क्राइम रिफाॅर्मर एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पुष्पक टाईम्स के प्रधान संपादक डाॅ. संदीप कटारिया ने बताया कि मजदूरों की कमी के कारण कंपनियों के लिए अब काम करना मुश्किल हो रहा है। कई कंपनियां 40-60 प्रतिशत लेबर फोर्स के  साथ काम करने पर मजबूर है। लेबर फोर्स की डिमांड बढ़ने से मजदूरी भी बढ़ी है। साथ ही सप्लाई भी मंहगी हो रही है। ऐसे में कंपनियों का लागत खर्च बढ़ रहा है। इससे कंपनियों को अपने उत्पादों के दाम बढ़ाने पर मजबूर होना पड़ सकता है, जिससे महंगाई बढ़ सकती है। एसोचैम की सर्वे के अनुसार लेबर फोर्स की कमी का सबसे अधिक असर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर पड़ रहा है। इसके अलावा लेबर की कमी से टेक्सटाइल, लेदर, वूड एंड प्राॅडक्ट्स, पेपर प्राॅडक्ट्स, केमिकल्स, रबर और बेसिक मेटल सेक्टर में उत्पादन का काम बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है।

कोविड-19 संकट के कारण करोड़ों मजदूर अपने गांव चले गए हैं। इन मजदूरों को कार्यस्थलों में लौटने में देरी होगी। ऐसे में लेबर फोर्स का मिलना एक तो मुश्किल है, दूसरे डिमांड ज्यादा होने के कारण लेबर को ज्यादा वेतन देना पड़ रहा है। लेबर फोर्स की कमी का सिलसिला आगे कई महीनों तक जारी रह सकता है। इससे मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में काम करने वाली कंपनियों की लागत मूल्य में बढ़ोतरी तय है। ऐसे में वह इसका भार ग्राहकों पर डाल सकती है, जिससे महंगाई बढ़ेगी।
डाॅ. कटारिया ने बताया कि मई में थोक महंगाई दर नेगेटिव जोन में रहीं। थोक महंगाई दर में 3.21 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। मगर महंगाई दर जल्द ही नेगेटिव जोन से बाहर आएगी। क्योंकि छोटी व मझोली कंपनियों के लिए ज्यादा पैसे देकर लेबर फोर्स को लेने मंे खासी दिक्कतें आ रही है। इन कंपनियों की मैन्यूफैक्चरिंग कास्ट बढ़ेगी तो वस्तुओं का महंगा होना तय है।

फेडरेशन आॅफ इंडियन माइक्रो स्माल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज का कहना है कि वर्कफोर्स की कमी के चलते मात्र 30 से 40 फीसदी छोटी और मंझोली कंपनियां काम शुरू कर पाई है। कंपनियों के पास कैश के अलावा लेबर फोर्स की भी कमी हैं। वक्त की जरूरत है कि जो प्रवासी मजदूर अपने कार्यस्थल पर आने चाहते हैं, उनको आने की सुविधा दी जाए। इन पहलुओं पर फोकस करने के बाद ही उत्पादन सही तरीके से बढ़ाया जा सकता है और सप्लाई की स्थिति बेहतर की जा सकती है।