विजय गर्ग …….. सेवानिवृत्त प्राचार्य

परिचय
प्लास्टिक का उपयोग हमारे दैनिक जीवन में व्यापक रूप से होता है। इसका टिकाऊ और मजबूत होना इसे कई उपयोगों के लिए उपयुक्त बनाता है, लेकिन जब यह कचरे के रूप में पर्यावरण में पहुँचता है, तो गंभीर समस्या उत्पन्न करता है। जापान के रिकनी संस्थान के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा नया प्लास्टिक विकसित किया है, जो उपयोग में टिकाऊ है, लेकिन समुद्र के खारे पानी में आसानी से घुलकर माइक्रोप्लास्टिक जैसी समस्याओं से बचाता है।
प्लास्टिक की मजबूती और समस्या
प्लास्टिक में सहसंयोजक बंध होते हैं, जो इसे मजबूत और टिकाऊ बनाते हैं। यही वजह है कि प्लास्टिक पैकेजिंग, खिलौने और अन्य वस्तुओं में व्यापक रूप से इस्तेमाल होता है। लेकिन यही मजबूती पर्यावरण के लिए घातक बन जाती है। एक बार इस्तेमाल के बाद फेंके गए प्लास्टिक कप या पैकेट दशकों तक लैंडफिल में पड़े रहते हैं और टूटने पर माइक्रोप्लास्टिक में बदलकर हमारे स्वास्थ्य और पर्यावरण को नुकसान पहुँचाते हैं।
नवीनतम खोज: सुपरमोलेक्युलर पॉलिमर

वैज्ञानिकों ने अब एक नया सुपरमोलेक्युलर पॉलिमर विकसित किया है, जो उपयोग में मजबूत और टिकाऊ है, लेकिन खारे पानी में घुलकर सुरक्षित यौगिकों में परिवर्तित हो जाता है। इसे बनाने के लिए सोडियम हेक्सामेटाफॉस्फेट और ग्वानिडिनियम आयनों का उपयोग किया गया है। ये दोनों तत्व सामान्य खाद्य योजक और उर्वरकों में भी उपयोग किए जाते हैं।
जब इन यौगिकों को पानी में मिलाया जाता है, तो यह एक चिपचिपा पदार्थ बनाता है जिसे सुखाकर प्लास्टिक का रूप दिया जा सकता है। यह प्लास्टिक सामान्य परिस्थितियों में मजबूत और लचीला होता है, लेकिन खारे पानी के संपर्क में आने पर आठ घंटे के भीतर पूरी तरह घुल जाता है।
जल्दी घुलने की समस्या और समाधान
डिग्रेडेबल प्लास्टिक की एक बड़ी चुनौती यह होती है कि कहीं यह गलती से उपयोग के दौरान न घुल जाए। वैज्ञानिकों ने इस समस्या का समाधान हाइड्रोफोबिक कोटिंग से किया है, जो इसे जल्दी घुलने से बचाती है। जब इसे नष्ट करना हो, तो सतह पर एक हल्की खरोंच इसे खारे पानी के संपर्क में लाकर घुलने की प्रक्रिया शुरू कर देती है।
पर्यावरण के लिए लाभकारी
यह नया प्लास्टिक नाइट्रोजन और फास्फोरस जैसे पोषक तत्वों में टूटता है, जो पौधों और सूक्ष्मजीवों के लिए उपयोगी हैं। हालांकि, अधिक मात्रा में ये भी पर्यावरण के लिए हानिकारक हो सकते हैं, इसलिए वैज्ञानिक विशेष संयंत्रों में इस प्लास्टिक का पुनर्चक्रण करने की सलाह देते हैं।
अगर यह प्लास्टिक समुद्र में भी पहुँच जाता है, तो यह वर्तमान प्लास्टिक कचरे की तुलना में कम हानिकारक और संभवतः लाभकारी साबित होगा।
निष्कर्ष
यह खोज पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि है। यदि इस तकनीक का सफलतापूर्वक व्यावसायीकरण हो जाता है, तो भविष्य में प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या पर प्रभावी तरीके से काबू पाया जा सकेगा।
विजय गर्ग, सेवानिवृत्त प्राचार्य, शैक्षिक स्तंभकार, गली कौर चंद एमएचआर मलोट, पंजाब