पूछा- इस वक्त लोगों की जान बचाना ज़रूरी है या राजनीति चमकाना?राजनीतिक प्रचार के लिए लोगों की जान से खिलवाड़ कर रही है बीजेपी- सांसद दीपेंद्रएक तरफ लोगों की जानें और नौकरियां जा रही हैं, दूसरी तरफ बीजेपी जश्न मना रही है- सांसद दीपेंद्रलोगों में मास्क, सैनिटाइजर और राहत सामग्री बांटने के बजाए, पार्टी प्रचार के लिए पर्चे बांट रहे हैं बीजेपी नेता- सांसद दीपेंद्ररोज़गार व अर्थव्यवस्था बचाने और ग़रीब व किसानों को मदद पहुंचाने का प्लान बनाए बीजेपी, ना कि राजनीतिक रैलियों का- सांसद दीपेंद्र 7 जूनः चंडीगढ -महामारी के दौर में बीजेपी की तरफ से आयोजित होने वाली रैलियों पर राज्यसभा सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने कड़ी आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि आज पूरी दुनिया पर कोरोना का खतरा मंडरा रहा है। देश में लगातार असामान्य गति से कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं। हरियाणा में भी बीमारी ने रफ्तार पकड़ ली है। रोज़ 200 से 300 मामले सामने आ रहे हैं। तमाम सरकारें आज अपने नागरिकों की जान बचाने की जद्दोजहद में लगी हुई हैं, लेकिन हैरानी की बात है कि सत्ताधारी बीजेपी महामारी के इस दौर में भी अपने प्रचार का भोंपू बजाना चाहती है। सांसद दीपेंद्र ने पूछा है कि बीजेपी के लिए समाज ज़रूरी है या सियासत? इस वक्त लोगों की जान बचाना ज़रूरी है या राजनीति को चमकाना? दरअसल, बीजेपी की तरफ से ऐलान किया गया है कि वो पूरे प्रदेश में 14 से 17 जून तक राजनीतिक रैलियां करेगी। इन रैलियों का मक़सद बीजेपी की केंद्र सरकार के 1 साल पूरा होने का जश्न मनाना है। दीपेंद्र हुड्डा का कहना है कि ये संवेदनहीनता की प्रकाष्ठा है कि एक तरफ महामारी में लोग अपनी जानें गवा रहे हैं और दूसरी तरफ सत्ताधारी पार्टी जश्न मना रही है। ऐसा लगता है कि बीजेपी सरकार ने कोरोना के ख़िलाफ़ लड़ाई में अपने हाथ खड़े कर लिए हैं। अब वो ‘अपनी सुरक्षा आप करो, सरकार को माफ़ करो’ की गैरज़िम्मेदाराना नीति पर आगे बढ़ रही है। दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि विपक्ष में होने के बावजूद महामारी के दौर में उन्होंने राजनीति को दरकिनार करके काम किया है। अपनी टीम के ज़रिए पूरे प्रदेश और दूसरे प्रदेशों में भी हज़ारों लोगों तक खाना और राशन पहुंचाया है। हज़ारों लोगों में मास्क और सेनेटाइज़र बांटे हैं। लेकिन आज ये देखकर आश्चर्य होता है कि सत्ताधारी नेता मास्क और सेनेटाइज़र बांटने की बजाए, रोहतक और दूसरे जिलों में पार्टी प्रचार के लिए पर्चे बांट रहे हैं। नेता प्रतिपक्ष समेत तमाम विपक्षी राजनीतिक कार्यक्रमों से किनारा कर रहे हैं और सत्ताधारी नेता रैलियां कर रहे हैं। कोरोना संक्रमण से बचने के लिए केंद्र सरकार ने ऐसे तमाम राजनीतिक, सामाजिक समारोहों, सेमिनार और बैठकों पर रोक लगा रखी है जिनमें भीड़ जुटने की संभावना हो। क्योंकि भीड़ में संक्रमण के फैलने का सबसे ज़्यादा ख़तरा होता है। शादी समारोह में भी 50 से ज्यादा लोगों के इकट्ठा होने पर प्रतिबंध है। यहां तक कि किसी की मौत पर भी 20 से ज्यादा लोग इकट्ठा नहीं हो सकते। लेकिन महज़ सियासी गुणगान के लिए बीजेपी सैकड़ों लोगों का जमघट लगाकर जश्न मनाना चाहती है। ये मानवता और नैतिकता ही नहीं, MHA की गाइडलाइंस के भी ख़िलाफ़ है। क्योंकि अनलॉक वन की गाइडलाइनंस में साफ लिखा गया है कि राजनीतिक समारोहों पर प्रतिबंध रहेगा। फेस तीन में उस वक्त की स्थिति का आंकलन करने के बाद ही समारोहों की इजाज़त पर फ़ैसला लिया जाएगा। एक तरफ़ ख़ुद सरकार लोगों को सलाह दे रही है कि जब तक बहुत ज्यादा ज़रूरी ना हो, तब तक घर से बाहर मत निकलें और दूसरी तरफ ख़ुद सत्ताधारी पार्टी सबसे गैरज़रूरी आयोजन राजनीतिक रैली के लिए लोगों को घरों से बाहर निकालना चाहती है। दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि बीजेपी को राजनीतिक रैलियों की प्लानिंग पर ऐसा तत्परता दिखाने की बजाए, लोगों की जान, उनके रोजगार और अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए दिखानी चाहिए। अपनी झूठी उपलब्धियां लोगों तक पहुंचाने की बजाए उसे पूरा ज़ोर ग़रीब, मध्यमवर्ग और किसानों तक आर्थिक मदद पहुंचाने पर देना चाहिए। अगर सत्ताधारी पार्टी ने 1 साल में कोई अच्छा काम किया होगा तो वो अपने आप ही लोगों को महसूस हो जाएगा। उसका असर देश के विकास की गति में नज़र आ जाएगा। उसके बारे में लोगों को बताने के लिए मानवीय ज़िंदगी को ताक पर रखने की ज़रूरत नहीं है। पिछले 1 साल में बीजेपी सरकार की उपलब्धियों से कहीं ज्यादा लंबी, उसकी नाकामियों की फेहरिस्त है। सरकार अगर अपनी उपलब्धियां गिनाने के लिए रैली कर सकती है तो विपक्ष उसकी नाकामियां गिनवाने के लिए उससे कहीं ज़्यादा बड़ी रैली कर सकता है। लेकिन ये दौर टकराव की सियासत करने का नहीं है। हमें एकजुट होकर पहले कोरोना को हराना है। सियासी लड़ाई बाद में भी लड़ी जा सकती है। अगर विपक्ष सरकार को किए वादे के मुताबिक संयम बरत रहा है तो सरकार को भी ज़िम्मेदारी से काम लेना चाहिए। Post navigation महेंद्रगढ़ व नारनोल को दो अलग-अलग जिले बनाना ही विवाद का हल : विद्रोही सोनाली फोगाट को बीजेपी ने दी क्लीन चिट!