डॉ. जितेन्द्र गैरोला | शोध वैज्ञानिक | पीजीआईएमईआर | चंडीगढ़ | युवा प्रमुख | सक्षम | पंजाब

कोरोना वायरस  (कोविड-१९) महामारी ने विश्व मे कुछ समय के लिए ठहराव की अभूतपूर्व स्थिति पैदा की है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और दुनिया भर की विभिन्न सरकारों द्वारा उठाए गए प्रभावी स्वास्थ्य उपायों के बावजूद यह निरन्तर फैलता ही जा रहा है। जून २०२० के पहले सप्ताह में विश्व भर मे ६५ लाख से अधिक मामलों की पुष्टि की गई। शोध पत्रों में प्रकाशित रिपोर्टों की जानकारी से ज्ञात होता है कि कोविड-१९ से संक्रमित रोगियों में लगभग ८० % मामलो में लक्षणों का पता लगाना सम्भव  नहीं होता इसलिए संक्रमण का सही समय पर ‘डायग्नोसिस’ होना बेहद महत्वपूर्ण है तभी इस महामारी को नियंत्रित करने के उपायों का परिपालन किया जा सकता है।

भारत विश्व का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश है। भारत सरकार ने कोविड-१९ महामारी को रोकने हेतु मजबूत और सार्थक कदम उठाए और १.३ बिलियन आबादी को सार्वजनिक स्तर पर संक्रमण से लड़ने के लिए पहली बार २५ मार्च २०२० को देशव्यापी तालाबंदी की घोषणा की थी। कोविड-१९ के उपचार, रोकथाम, एवं सही डायग्नोसिस के लिए सक्रिय प्रयास किये जा रहे हैं।

कोविड-१९ महामारी को कम करने के लिए बहु-क्षेत्रीय नीतियां (मल्टी सेक्टोरल पॉलिसीस) सजग एवम् कारगर उपाय है एवम् इन नीतियों का परिपालन आवश्यक है। भारत ने भी कुछ बहु-क्षेत्रीय (मल्टी सेक्टोरल) रणनीतियों को अपनाया है। जहां एक तरफ़ बीमारी के इलाज़्ज़, रोकथाम, और डायग्नोसिस के लिए डॉक्टर, नर्सिंग ऑफिसर एवम् टेक्निकल स्टाफ की ज़रूरत है वहीं दूसरी तरफ़ सामाजिक जागरूकता, सूचनाओं का पालन, सही जानकारी के जनसंचार मे पुलिस विभाग, इन्फर्मेशन टेक्नोलॉजी का अतुल्य योगदान है। 

भारत में आणविक (मॉलिक्यूलर बायोलॉजी) प्रयोगशालाओं एवं स्वदेशी कंपनियों मे तैयार कि जा रही डायग्नोसिस किट्स आत्म निर्भरता का एक जीता जागता उदाहरण है। आणविक (मॉलिक्यूलर बायोलॉजी) विज्ञान के साथ साथ अन्य प्रयोगशालाओं (लैबोरेट्रीज) जैसे भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर), नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी), डिफेंस रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (डीआरडीओ), वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के सभी छोटी बड़ी लैब्स अपनी अपनी निपुणता का उपयोग कर तेजी से विकसित होने वाले तरीकों पर विशेष बल दे रहे हैं। अभी तक भारत में ९०० से ज्यादा जाँच केंद्रों मे कुल ६१ लाख से ज्यादा नमूनों कि जाँच कराई गयी है एवम् वर्तमान मे प्रतिदिन औसतन १ से १.५ लाख कोरोना नमूनों की जाँच की जा रही है।

आईसीएमआर भारत मे नियामक प्राधिकरण के रूप मे काम कर रहा है और संक्रमण के परीक्षण के लिए दिशानिर्देश जारी कर चुका है। आईसीएमआर दवारा गठित राष्ट्रीय टास्क फोर्स ने कोवीड-१९ ‘डायग्नोसिस (निदान) के लिए अभी तक ११६ आरटी-पीसीआर किट्स को मंजूरी दी। भारत मे माय लैब्स प्राइवेट लिमिटेड ने कोवीड-१९ के लिए पहली स्वदेशी डायग्नोसिस किट विकसित कि एवम् आईसीएमआर से अनुमोदन व पराधिकरण प्राप्त किया। यह कोवीड-१९ डायग्नोसिस के लिए १००% संवेदनशील (सेंसटीविटी) है जो २.५ घंटे मे परिणाम उजागर करती है। इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी के वैज्ञानिकों ने भारत का पहला पेपर-स्ट्रिप टैस्ट विकसित किया है। वहीं दूसरी ओर श्री चित्रा तिरुनल इंस्टीट्यूट द्वारा विकसित डायग्नोसिस किट एक कम लागत वाला प्रभावी टैस्ट है।

कोविड -१९ महामारी के इस दौर मे चिकित्सा क्षेत्र मे वैज्ञानिक परीक्षणों की स्थिति मे बड़ी तेजी से  गति शीलता आई है। इसके अतिरिक्त भारत मे ८८१ मरीजो के जीनोम का अनुक्रमण (सिक्वेंसिंग) भी किया गया इस अध्ययन के परिणामों से देश मे दो नए आनुवंशिक वेरिएंट (जेनेटिक वैरिएंट्स) की उपस्थिति का पता लगाया इस महत्वपूर्ण जानकारी को जीन बैंक मे जमा करा दिया है। भारत की विभिन्न फंडिंग एजेन्सीस ने प्रभावी ढंग से शोध क्षेत्र मे ज़रूरी प्रॉजेक्ट्स को भी बजट स्वीकृति किया।

संक्रमण के खतरे का पता लगाना, अनुरेखण (ट्रेसिंग), मैपिंग और स्व-मूल्यांकन हेतु कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) पर आधारित ‘आरोग्य सेतु ऐप’ इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा विकसित किया गया है। यह ऐप कोरोना हॉट स्पॉट की पहचान करने मे भी कारगर है और मंत्रालय द्वारा लॉंच करने के ४०-५० दिनो मे ही ५० करोड़ लोगो दवारा उपयोग मे लाई जा रही है। कोरोना संक्रमण मे मानव शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता यानी इम्यून सिस्टम की महत्वपूर्ण भूमिका है। यदि इम्यून सिस्टम ठीक है तो कोरोना संक्रमण से बचा जा सकता है । इस विषय को ध्यान मे रखते हुए आयुष विभाग ने आयुष काढ़े के सेवन की सलाह दी जो कि लोगो द्वारा उपयोग मे लाया जा रहा  है ।

भारत चिकित्सा विज्ञान मे विश्वगुरु बने

 भारत चिकित्सा विज्ञान मे विश्वगुरु बने ऐसा मूलमंत्र वैज्ञानिकों के मस्तिष्क में हमेशा संचारित रहे। आत्मनिर्भरता की सफलता यहाँ पढ़ने वाले छात्रों, संसाधनों का सर्जन करने वाले वैज्ञानिको एवं डॉक्टरों के हृदय मे विधमान राष्ट्रीय चिंतन एवम् देश सेवा के भाव पर निर्भर करती है । देश सेवा का अभाव होना देश की प्रगति मे सबसे बड़ी बाधा है। यह देश मेरा है मुझे इसकी सेवा करनी है ऐसा मन मे विचार हो तो निश्चित रूप से भारत को वैज्ञानिक आत्मनिर्भरता के सर्वोंच्तम शिखर पर पहुंचाया जा सकता है। चिकित्सा विभागो मे कार्यरत चिकित्सक एवं विज्ञान के प्राध्यापकों का आपसी तालमेल एवम् एकीकृत विचारमंथन राष्ट्र को परम वैभव तक पहुँचाने मे महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

कोरोना जैसी वैश्विक संकट से निपटना है तो सरकारी अस्पतालों तथा शोध संस्थानों में ध्यान देने की ज़रूरत है । स्वास्थ्य सेवाओं एवं संबंधित शोध कार्यो में जीडीपी का कुल निवेश बढ़ाना चाहिए। यदपि पिछली शताब्दी में पश्चिमी विज्ञान ने विश्व को आधुनिकता के शिखर पर पहुँचा दिया है परंतु साथ ही साथ मानवता को ख़तरे मे भी डाल दिया है। इस कथन में कोई संदेह नहीं कि पश्चिमी विज्ञान में विश्व को सुखमय बनाने के लिए सभी ज़रूरतें उपलब्ध हैं परंतु आपसी प्रतिस्पर्धा मे आज हर राष्ट्र आगे बढ़ने की होड़ मे है जिससे वह किसी का अहित करने में भी संकोच नहीं करता है। वहीं दूसरी ओर भारतीय विज्ञान मानव कल्याण और विश्व कल्याण की बात करता है। आत्मनिर्भरता के लिए भारतीय विज्ञान को बढ़ावा देना अति आवश्यक है।

हमारे वेद आधुनिक से आधुनिक विज्ञान का स्रोत है ज़रूरत है तो वेदो मे दिए गए सिद्धांतों को कार्यान्वित करने की। हमारी रसायन संबंधित विरासत विशाल है। रसायन विज्ञान जैसे क्षार, उत्प्रेरकों और अम्लो का वर्णन वेदो मे दिया गया है। आयुर्वेद एक प्राचीनतम भारतीय चिकित्सा धरोहर है जो संचारी (कम्युनिकेबल) और गैर-संचारी (नॉन –कम्युनिकेबल) रोगो के उपचार हेतु प्रभावशाली है। आयुर्वेदिक चिकित्सा औषधियों, धातुओं और वनस्पतियों का समावेश है।

चिकित्सा विज्ञान मे आत्म निर्भरता के लिए भारतीय चिकित्सा प्रणाली के पाठ्यक्रम मे बदलाव लाने की आवश्यकता है । भारत के लिए यह न केवल कोरोना वायरस बल्कि अन्य बीमारियों के लिए स्वदेशी, कम लागत और आसानी से उपलब्ध इलाज, डायग्नोसिस (निदान) और रोकथाम के तरीको को बढ़ावा देने का एक शानदार अवसर है और यह सब विज्ञान के क्षेत्र मे निवेश की वृद्धि एवं वैज्ञानिक समरसता से ही संभव होगा।

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