भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक
गुरुग्राम। कोरोना का आपातकाल समय चल रहा है। हर शख्स धन की किल्लत से जूझ रहा है, चाहे वह सडक़ पर झाडू देने वाला, चाय पीने वाला हो, कर्मचारी हो, या फिर बड़ा कारखानेदार हो। सभी पर कोरोना की मार पड़ चुकी है। जनता ही नहीं, हमारी सरकार भी इससे जूझ रही है।

मुख्यमंत्री भी नए-नए तरीके इजाद करते हैं। यहां तक कि लोगों को मदहोश करने के लिए शराब के ठेके भी खोल दिए हैं। तात्पर्य यह कि पैसे का कितना महत्व है।

गुरुग्राम में कोरोना वॉरियर्स को मास्क, दस्ताने, सेनेटाइजर, पीपीइ किट की कमी जगजाहिर है। समय-समय पर कुछ लोगों उन्हें दान भी दे रहे हैं। इसी प्रकार प्रवासी मजदूर अगर मैं गलती नहीं कर रहा तो गुरुग्राम के निवासी भी रोटी की किल्लत से जूझ रहे हैं। ऐसे में सरकार और प्रशासन के पास भी पैसे की कमी का साक्षात दर्शन हो जाता है।

लेकिन हमारा निगम भामाशाह है या सोमनाथ के मंदिर की तरह इसके पास खजाना है, जो समाप्त नहीं होना, फिर भी फरीदाबाद निगम को 500 करोड़ दे रखे हैं, वह तो वापिस आए नहीं। अगर यह कहें मूल क्या सूद भी नहीं आया तो शायद अनुचित नहीं होगा और ऐसे समय में जब गुरुग्राम, गुरुग्राम का निवासी जिन्होंने टैक्स देकर अपने निगम को धन कुबेर बनाया है, वह भी इस समय पैसे की किल्लत में है और गुरुग्राम निगम इस समय भी अब फरीदाबाद निगम को पैसा देने की तैयारी कर रहा है और शायद कुछ दे भी चुका है। यह कितना टैक्स देने वाले लोगों के दिल को धक्का पहुंचाएगा, यह अनुमान ही लगाया जा सकता है।

आज मैंने निगमायुक्त को कई बार फोन लगाने की चेष्टा की लेकिन फोन नहीं मिला। मैसेज भी नहीं जा रहे। फिर मैंने निगम की मेयर से इस बारे में जानने का प्रयास किया और पूछा कि आप फरीदाबाद निगम को कितना पैसा और किस आधार पर दे रहे हैं तो उन्होंने अपने चिरपरिचत अंदाज में कहा कि मुझे मालूम नहीं आप निगमायुक्त से पूछो तो उनसे कहा कि आप निगम की मेयर हैं, आपकी अध्यक्षता में सब काम होते हैं तो आपकी जानकारी के बिना पैसा कैसे जा सकता है तो उन्होंने उत्तर दिया कि मैं इस बारे में निगमायुक्त से बात करके कल आपको बताउंगी।

इसी बारे में कई पार्षदों से भी बात हुई। पार्षदों का कहना है कि उन्हें तो कुछ पता लगता नहीं। हम तो पैसा देने की हां करेंगे नहीं लेकिन कुछ ऐसी बातें सुनने में आ रही है कि मुख्यमंत्री की ओर से आदेश आया है। मैंने पूछा कि जहां तक मेरी समझ है मुख्यमंत्री स्वयं तो इस प्रकार की चिट्ठी जारी करेंगे नहीं तो उनका कहना था कि समझ क्यों नहीं रहें, इस सबकी चिट्ठी थोड़ी होती हैं, कोई न कोई रास्ते बन जाते हैं और जो सरकार चाहती है वह होता है। किसी पार्षद का यह भी कहना था कि हमें इस बारे में जानकारी ही नहीं लगती। निगम की मीटिंग हर माह होनी चाहिए और निगम गठित हुए ढ़ाई वर्ष से अधिक का समय व्यतीत हो चुका है। अब तक शायद कुल 13 मीटिंग हुई होंगी। प्रश्न यह है कि मीटिंग में सबकुछ सामने आता है, जबकि निगम अधिकारी कुछ बताना चाहते नहीं, जहां कहीं आवश्यक होता है तो मेयर टीम से बात कर काम कर लेते हैं।

तात्पर्य यह हुआ कि इस बारे में जनता के चुने हुए प्रतिनिधि पार्षद और मेयर को पता ही नहीं है। क्या गुरुग्राम की जनता ने इन्हें अपना नुमाइंदा बनाकर इसीलिए भेजा था कि अधिकारियों के हाथों की कठपुतलियां बन जाएं और उत्तर यह दें कि हमें कुछ पता ही नहीं।

कह सकते हैं कि हमने मोदी जी की तरह इन्हें अपना चौकीदार बनाया था लेकिन वे क्या कर रहे हैं, जो गुरुग्राम का माल लुट रहा है।

यह हुई थी पार्षदों और मेयर की बात। गुरुग्राम की जनता ने अपने चौकीदारी के लिए विधायक भी चुन रखें हैं। विधायकों को भी अपने क्षेत्र की भलाई, विकास, सुरक्षा आदि की जिम्मेदारी निभानी होती है। अभी तक तो दिखाई दे नहीं रहा कि विधायक गुरुग्राम या विधायक बादशाहपुर ने इस बारे में कुछ कहा हो। जब वे दोनों ही नहीं बोले तो पटौदी और सोहना के विधायकों की तो बात ही करना फिजूल है। ऐसे में फिर वही सवाल उठता है कि गुरुग्राम के चौकीदार गुरुग्राम के धन की सुरक्षा में क्यों पिछड़ रहे हैं? क्यों लुट रहा है गुरुग्राम?

इसी विषय पर बात जिसका कुछ ज्ञान हुआ है, वह यह है कि जो पैसा गुरुग्राम फरीदाबाद निगम को देगा, वह शायद फरीदाबाद निगम को न देकर सफाई चर्चित कंपनी इकोग्रीन को देगा, ऐसा सुना जा रहा है।

इकोग्रीन जबसे आई है, तबसे ही चर्चा में रही है। कोई अच्छाई के काम में नहीं, शिकायतों के लिए ही। अभी गुरुग्राम में एक नव जन चेतना मंच है, उसका कहना है कि सफाई में गुरुग्राम का स्तर गिरता जा रहा है, इसकी वजह भी इकोग्रीन है। साथ ही बंधवाड़ी में गंदगी का पहाड़ बना हुआ है उसकी जिम्मेदार भी इकोग्रीन है। मंच के अनुसार इकोग्रीन सफाई की बजाय क्षेत्र के लोगों के स्वास्थ का भी नुकसान कर रही है लेकिन कोई उससे प्रश्न पूछने वाला क्यों नहीं है, उसे कैंसिल क्यों नहीं किया जाता।

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