16 मई 2020, स्वयंसेवी संस्था ग्रामीण भारत के अध्यक्ष वेदप्रकाश विद्रोही ने कहा कि वित्त मंत्री द्वारा किसानों, खेतिहर मजदूरों, मछुआरों आदि के लिए तीसरे दिन का कथित आर्थिक पैकेज भी एक ऐसा जुमला पैकेज है जिसमें संकटग्रस्त किसान, मजदूरों, गरीबो, मछुआरों, आदिवासियों को इस संकट से निबटने में कोई आर्थिक सहायता देने बजाए वादो-दावों, आंकड़ों की बाजीगरी से भविष्य के मुंगेरीलाल के सपने दिखाए और वर्तमान स्थिति की उपेक्षा की1

विद्रोही ने कहा कि कृषि आधारभूत ढांचा, भंडारण, फसल मूल्यवर्धन, कोल्ड चेन, फसल कटाई बाद की विभिन्न सुविधाओं, प्रधानमंत्री मत्यस संपदा योजना, पशुपालन, औषधीय खेती, मधुमक्खी पालन, फूड एंटरप्राइज, पीएम किसान सम्मान योजना आदि का नाम गिनाकर लंबे चौड़े दावे करके किसान, मजदूर, गरीब, मछुआरों, खेतिहर मजदूरों, आदिवासियों को भविष्य की खुशहाली के मुंगेरीलाल के हसीन सपने दिखाए1 सवाल उठता है कि भविष्य की योजनाओं से क्या इन तबकों का वर्तमान का आर्थिक संकट मिट जाएगा? क्या भविष्य की खुशहाली के सपनों से आज का आर्थिक संकट खत्म हो जाएगा?

विद्रोही ने उदाहरण देते हुए कहा वर्ष 2014 में किसान को सपना दिखाया था कि 2017 तक उसकी आय दोगुनी कर दी जाएगी1 फिर कहा गया 2019 तक आय दोगुनी होगी, फिर 2019 में कहा गया वर्ष 2022 में आय दोगुनी होगी और अब 2020 में कहा जा वर्ष-2025 में आय दोगुनी होगी1 वहीं वर्ष 2023 में कह दिया जाएगा 2030 में आय दोगुनी होगी और इसे इसी तरह बार-बार बढ़ाकर 2040 कर दिया जाएगा1 ऐसे तो किसान आय दोगुनी होने से रही1

विद्रोही ने कहा मोदी जी ने किसान का फसल न्यूनतम समर्थन मूल्य लागत मूल्य से डेढ़ गुना ज्यादा करने का जुमला उछाला था1 पर लागत मूल्य की की हदों को खर्च में शामिल न करके थोड़ा सा समर्थन बढ़ाकर मीडिया मैनेजमेंट से डेढ़ गुना ज्यादा फसल न्यूनतम समर्थन मूल्य देने का ढोंग कर दिया1

विद्रोही ने कहा कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना आदि पुरानी योजनाएं है1 पर इन्है फिर बार-बार दोहराने से किसान को करता मिलेगा? नई बोतल में पुरानी शराब भरने से किसान को क्या मिलेगा? मनरेगा बजट में एक पैसा बढ़ाए बिना ज्यादा लोगों को गांव में कैसे काम मिलेगा यह समझ से परे है? विगत 5 सालों से कृषि आधारभूत ढांचा मजबूत करने के दावे किए जा रहे पर स्थिति ज्यों की त्यों है1 फरवरी 2020 के बजट में किसान, खेतिहर मजदूरों, आदिवासियों, खेती, गरीबों के लिए जो दावे किए थे आर्थिक पैकेज के नाम पर उन्हें बार-बार दोहराया जा रहा है1 भविष्य के सपनों से वर्तमान का दुख कैसे दूर होगा यह समझ से परे है1 किसान, खेतिहर मज़दूरो, मछुआरे, गरीब, आदिवासियों को आज पैसा चाहिए ताकि वह इस आर्थिक संकट के दौर में भी जी सके1 उसे आज तो कुछ दिया नहीं जा रहा, भविष्य में क्या होगा इसका आज से क्या लेना-देना?

विद्रोही ने कहा कि सरकार आर्थिक पैकेज के नाम पर हाका लगा रही है और कह रही है कर्ज ले लो, कर्ज ले लो, काम करो, कर्ज बढ़ाओ और मोदी के गुण गाओ1 घाटे की खेती से पिस्ता पहले ही कर्ज बोझ से दबकर अपनी आर्थिक कमर तुड़वा चुका है अब और अधिक कर्ज लेगा तो करते बोझ से दबकर मर जायेंगे1

विद्रोही ने कहा मोदी सरकार इस संकट घड़ी में किसान, मजदूर, गरीब की आर्थिक सहायता करने बजाएं उसकी बेबसी, लाचारी का मजाक बनाकर उसके जख्मों पर नमक छिडक़कर उसे और दर्द दे रही है1

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