दुष्यंत चौटाला का वैधानिक हक नहीं था फिर भी उन्हें सदन का नेता क्यों बनाया गया? उमेश जोशी छह महीने के अंतराल से पहले दूसरा सत्र बुलाने की सवैधानिक बाध्यता के कारण बुलाए गए हरियाणा विधानसभा के मानसून सत्र में कई रिकॉर्ड बने और कई परम्पराएं टूटीं। कोरोना की आड़ में सत्तारूढ़ बीजेपी ने मनमाने ढंग से मात्र तीन घंटे का सत्र चलाया और जनता के प्रतिनिधियों को एक शब्द भी बोलने की अनुमति दिए बिना 12 विधेयक पास करवा लिए। यह भी एक रिकॉर्ड है कि सदन पटल पर रखे जाने के एक घंटे के भीतर 12 विधेयक पास हो गए। नेता विपक्ष पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा विरोध जताते रहे कि सिर्फ ज़रूरी विधेयक और पूरक अनुमान ही पेश किए जाएँ और पास करवाए जाएँ लेकिन उनकी एक नहीं सुनी गई। विधानसभा के पूर्व नेता विपक्ष और इंडियन नेशनल लोकदल के इकलौते विधायक अभय चौटाला को भी ध्यानाकर्षण प्रस्ताव पर चर्चा ना करवाए जाने को लेकर सख्त आपत्ति थी। उनकी आपत्ति को भी कोई तवज्जो नहीं दी गई। विपक्ष ने कई मुद्दों पर वाकआउट किया फिर भी उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया। बल्कि उस दौरान भी विधेयक पास होते रहे यानी विपक्ष की गैर मौजूदगी में सरकार ने विधेयक पास करवा लिए। कहाँ है इन पास विधेयकों में जनता की आवाज़। कहाँ है लोकतंत्र? यहाँ यह बताना ज़रूरी है कि कोई नया विधेयक पास नहीं हुआ। सभी संशोधन विधेयक थे। फिर भी उन पर चर्चा होना और जनप्रतिनिधियों की राय लेना आवश्यक था। यदि कोरोना के कारण सत्र की अवधि छोटी थी तो बड़ी अवधि के सत्र के लिए प्रतीक्षा की जानी चाहिए थी ताकि लोकतान्त्रिक और संवैधानिक प्रक्रिया से विधेयक पास हो सकें और लोकतंत्र जीवित नज़र आए। आज़ादी के बाद भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में यह पहला अवसर है जब विधानसभा सत्र में मुख्यमंत्री मौजूद ना हों और सदन के नेता की भूमिका कोई और निभाए। यह गौरव उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला को मिला है। एक मायने में यह रिकॉर्ड दुष्यंत चौटाला के नाम दर्ज हो गया है। हालांकि संविधान में उपमुख्यमंत्री जैसा कोई पद नहीं है। इस नाते दुष्यंत चौटाला को सदन का नेता होने का कोई वैधानिक हक नहीं था। मुख्यमंत्री को अपनी गैर मौजूदगी में सदन का नेता मनोनीत करने का अधिकार है। उसी अधिकार का प्रयोग करते हुए मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने दुष्यंत चौटाला को यह सम्मान दिया। यह भी गहन विचार का विषय है कि दुष्यंत चौटाला का वैधानिक हक नहीं था फिर भी उन्हें सदन का नेता क्यों बनाया गया। संसदीय कार्य मंत्री कंवर पाल या सबसे अधिक अनुभवी ग़ृह मंत्री अनिल विज को यह सम्मान दिया जा सकता था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ क्योंकि बीजेपी के किसी नेता का मनोनयन किया जाता तो खट्टर के सामने बहुत बड़ी दुविधा होती कि कंवर पाल को चुनें या अनिल विज को। ऐसी स्थिति में अपनी ही पार्टी में गुटबाजी खुलकर सामने आ जाती। इसके अलावा खट्टर नहीं चाहते थे कि बीजेपी में उनका कोई विकल्प नजर आए। साथ ही, एक संकट और खड़ा हो जाता। उपमुख्यमंत्री को एक दिन के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं मिलती तो दुष्यंत चौटाला की नाराजगी से उस कुर्सी पर ही खतरा मंडराने लगता। दुष्यंत चौटाला को एक दिन के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी देने के पीछे एक और गहरी राजनीति है। गृह मंत्री अनिल विज जिस तरह दुष्यंत चौटाला का कद छोटा करने की कोशिश कर रहे हें उससे असंतोष बढ़ने की संभावना है। गुरुवार 27 अगस्त को ही अनिल विज ने शराब घोटोले की जांच विजिलेंस से करवाने के आदेश दिए हैं। आबकारी विभाग भी दुष्यंत चौटाला के पास है। दुष्यंत चौटाला की पार्टी जेजेपी के नेता और पूर्व विधायक सतविंदर सिंह राणा का नाम भी शराब घोटोले में शामिल है। रजिस्ट्री घोटोले के कारण दुष्यंत चौटाला पहले ही विवादों में घिरे हुए हैं।इन हालात में दुष्यंत चौटाला सरकार से अपना हाथ खींच सकते हैं। उस समय खट्टर उन्हें याद दिलाएंगे कि मैंने आपको कितना सम्मान दिया है। इसी सम्मान की दुहाई देकर दुष्यंत चौटाला को रोकने की कोशिश करेंगे। चौटाला परिवार के किसी सदस्य ने 16 साल के लंबे अंतराल के बाद सदन का नेतृत्व किया था।इसका अहम पहलू यह है कि उस नेतृत्व के खिलाफ चौटाला परिवार का ही सदस्य असंतोष जाहिर कर रहा था। हरियाणा विधानसभा में पहला अवसर है जब चौटाला परिवार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा हो और चौटाला परिवार असंतोष जाहिर कर रहा हो। हरियाणा विधानसभा में एक रिकॉर्ड और बना है। एक दिन के मुख्यमंत्री पर उनकी अपनी ही पार्टी के विधायक दादा रामकुमार गौतम ने सीधा निशाना लगाया हैं। किसी भी पार्टी का मुख्यमंत्री कभी भी अपनी पार्टी के विधायक का इस तरह कोप-भाजन नहीं बना। दादा गौतम ने कहा कि अवैध कालोनियों और रजिस्ट्रियों के मामले में कोई भी दूध का धुला नहीं है। अवैध कालोनियां पहले भी कटती आ रही थी और अब भी कट रही हैं। उन्होंने कहा कि यह सब खेल पैसे की खातिर है। कालोनाइजर पैसा चढ़ा देते हैं तो सब ठीक ठाक, वरना जेसीबी लेकर पहुंच जाते हैं। पहले रजिस्ट्रियों में फर्जीवाड़े के पांच से दस हजार रुपए लगते थे और अब रेट एक लाख रुपए हो गया है। जिस भ्रष्टाचार का रेट एक लाख रुपए बताया जा रहा है वो महकमा दुष्यंत चौटाला के पास है। जेजेपी के दादा गौतम के बयान का अर्थ ही यही है कि दुष्यंत चौटाला के विभाग में भ्रष्टाचार कई गुणा बढ़ गया है। इस सत्र में मुख्यमंत्री ही नहीं, विधानसभा अध्यक्ष ज्ञान चंद गुप्ता भी कोरोना ग्रसित होने के कारण सदन में उपस्थित नहीं थे। यह भी एक रिकॉर्ड है कि मुख्यमंत्री और विधानसभा अध्यक्ष दोनों ही सदन में नहीं थे। विधानसभा उपाध्यक्ष रणबीर गंगवा ने कार्यवाही का संचालन किया। मुख्यमंत्री और विधानसभा अध्यक्ष के अलावा दो मंत्री और चार विधायक भी कोरोना ग्रसित होने के कारण सदन में नहीं थे। यह पहला अवसर है जब सारे विधायकों के मास्क से चेहरे ढंके हुए थे। कांग्रेस विधायकों ने सरकार की खिंचाई का नया तरीका अपनाया था। सभी ने मास्क पर लिखा था- करप्शन इन कोरोना। हरियाणा विधानसभा के मॉनसून सत्र में दो परंपराएं और टूटी हैं। दर्शकदीर्घा खत्म कर दी गई थी। सोशल डिस्टेंसिंग के लिए दर्शकदीर्घा में विधायक बैठाए गए थे। पत्रकारों को भी विधानसभा में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई। उन्हें कवरेज के लिए हरियाणा भवन में बैठाया गया था। Post navigation सांसद कृष्णपाल गुर्जर की कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव, कुमारी शैलजा होम क्वारंटाइन सरकार कोरोना के प्रति कितनी गंभीर? 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