एक बात और है यहां के मतदाता पार्टी के अध्यक्षों को सबक सिखाने का काम भी करते रहे है, यहां सत्ता से बाहर यानी विपक्ष की पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनना तो काम आ जाता है लेकिन सत्तारूढ़ दल के अध्यक्ष के लिए प्रधानी बाकायदा कांटो भरा होता है। इसका प्रमाण कांग्रेस के धर्मपाल सिंह मलिक हैं और भारतीय जनता पार्टी के सुभाष बराला। आप इन दोनों से बात करेंगे तो दोनों कहेंगे कि हम मुख्यमंत्री तो नहीं थे परंतु मुख्यमंत्री के विश्वासपात्र जरूर थे, हमने इतने काम किए कि उसका कोई दूसरा उदाहरण नहीं है परंतु लोगों में चुनाव में ऐसी हालत बनाई कि इनकी हार की देश भर में चर्चा हो गई। ऐसा ही एक उदाहरण पंजाब के भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष विजय सापला का भी है, जो न केवल प्रधान थे बल्कि केंद्र में मंत्री भी थे, हारे ऐसे की इस दुर्गति का खुद को भी यकीन नहीं होगा।

हरियाणा की राजनीति का एक कमजोर और छोटा पक्ष यह है भी है कि यहां मुख्यमंत्री तक इस तरह से काम करते हैं कि वह एक जिले मात्र के मुख्यमंत्री की तरह काम करते नजर आते हैं, सब तो ऐसे नहीं है लेकिन कई मुख्यमंत्रियों पर इस तरह के आरोप लगते रहे। भूपेंद्र सिंह हुड्डा को रोहतक, सोनीपत, झज्जर का पक्षधर होने की चर्चा रहती है। चौधरी भजन लाल हिसार की बात करते थे, उन्होंने हिसार के विकास में बड़ा योगदान दिया। चौधरी ओमप्रकाश चौटाला पर कभी सिरसा को आगे ले जाने के लिए कोसा जाता था। इसी तरह स्वर्गीय चौधरी बंसीलाल पर भी कुछ लोग भिवानी जिले पर मेहरबान होने का आरोप लगाया करते थे परंतु जिसका लेवल प्रदेश का है, उसे जिले, उपमंडल तक सीमित रहकर नहीं चलना चाहिए।

भारतीय जनता पार्टी के नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ ने पिछले दिनों झज्जर जिले में अपने अभिनंदन समारोह के दौरान यह बयान देकर फिर एक नई चर्चा छेड़ दी कि उनके अध्यक्ष बनने पर हरियाणा की चौधर झज्जर जिले में आ गई है। धनखड़ साहब, आप तो प्रदेश के अध्यक्ष हैं, चौधर तो प्रदेश की है। यदि आप चौधर की ही बात करते हैं तो वह मुख्यमंत्री मनोहर लाल के हाथ में है और अगर व्यवहारिक बात करें तो असली ताकत मतलब चौधर उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला लिए फिर रहे हैं। मुख्यमंत्री के पास तो 5 विभाग हैं तो उपमुख्यमंत्री के पास 11, अब आप ही बताइए चौधरी कौन होगा लेकिन आप और सब भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता, नेता, विधायक और सांसद अच्छी तरह से जानते हैं कि हरियाणा की असली चौधर तो गुजरात के दो भाई प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित भाई शाह के हाथ में है। यहां उन्हीं की खुली खुलती है उन्हीं की बंद बनती है, सारे बड़े फैसले वही लेते हैं, बड़े अधिकारियों की पोस्टिंग वही करते हैं, वे जो चाहते हैं, वही होता है। आप लोग तो डाकिए की तरह दिखाई देते हो।

अभी श्री धनखड़ ने 19 तारीख को जिला अध्यक्षों की घोषणा की। यह जो सूची जारी हुई, उसमें श्री धनखड़ आपकी अपनी बहुत कम चल पाई है। असली हस्तक्षेप तो सांसदों, विधायकों और आलाकमान कर रहा है। आगे जान लीजिए, उन्होंने कहा कि 1 सप्ताह में पूरी कार्यकारिणी का गठन कर लेंगे, 2 सप्ताह बीत चुके हैं, फिर यह भी नई बात है कि पहले जिला के महासचिव नियुक्त होंगे और इन्हें जिलाध्यक्ष, प्रदेश अध्यक्ष नहीं बल्कि भाजपा आलाकमान नियुक्त करेगा। श्री धनखड़ को इसके लिए भी दिल्ली जाकर सूची समेटकर लानी होगी। जब नियुक्तियों का मामला सामने आता है तो लोग खुद बता देते हैं कि कौन किस खुशी से बंधा हुआ है, किसे किसने बनवाया है, कौन किसके साथ है और इनमें अध्यक्ष महोदय के कौन-कौन लोग हैं, बड़ा टेढ़ा मामला है।

श्री धनखड़ ने बरोदा उपचुनाव को लेकर तैयारियां की, उनमें सबसे महत्वपूर्ण यह रहा कि उन्होंने अपने विश्वासपात्र कैबिनेट मंत्री जेपी दलाल को बरोदा उपचुनाव में भाजपा का इंचार्ज बनवाया। संयोग से श्री दलाल उसी कृषि मंत्रालय के मंत्री हैं, जो कभी श्री धनखड़ के पास होता था। अब स्थिति यह है कि बरौदा का भाजपा का जनसंपर्क अभियान मतलब चुनावी अभियान कुंद होकर रह गया है, कारण कोरोना बताया गया है, कई लोगों को कोरोना हो गया। उनमें महासचिव सांसद संजय भाटिया और प्रभारी जेपी दलाल प्रमुख हैं, इनके संपर्क में ज्यादातर नेता-कार्यकर्ता आए, अब वे सारे आइसोलेट हो गए हैं, प्रचार करना जरूरी है परंतु नेता नदारद हैं। कार्यकर्ता भी प्रचार में नजर नहीं आ रहें। श्री धनखड़ के लिए यह भी एक चुनौती है। उपचुनाव को अब रद्द नहीं किया जा सकता है।

ऐसी आम मान्यता है कि यदि यह चुनाव समय पर हुआ और सत्ता में रहते भारतीय जनता पार्टी यह चुनाव नहीं जीत पाई तो पार्टी को और मुख्यमंत्री को हरियाणा में कांग्रेस और भूपेंद्र सिंह हुड्डा दोनों पहाड़ जैसे नजर आने लगेंगे। श्री धनखड़ को यह चिंता भी सताने लगी होगी कि जो आज बरोदा में आम चर्चा में है और वह यह कि बरोदा में जेजेपी कमजोर दिख रही है। इसकी कमजोरी का लाभ इनेलो को मिलता दिख रहा है। मुकाबला कांग्रेस और भाजपा में तो है परंतु कांग्रेस का पलड़ा भारी है। यदि वह मतलब भारतीय जनता पार्टी उपचुनाव भी नहीं जीत पाई तो इनेलो नेता अभय सिंह चौटाला की शैली में कहें तो सौ फीसदी मानकर चलें कि हार का भांडा भाजपा के नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष, पूर्व कैबिनेट मंत्री, भारतीय जनता पार्टी किसान प्रकोष्ठ के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी ओमप्रकाश धनखड़ के सिर पर भी फूटेगा।

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