कोरोना योद्धा शाख की आड़ में सरकार को लगा रहे है चूना
-जनवरी माह में सुपरवाइज़र को लेकर अस्पताल में हुई थी हड़ताल
– मैट्रन की शह से पुरुषों के रहते महिला संविदा कर्मियों से कराया जाता लोडिंग अनलोडिंग कार्य
-शीर्ष स्वास्थ्य अधिकारियों की छत्रछाया में हो रही मनमर्जी और लूट

अशोक कुमार कौशिक

नारनौल। भाजपा सरकार के पारदर्शिता और भ्रष्टाचार मुक्त सरकार के दावे तथा स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज की बेदाग एंव दंबग छवि के खौफ का असर नारनौल के सामान्य अस्पताल में कही देखने को नही मिलता। कोरोना संकट काल के दौरान जिस चिकित्सीय टीम को योद्धा के रूप में तालियों व थाली बजाकर प्रोत्साहित किया गया था, वह जनता और सरकार को धोखा देने में भी पीछे नही  है। टीम के कुछ लोग सरकारी खजाने से लूट मचाने में पीछे नहीं है। यह बात कोरोना संक्रमण काल के दौरान थोड़ा अटपटी जरूर लगती है, पर नारनौल में सच में ऐसा ही हो रहा है। सबसे आश्चर्य की बात यह है कि यह कार्य अस्पताल प्रशासन की शह पर एक ठेकेदार का सुपरवाइजर कर रहा तो कर रहा हो तो क्या सहज ही विश्वास किया जा सकता है। जी हां, नारनौल में यह अक्षरत: ये सत्य है। सरकारी वेतन लेकर मंत्री, विधायक और अधिकारी के निजी काम में लगे कर्मचारियों की खबरें पढ़ी होगी, पर नारनौल में मामला बिल्कुल अलग है। इसका ताजा उदाहरण मंगलवार व बुधवार को देखने को मिला।

सामान्य अस्पताल में चतुर्थ श्रेणी एवं सफाई के कार्य के लिए ठेका प्रणाली आउटसोर्सिंग के तहत रेवाडी़ की बीआर कम्पनी को मैनपावर उपलब्ध कराने का ठेका छोड़ हुआ है। ठेकेदार ने नारनौल सामान्य अस्पताल में एक सुपरवाइजर रख छोड़ा है ताकि मांग के अनुरूप वह मैन पावर मुहैया करा सके। सुपरवाइजर को लेकर काफी दिनों से शिकायतें मिल रही थी इस संवाददाता ने उसकी असलियत की तह में जाना जरूरी समझा। मंगलवार को चार लोगों की सामान्य अस्पताल के हाजिरी रजिस्टर और रोस्टर में उपस्थिति दिखाई गई है। वह काम मनोज नाम के इस ठेकेदार के सुपरवाइजर के गांव भूषण कला में उसके निवास पर निर्माण कार्य करते पाये गये। इन 4 लोगों का बुधवार को भी वही काम करते पाया गया और हिजरी अस्पताल रजिस्टर में दर्ज थी। एक स्ट्रिंग आपरेशन में हमने रामानंद मिस्त्री, देवेंद्र, रुपेश तथा दिनेश जो सेका गांव के निवासी है को मौके पर मनोज के घर काम करते पाया। उनके फोटो व वीडियो इस संवाददाता द्वारा बनाए गए। फोटो और वीडियो बनाते देख वह बिना कोई जबाब दिये घर के अन्दर चले गये।

मनोज संविदा पर रखे गये सफाई कर्मचारियों को अपनी निजी सुरक्षाकर्मी के रुप में भी इस्तेमाल करता है। विचित्र बात यह है की सामान्य अस्पताल नारनौल में रखे जाने वाले किसी भी कार्य के लिये संविदा कर्मचारी बगैर उसकी सहमति के नहीं रखे जाते। उसकी खौफ का आलम यहां तक देखने को मिलता है कि किसी भी वाहन से स्टोर के समान की लोडिंग अनलोडिंग पुरुषों के रहते महिला संविदा कर्मियों से कराई जाती है, वह भी मैट्रन कृष्णा की उपस्थिति में। स्टोर से दवाइयां व अन्य सामग्री को गायब करना उसके बाएं हाथ का खेल है, जिसके हमारे पास वह सीसीटीवी फुटेज हैं। जिसमें सुपरवाइजर मनोज की चोरी दर्ज है। इसके अलावा हमारे पास वह दस्तावेज भी है जिनको लेकर सामान्य अस्पताल में उसके खिलाफ शिकायतें व जांच के आदेश दिए गए।

मनोज को लेकर जनवरी माह में पहली शिकायत सामने तब आई जब लैब टेक्नीशियन कि उसने फोटोग्राफी व वीडियोग्राफी करनी चाही। विरोध करने पर गाली-गलौज और हाथापाई पर उतर आया। इस बात को लेकर चिकित्सा कर्मी तथा डॉक्टर गत जनवरी माह में लगभग ढाई घंटे सामान्य अस्पताल में हड़ताल पर रहे। तब डिप्टी एमएस डॉ राजेश ने अपने स्टाफ को सुपरवाइजर के खिलाफ कार्रवाई का आश्वासन देकर शांत करके उन्हें वापस काम पर लौटाया और स्वास्थ सेवाएं बहाल करवाई।मनोज के लिए किसी इंसानी जान की कीतनी कीमत है इस बात की पुष्टि अस्पताल में कार्यरत डॉ धर्मेंद्र करते हैं।

उन्होंने सामान्य अस्पताल नारनौल के अधिकारियों को भेजे अपने शिकायती पत्र में कहा है कि वह कि विगत वर्ष के नवंबर माह की चार तारीख को वह अपनी रात्रि ड्यूटी पर थे। रात को 10  बजे रेलवे पुलिस का एक कर्मचारी एक घायल अपरिचित मरीज को लेकर आता है। उसके पैर में गंभीर चोट लगी थी और भारी मात्रा में खून बह रहा था। मरीज की नाजुक हालात को देखकर उसे तत्काल हाई सेंटर रैफर किया जाना जरूरी था। इसके लिए चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी सुनील जो मेडिकल विभाग में कार्यरत था तथा विक्रम को मरीज के साथ जाने के आदेश दिए गए। उसने मनोज सुपरवाइजर से फोन पर बात करने के बाद जाने से इंकार कर दिया। रात्रि 2 बजे एंबुलेंस में उस उस मरीज को रोहतक भेजा गया। पर सुबह 4:00 बजे वह एंबुलेंस उसे वापस लेकर लौट आई। जहां जांच करने पर मरीज को मृत घोषित कर दिया गया। यह व्यक्ति मनोज के कारण मर गया। यहां यह सवाल खड़ा होता है कि जब 10-1-19 को मनोज को निलंबित किया जा चुका है था फिर क्यों बाद में मात्र चेतावनी देकर उसे काम पर रख लिया गया । डॉक्टर धर्मेंद्र अपने 21-2 -20 को भेजे रिमाइंडर पत्र जो चिकित्सा चिकित्सा अधीक्षक को भेजा गया और जिसकी प्रतिलिपि स्वास्थ्य मंत्री निदेशक व सिविल सर्जन को भी दी गई मैं पूरा ब्योरा दर्ज है। उन्होंने मनोज की बहाली पर नाखुशी जताई है। मनोज के खिलाफ इतना समय बीतने के बाद भी कार्रवाई क्यों नहीं की गई यह सवाल आज भी ज्यों का त्यों है। मनोज सुपरवाइजर को लेकर की एक जांच स्थानीय सीटीएम कार्यालय में आज भी लंबित है

चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों द्वारा अपने निजी काम कराने का यह कोई पहला मामला नहीं है। इससे पूर्व अस्पताल की मैट्रन कृष्णा के हुड्डा स्थित मकान में भी ऐसे ही संविदा कर्मचारियों से काम कराया गया था । कहा तो यहां तक जाता है कि यदाकदा मुख्य चिकित्सा अधिकारी व अन्य अधिकारियों की सेवा में भी इस प्रकार चतुर्थ श्रेणी संविदा कर्मचारियों को लगाया जाता है। संविदा कर्मचारियों की नियुक्ति और कार्य में भी हेराफेरी की जाती है। सामान्य अस्पताल में काम पर आदमी कम होते है और खजाने से पैसा अधिक वसूला जाता है। इस बंदरबांट में सबका हिस्सा निर्धारित है। इस धोटाले से पर्दा सीटीएम कार्यालय से जारी ग्रीन पास तथा अस्पताल के सीसीटीवी फुटेज से लगाया जा सकता है। जो लोग अस्पताल में काम पर नही होते उनके फुटेज भी नही होते।

-अतीत मे भी सुपरवाइज़र को लेकर हुई थी हड़ताल

मनोज सुपरवाइजर को एक नजर देखकर कोई सहज अनुमान नहीं लगा पाता कि यह ठेकेदार का आदमी हो सकता है। उसकी वेशभूषा, चालढाल का रौब और कार्यालय का रखरखाव यही प्रकट करते हैं कि यह कोई डॉक्टर या अधिकारी है। इस मामले बारे जब उससे पूछा गया तो उसने स्पष्ट इंकार कर दिया और कहा कि उस समय वह अस्पताल में हाजिर नही थे और अतिरिक्त समय में सेवा दे रहे थे। हाजिरी रजिस्टर में कटिंग को लेकर उससे कुछ कहते नही बना।

-क्या कहते है अधिकारी

जब यह फोटो और वीडियो को लेकर यह संवाददाता अपने एक साथी के साथ नारनौल के मुख्य चिकित्सा अधिकारी अशोक कुमार से मिले और मामले की विस्तार से उन्हें जानकारी दी, तो उनका जवाब सुनने लायक था। उनका कहना था कि उनकी प्राथमिकता कोरोना से लड़ना है। वह इस प्रकार के छोटे-मोटे कामों पर ध्यान नहीं रखते। उन्होंने कहा कि इसके लिए मेडिकल सुपरिडेंटेंट ज्यादा जवाब दे सकते है मेरे पास पूरा जिला है । वह उसके निलंबन के बाद बहाल करने, लैब टेक्निशियनों के साथ मारपिटाई और अन्य मामलों को सहजता से टाल गये।

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