क्योंकि वो प्रशांत भूषण हैं…

और चर्चित वकील प्रशांत भूषण ने न्यायालय की अवमानना मामले में 1 रुपया जुर्माना देना स्वीकार कर लिया है। साथ ही कहा है कि वो ,। उन्होंने कहा कि वो पहले ही कह चुके हैं कि सुप्रीम कोर्ट उन्हें जो सजा देगा वो उसे स्वीकार करने के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने जिस चीज (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) के लिए उन्हें दोषी ठहराया है वो हर नागरिक के लिए सबसे बड़ा कर्तव्य है।

उन्होंने कहा, “वो न्यायापालिका का सम्मान करते हैं और उनके ट्वीट सुप्रीम कोर्ट और न्यायपालिका का अपमान करने के लिए नहीं थे । बल्कि इसलिए थे क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के हाल के रिकॉर्ड थोड़े फिसल गए थे। यह मुद्दा नहीं है कि वो मेरे बनाम सुप्रीम कोर्ट का मामला है। सुप्रीम कोर्ट को जीतना चाहिए क्योंकि जब भी सुप्रीम कोर्ट जीतता है, स्वतंत्र होता है तो हर भारतीय जीतता है। सुप्रीम कोर्ट कमजोर होता है तो वो लोकतंत्र के हर एक नागरिक को कमज़ोर करता है। “
प्रशांत भूषण ने अपने समर्थन में खड़े पूर्व जजों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और आम लोगों का शुक्रिया किया है।

उन्होंने कहा, “यह मामला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को मज़बूती देगा और न्यायपालिका की स्वतंत्रता को शक्ति मिलेगी, कई लोगों ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का आधार समझा है। जो कुछ लोग हताश हो गए थे वो खड़े हो गए। इस देश में हो रहे अन्याय के ख़िलाफ़ लोगों को हिम्मत मिली है।”

उन्होंने अपने वकील राजीव धवन और दुष्यंत दवे का शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि ‘इस देश में लोकतंत्र मज़बूत होगा, सुप्रीम कोर्ट मज़बूत होगा, सत्यमेव जयते।

सुप्रीम कोर्ट ने 31 अगस्त 2020 को अपना आदेश सुनाते हुए कहा कि कोर्ट का फ़ैसला किसी प्रकाशन या मीडिया में आए विचारों से प्रभावित नहीं हो सकता। अदालत ने कहा कोर्ट के विचार किए जाने से पहले ही प्रशांत भूषण के प्रेस को दिए बयान कार्यवाही को प्रभावित करने वाले थे।
सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण के दो ट्वीट्स को अदालत की अवमानना के लिए ज़िम्मेदार माना था। कोर्ट ने अपने आदेश में ये भी कहा कि जनवरी 2018 में की गई सुप्रीम कोर्ट के चार न्यायाधीशों की प्रेस कॉन्फ्रेस भी ग़लत थी। न्यायाधीशों को प्रेस कॉन्फ्रेंस करने की अपेक्षा नहीं होती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभिव्यक्ति की आज़ादी है लेकिन दूसरों के अधिकारों का भी सम्मान करना चाहिए। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 25 अगस्त को सज़ा पर अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था।
फ़ैसला सुरक्षित रखने के दौरान जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा था कि ‘अगर ग़लती की गई हो तो माफ़ी मांग लेने में कोई नुक़सान नहीं है ।’

मगर भूषण की ओर से पेश वकील डॉक्टर राजीव धवन ने कहा कि भूषण कोर्ट का सम्मान करते हैं मगर पिछले चार चीफ़ जस्टिस को लेकर उनकी अपनी एक राय है।

उधर मोदी सरकार के सबसे बड़े वकील केके वेणुगोपाल ने अदालत में कहा था कि ‘हायर जूडिशरी में भ्रष्टाचार को लेकर कई मौजूदा और रिटायर्ड जजों ने टिप्पणी की है। ऐसे में भूषण अगर अपने शब्दों पर खेद प्रकट करते हैं तो उन्हें चेतावनी देकर छोड़ा जा सकता है।’

प्रशांत भूषण ने अपने खिलाफ अवमानना मामले में 20 अगस्त बयान दिया था…

माननीय न्यायालय का फैसला सुनने के बाद मैं आहत और दुखी हूं कि मुझे उस अदालत की अवमानना का दोषी ठहराया गया है जिसके प्रभुत्व को बनाये रखने के लिये मैं निजी और पेशेगत रूप में तीस सालों से किसी चाटुकार और दुंदुभिवादक की तरह बल्कि एक विनम्र रक्षक के रूप में मुस्तैद रहा हूं । मुझे इस बात की तकलीफ नहीं है कि मुझे सजा दी जा रही है। बल्कि मैं इसलिए आहत हूँ कि मुझे गलत समझा गया है।

मैं स्तब्ध हूँ कि मुझे अदालत ने न्याय व्यवस्था पर दुर्भावनापूर्ण और योजनाबद्ध तरीके से हमले का दोषी पाया है। और मुझे पीड़ा भी हुई कि अदालत ने मुझे वह शिकायत नहीं प्रदान की जिसके आधार पर अवमानना की गई थी। मैं इस बात से निराश हूं कि कोर्ट ने मेरे हलफनामे पर विचार नहीं किया। मेरा मानना है कि संवैधानिक व्यवस्था की रक्षा के लिए किसी भी लोकतंत्र में खुली आलोचना होनी चाहिए इसी के तहत मैंने अपनी बात रखी थी। मुझे यह सुनकर दुःख हुआ है कि मुझे अदालत की अवमानना का दोषी ठहराया गया है। मुझे दुख इस बात का नहीं है की मुझको सजा सुनाई जाएगी, लेकिन मुझे पूरी तरह से गलत समझा जा रहा है। मैंने जो कुछ कहा वो अपने कर्तव्य के तहत किया।

अगर माफी मांगूंगा तो कर्तव्य से मुंह मोड़ना होगा। मेरे ट्वीट एक नागरिक के रूप में मेरे कर्तव्य का निर्वहन करने के लिए थे। ये अवमानना के दायरे से बाहर हैं ।अगर मैं इतिहास के इस मोड़ पर नहीं बोलता तो मैं अपने कर्तव्य में असफल होता। मैं किसी भी सजा को भोगने के लिए तैयार हूं जो अदालत देगी। माफी मांगना मेरी ओर से अवमानना के समान होगा। मेरे ट्वीट सद्भावनापूर्ण विश्वास के साथ थे।

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