-कमलेश भारतीय

यह देश चमत्कारों का देश है । यह विश्वास मुझे भी करना पड़ा । जिस देश में बिना रेस के चमचमाते जूतों के मिल्खा सिंह उड़न सिख बन गये । उसी देश में बिना किसी साइकिल रेस में हिस्सा लिए पंद्रह साल की ज्योति साइकिलिंग की दुनिया की रानी बन गयी । है न चमत्कार । कोई ट्रायल नहीं दिया । किसी रेस में हिस्सा नहीं लिया पर देश भर में ज्योति का या ज्योति से नाम रोशन हो रहा है । यह वही ज्योति है जो हरियाणा के गुरुग्राम से दरभंगा तक बारह सौ किलोमीटर की दूरी अपने पिता को साइकिल के पीछे बिठा कर एक सप्ताह में तय कर गयी ।

एक सप्ताह और बारह सौ किलोमीटर की यात्रा । गुरुग्राम में पापा ई रिक्शा चलाते थे । दुर्घटनाग्रस्त हुए तो रोज़ी रोटी छिन गयी । क्या करें ज्योति ? आखिर अंदर से साहस जुटाता । साइकिल के पीछे पिता को बिठा कर इन भरी दुपहरियों में चल दी इतने कोस दूर जैसे कहें कि सात समंदर पार । यह कोई फिल्मी दृश्य नहीं , न ही फिल्म है लेकिन अब फिल्म चल रही है हर चैनल पर । फिल्म फन बी जायेगी ।

इस साधारण सी ज्योति के अंदर छिपी असाधारण प्रतिभा और संकल्प से राष्ट्रीय साइकिलिंग संघ भी चौंका और जागा । फिर उसके घर दरभंगा में अपना प्रतिनिधि दरभंगा भेजा । निमंत्रण दिया कि हम सारा खर्च उठायेंगे और सिखायेंगे भी चाहे किसी के साथ लाॅकडाउन के बाद दिल्ली आ जाना । ज्योति ने यह ऑफर स्वीकार कर लिया है ।

ऐसे ही मलाल याद आ रही है । जिसने आतंकवादियों से लोहा लिया था । ऐसी ज्योति देश भर में चहुंओर बिखरती रहती है समय समय पर । यह भी झांसी की रानी जैसा रण लड़ी । यह भी संदेश दिया कि जितने साधन हैं उतने में ही अपनी समस्या का हल खोजो । क्या एक छोटी सी साइकिल । और क्या ज्योति का हौंसला ? सलाम । देश में उन युवाओं के लिए बहुत बड़ा संदेश जो कहते हैं कि हम क्या कर सकते हैं ? बहाने कि हमारे पास यह नहीं , वह नहीं । पर ज्योति ने दिखा दिया कि जो है उससे ही बेहतर परिणाम दिए जा सकते हैं । बहानेबाजी छोड़िए । हिम्मत न हारिए । कहते हैं कि बिसारिए न राम ।

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