-कमलेश भारतीय राजस्थान का सियासी ड्रामा अब मुख्यमंत्री बनाम राज्यपाल होता जा रहा है । पहले मुख्यमंत्री विधायकों को लेकर मार्च करते राज्यपाल भवन तक पहुंचे । वे अंदर राज्यपाल से बात करने गये तो बाहर विधायक नारेबाजी करते रहे । इस बात पर बहुत नाराज हुए राज्यपाल । लेकिन सत्र बुलाने के न्यौते को हरी झंडी नहीं दिखाई । कुछ एतराज और कुछ सवाल जरूर पूछे । फिर मुख्यमंत्री रिसोर्ट लौटे विधायकों के साथ । वहीं कैबिनेट बैठक बुलाई और दोबारा सत्र बुलाने का न्यौता भेजा । फिर राज्यपाल ने शर्तें लगाई कि बताओ कोरोना में सोशल डिस्टेंसिंग कैसे रख पाओगे ? बताओ एजेंडा क्या है ? टीवी चैनलों पर राज्यपाल के अधिकारों पर बहस छिड़ी हुई है कि क्या वे मुख्यमंत्री का न्यौता ठुकरा सकते हैं ? क्या वे सत्र बुलाने पर कोई सवाल दे सकते हैं ? उदाहरण बहुत रखे जा रहे हैं । कभी महाराष्ट्र का तो कभी मध्य प्रदेश का तो कभी मणिपुर का । महाराष्ट्र में आधी रात को फडणबीस और अजीत पवार को शपथ दिलाना , मध्य प्रदेश में स्पीकर की कोरोना की दुहाई न मानना और राजस्थान में उसी कोरोना को राज्यपाल द्वारा सत्र न बुलाने का बहाना बनाना , ये सारी बातें किसी और की मंशा को सामने लाती हैं । राज्यपाल तो बस एक ओट भर हैं । संविधान विशेषज्ञ तक राज्यपाल के अधिकारों की चर्चा कर रहे हैं और इस पद की गरिमा की दुहाई दे रहे हैं । कल कांग्रेस ने हरियाणा व हिमाचल के राज्यपाल भवनों के बाहर इस तरह लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाई जाने के विरोध में प्रदर्शन और नारेबाजी भी की । मुख्यमंत्री गहलोत ने रिसोर्ट में प्रार्थना सभा की और सबको सन्मति दे का भजन भी लगाया । भाजपा आपातकाल की दुहाई दे रही है तो कांग्रेस राजस्थान के राज्यपाल पर दोषारोपण कर रही है । लड़ाई तो कोर्ट तक चली गयी और सुप्रीम कोर्ट से स्पीकर ने यू टर्न ले लिया यानी याचिका वापस ले ली । स्पीकर के अधिकारों की बात भी उठ रही है । अब यह भी कहा जा रहा है कि सत्र बुलाने के बाद यह स्पीकर की सिरदर्दी है कि कोरोना से बचाने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग कैसे करनी है , राज्यपाल की नहीं पर वे चिंतित हो रहे हैं । इतने चिंतित मध्यप्रदेश के राज्यपाल नहीं हुए । हालांकि अब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कोरोना पाॅजिटिव हो गये । स्वस्थ होने की दुआ ।ज्यादा संवैधानिक बातें नहीं जानता । बहस के शोज या पत्रकारिता के माध्यम से सीखीं । सचमुच राजस्थान में राजहठ चल रहा है । मुख्यमंत्री बिना मांग के बहुमत सिद्ध करने पर तुले हैं और राज्यपाल हरी झ॔डी दिखाने को तैयार नहीं । सचिन भाजपा में जा नहीं रहे और न भाजपा का न्यौता आया है अभी । टेक्निकल बातें और चालें हैं । बड़े मासूम चेहरे के बावजूद गहलोत का कहना है कि धोखा दे गये सचिन । क्या क्या इल्जाम नहीं लगाये और अज्ञातवास में सब सह रहे हैं सचिन । कहा तो यह भी जा रहा है कि जादू से हाथी तक गायब कर देने वाले गहलोत इस बार भी रिसोर्ट में जादू दिखा रहे हैं और गेम है कि कोर्ट से विधानसभा तक खेली जा रही है । आखिर यह राजस्थान राॅयल्ज का मैच है । सस्ते में नहीं छूटेगा । राजनीति को नयी दिशा देगा और नये सवाल खड़े करेगा । देखते रहिए । वैसे इन दिनों प्रियंका गांधी बाड्रा हरियाणा के गुरुग्राम वासी हो गयी । यह हरियाणा कांग्रेस या हरियाणा की राजनीति पर कोई असर डालेंगी ? अभी इंतज़ार कीजिए । Post navigation सरकारी स्कूलों में पढ़कर राज्यभर में टॉप करना कोई छोटी बात नहीं है रजिस्ट्री घोटाले की सीबीआई या हाई कोर्ट के सिटिंग जज से सरकार जांच करवाएं – बजरंग गर्ग