-कमलेश भारतीय

सबसे पहले हमारे देश के संविधान का सम्मान । कितने विद्वानजनों ने मिल बैठ कर और अच्छी तरह सोच समझ कर संविधान बनाया और हमने लागू किया । संविधान के अनुसार शपथ लेकर मुख्यमंत्री , राज्यपाल और प्रधानमंत्री तक बनते हैं लेकिन आजकल हमारे देश का संविधान सकते में है । क्या करे और क्या न करे ? जाये तो किधर जाये ? नेता किसी ओर खींच रहे हैं और विशेषज्ञ किसी ओर । जाये तो किधर जाये ? यह सब पहली बार नहीं हो रहा । होता रहता है अपने देश में इसीलिए बहुत संशोधन भी समय समय पर किये जाते रहे हैं । जरूरत पड़ती रहती है । संशोधन होते रहते हैं । पर इधर प्रधानमंत्री तक पर संविधान के उल्लंघन करने का आरोप लगा रहे हैं सांसद ओवैसी । दिन निकट आ रहे हैं अयोध्या में राम मंदिर का शिलान्यास के । यह चर्चा है कि इसका लाइव प्रसारण भी होगा तभी ओवैसी का कहना है कि प्रधानमंत्री की हैसियत से न जाइए ।

यह धर्म धर्मनिरपेक्ष देश है । इसका प्रधानमंत्री इस तरह किसी एक धर्म की पूजा नहीं कर सकता । जाइए निजी हैसियत में और लाइव प्रसारण नहीं होना चाहिए । यह भी कहा कि हम अभी बावरी मस्जिद को गिराया जाना भूले नहीं हैं । हमारे जख्म न कुरेदिये । अब राम मंदिर के लिए लाल कृष्ण आडवाणी और उमा भारती ने क्या क्या नहीं किया पर वे इस महत्त्वपूर्ण दिन पर आमंत्रित नहीं । दोनों पर शायद कानूनी कार्यवाही भी चल रही है और वे कैसे आमंत्रित किये जा सकते हैं ? वे तो घर बैठे लाइव प्रसारण देखें । वैसे सोशल मीडिया पर एक मज़ेदार बात आ रही है कि बिग बी अमिताभ बच्चन और अभिषेक बच्चन कोरोना संक्रमित हुए तो सिद्धि विनायक मंदिर न जाकर नानावती अस्पताल गये तो इस समय आप सोचिए किस निर्माण की जरूरत है ? मंदिर या अस्पताल ? फैसला आप पर । पर यह पक्ष भी है कि राम मंदिर हिंदुस्तान में नहीं बनेगा तो कहां बनेगा ? इधर वरिष्ठ कांग्रेसी नेता कर्ण सिंह ने एक नयी बात उठाई कि राम के साथ सीता मैया की मूर्ति भी तो लगाओ तभी पूजा संपन्न मानी जायेगी । यदि ऐसा नहीं करते हैं तो एक बार फिर सीता मैया को वनवास देने के बराबर होगा । सोचने की बात है ।

राजस्थान के राजहठ को लेकर भी संविधान बहुत परेशान किया जा रहा है या हो रहा है । राज्यपाल दो बार मुख्यमंत्री द्वारा विधानसभा सत्र बुलाने को इनकार कर चुके हैं और विशेषज्ञों का कहना है कि राज्यपाल इनकार नहीं कर सकते । स्पीकर ने बागी विधायकों को नोटिस दिये तो कोर्ट कहता है कि असहमति को बागी होना नहीं कह सकते । अब स्पीकर के अधिकारों पर भी संविधान को परेशान किया जा रहा है । राज्यपाल सत्र बुलाने पर सवाल कर सकते हैं या नहीं , संविधान इसे लेकर भी सिर खुजला रहा है । याद कर रहा है कि ऐसा कुछ लिखा है या नहीं ? संविधान की जान बार बार सांसत में आई । कभी नज्मा हेपतुल्ला की मणिपुर की राज्यपाल के तौर पर भूमिका संदेहों के घेरे में तो कभी महाराष्ट्र के महामहिम आधी रात को राष्ट्रपति राज हटा कर शपथ दिलाने को लेकर चर्चित हो जाते हैं और संविधान बेचारा टुकूर टुकूर ताकता रह जाता है । सिर्फ दो विधायकों के बल पर सरकार बनाने का न्यौता देने पर संविधान सिर धुनता रह जाता है । अब संविधान राजस्थान के राज्यपाल के शब्दों के खेल को लेकर परेशान है । आपके पास कोई हल हो इस बात का तो संविधान को बता दो और बचा लो । कांग्रेस की कोशिश तो राजनीतिक कोशिश है । उस पर संविधान को विश्वास नहीं क्योंकि अपने समय में कांग्रेस ने संविधान को कम परेशान नहीं किया । आंध्र प्रदेश के एन टी रामाराव को कितना परेशान किया । कौन भूल सकता है ? अब अपनी बारी आई तो संविधान बचाने निकल पड़े ? इसलिए जो बोना हो , अच्छा बोओ ताकि काटते वक्त दुख न हो ।