वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. नन्दलाल महता वागीश का निधन

अखिल भारतीय साहित्य परिषद के पर्याय रहे वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. नन्दलाल महता वागीश का आज प्रात: गुरुग्राम में उनके आवास पर निधन हो गया। वे मस्तिष्क आघात के बाद पिछले दो माह से विभिन्न शारीरिक बीमारियों से जूझ रहे थे। इस दौरान वे कोलम्बिया एशिया व फोरटिस अस्पताल में अनेक दिनों तक भरती रहे।

उन्होंने वेद उपनिषदों का गहन अध्ययन किया था। भारत सरकार के संस्कृति मन्त्रालय के वे वरिष्ठ अध्येता रहे। उन्होंने निबन्ध,व्यंग्य, समीक्षा, साक्षात्कार, व्याकरण विषयक बीस से अधिक पुस्तकें लिखीं। हरियाणा साहित्य अकादमी की ओर से उन्हें सर्वोच्च सूर सम्मान प्रदान किया गया। भारत विद्या के क्षेत्र में केन्द्रीय हिन्दी संस्थान आगरा ने उन्हें स्वामी विवेकानन्द पुरस्कार दिया।

अनेक महाविद्यालयों में कार्यरत रहने के उपरान्त जून 1998 में वे राजकीय महाविद्यालय गुरुग्राम से हिन्दी विभागाध्यक्ष के रूप में सेवानिवृत्त हुए थे। वे गुरुग्राम में अखिल भारतीय साहित्य परिषद के संस्थापक अध्यक्ष थे तथा प्रान्तीय स्तर पर 1995 से 2004 तक महामन्त्री व 2013 से 2016 तक अध्यक्ष रहे। वे अन्त तक प्रान्तीय परिषद के मार्गदर्शक बने रहे।

उनके निधन पर गुरुग्राम ही नहीं हरियाणा के साहित्यिक जगत में शोक व्याप्त हुआ है।

परिषद के प्रान्तीय अध्यक्ष प्रो रामसजन पांडेय ने उनके निधन को बेहद कष्टकारी व स्तब्धकारी कहा है। गुरुग्राम इकाई की अध्यक्षा प्रो कुमुद शर्मा ने कहा कि अखिल भारतीय साहित्य परिषद के स्वाभिमान डॉ नंदलाल मेहता ‘वागीश’ का निधन साहित्यिक क्षेत्र के लिए एक अपूरणीय क्षति है। हिन्दी भाषा और साहित्य के अनुशीलन की राह सुझानेवाले डॉ मेहता का ऐतिहासिक अवदान हमेशा स्मरणीय रहेगा।

प्रान्तीय महामन्त्री डॉ. योगेश वासिष्ठ ने बतलाया कि उन्हें पिछले तीस वर्षों से उनका भरपूर स्नेह, आत्मीयता व आशीर्वाद मिला, जो आजीवन उनकी पूँजी रहेगी। उनके निधन पर प्रान्त की विभिन्न इकाइयों सहित सम्पूर्ण देश से शोक सन्देश प्राप्त हो रहे हैं। मुम्बई से डॉ. दिनेश प्रताप सिंह ने लिखा है कि अ.भा.सा.परिषद का एक स्तम्भ ढह गया। वरिष्ठ साहित्यकार मुकेश शर्मा ने कहा कि उनसे बहुत निकटता रही,इसलिए दुख भी तीव्र है। यह साहित्यिक क्षेत्र के लिए एक बड़ी क्षति है। उन जैसे विद्वान विरले ही होते हैं।

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