हलवाईयों की दुकान पर सजे घेवर की महक फैली.
350 से 600 रुपए प्रति किलो की दर से घेवर की बिक्री

फतह सिंह उजाला
पटौदी।
 श्रावन मास का महीना शुरु होते ही बाजार में हलवाईयों की दुकान पर सजे घेवर की महक कदरदानों को लुभाने लगी है। भले ही कोरोना का असर हो लेकिन श्रावन मास की लजीज मिठाई खाने वाले कदरदानों की कमी नहीं है। बरसात के साथ ही घेवर का स्वाद दुगना हो जाता है। मंहगाई के कारण घेवर के तेवर तीखे जरुर है लेकिन उसकी मिठास के बिना श्रावन का माह अधुरा समझा जाता है।  शहर की सभी हलवाईयों की दुकान घेवर से सजी हुई है। आधुनिकता की दौड में घेवर भी पीछे नहीं है। कारीगरों ने इस बार चॉकलेटी, स्ट्राबेरी, मावा, प्लेन, कढाई, केसर, देश घी के घेवर आदि फ्लेवर के घेवर तैयार किए है। जो ग्राहकों को खूब भा रहे है। 350 से 600 रुपए प्रति किलो की दर से घेवर बिक रहे है। बहन बेटियों को सौगात में तीज भेजने की परम्परा के तहत घेवर, सुहाली, शक्कर पारा, छोटे बडे चीनी के बने पतासे भी खूब पसंद किए जा रहे है।

कस्बा में मिष्ठान की दुकान चलने वाले हलवाईयों जय प्रकाश, राहुल सैनी, रतन सैनी, नरेश कुमार, ललीत कुमार, जिया लाल सैनी, लोकराम, नवीन कुमार सैनी, अनिल दहिया, दिनेश सैनी, सुनिल दहिया, मामचंद सैनी हरभगवान, जयभगवान आदि ने बताया कि घेवर प्राचीन काल से ही श्रावन मास की सबसे पंसीदा व ललीज मिठाई है। यह बरसात के मौसम में खाई जाती है। उन्होंने बताया कि डालडा घी से  बने घेवर के रेट मावा वाला घेवर 340, सादा 160 से 240, मिठी सुहाली 100 रुपए किलो, नमकीन सुहाली 120 , पतासे 70 रुपए किलों के रेट है वहीं देश घी के बने घेवर 560 से 600 रुपए किलों का भाव है। उन्होने बताया कि इस बार कोरोना संक्रमण के बढ़ते खौफ के कारण मार्किट में ग्राहक कम है। दुकानदारी सुबह सांय की रह गई है।

कोराना का असर तीज त्यौहरों पर भी दिखाई दे रहा है। मंहगाई का असर भी घेवर पर पड़ रहा है। बहन बेटियों को कोथली में दिए जाने वाले घेवर का वजन भी कम हो गया है। जहां पहले 4 से 5 किलों देते थे अब दो किलों तक ही स्मित रह गए है लोग। उन्होंने बताया कि घेवर तैयार करने में प्रयोग होने वाली सामग्री के रेट भी आसमान छू रहे है। मार्किट में मैदा 28 रुपए किलो, चीनी 36 रुपए किलों , घी 100 रुपए किलों, 55 रुपए किलो, पिस्ता, बादम, काजू, किशमिश के दाम भी काफी बढ़ गए है। देशी घी 5000 रुपए प्रति टीन, तथा मावा 400 रुपए किलो के करीब है। उन्होंने बताया कि घेवर बनाने वाले कारीगर अब बहुत कम रह गए है।

एक कारीगर, हैल्फर फूल खर्चे के साथ 2000 रुपए प्रति दिन दिहाडी लेते है। बावजूद इसके भी घेवर के भाव गत वर्ष की भांति इस वर्ष भी समान है। उन्होंने बताया कि समय की मांग के अनुसार ग्राहकों को लुभाने के लिए घेवर की डिजाइन, फ्लेवर , सजावट का रुप भी बदल गया है। कोरोना के कारण मार्किट में भले ही ग्राहक कम आ रहे है बावजूद इसके दुकानों पर प्रति दिन तैयार होने वाला घेवर बिक ही जाता है।

error: Content is protected !!