शशि कांत शर्मा
चेयरमैन विश्व ब्राह्मण संघ *

चैत्र नवरात्र एक ऐसा पावन अवसर है, जब प्रकृति स्वयं जागरण का संदेश देती है और समस्त सृष्टि में ऊर्जा का संचार होता है। यह पर्व केवल उपासना और व्रत तक सीमित नहीं, बल्कि यह आत्मशक्ति, आत्मानुशासन और जीवन की सकारात्मक ऊर्जा को संजोने का अनुपम अवसर है। इस दौरान माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा कर साधक अपनी आत्मशक्ति को जागृत करता है और जीवन में आने वाली हर बाधा को परास्त करने का संकल्प लेता है।

शक्ति की उपासना और उसका महत्व

मनुष्य जितना शक्ति से परिचित होता है, उतना ही वह अपने जीवन को सुदृढ़ और समृद्ध बना पाता है। शक्ति का यह स्वरूप केवल बाहरी साधनों तक सीमित नहीं, बल्कि आंतरिक बल, आत्मविश्वास और संकल्प शक्ति से भी जुड़ा होता है। चैत्र नवरात्र के दौरान किए जाने वाले मंत्रोच्चार, यज्ञ, ध्यान और व्रत हमारे मानसिक, आध्यात्मिक और शारीरिक स्तर को ऊर्जावान बनाने का कार्य करते हैं।

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

इस मंत्र का जाप यह दर्शाता है कि माँ शक्ति संपूर्ण सृष्टि में व्याप्त हैं और जो साधक उनकी आराधना करता है, वह अपनी आंतरिक शक्ति को जागृत कर लेता है। कठिन समय में शक्ति साधना ही मनुष्य को धैर्य और सफलता के मार्ग पर अग्रसर करती है।

विजय का मार्ग: शक्ति और संयम

मनुष्य को जीवन में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। चाहे वह बाहरी शत्रु हों या आंतरिक कमजोरियाँ, शक्ति की उपासना से ही इन पर विजय प्राप्त की जा सकती है। जो व्यक्ति आत्मसंयम और शक्ति का पालन करता है, वह विपरीत परिस्थितियों को भी अपने पक्ष में मोड़ सकता है। महलों में बैठे शासकों से अधिक शक्ति उस व्यक्ति में होती है जो साधना से अपनी आत्मिक और मानसिक शक्ति को जागृत करता है।

नवरात्र: आत्ममंथन और समाज कल्याण का अवसर

नवरात्र केवल व्यक्तिगत उपासना का पर्व नहीं, बल्कि यह सामाजिक जागरूकता का भी प्रतीक है। भारतीय संस्कृति में शक्ति की आराधना का तात्पर्य केवल ईश्वर की पूजा नहीं, बल्कि नारीशक्ति के सम्मान, समाज में नैतिकता की स्थापना और धर्म एवं संस्कृति के संरक्षण से भी जुड़ा हुआ है।

श्रद्धा सत्तां कुलजनभवस्य लज्जा।
तां त्वां नता: स्म परिपालय देवि विश्वम्।।

माँ शक्ति केवल देवी रूप में ही नहीं, बल्कि माता, बहन, पुत्री और सहधर्मिणी के रूप में भी पूजनीय हैं। समाज में जब-जब शक्ति की अवहेलना हुई, तब-तब अधर्म और अन्याय का विस्तार हुआ। अतः नवरात्र हमें यह स्मरण कराता है कि शक्ति केवल पूजा का विषय नहीं, बल्कि उसके संरक्षण और सम्मान का भी विषय है।

नवचेतना का जागरण

हर भारतीय के लिए नवरात्र एक आत्ममंथन का अवसर है। यह हमें यह सोचने के लिए प्रेरित करता है कि हम अपने कर्तव्यों के प्रति कितने सजग हैं, समाज में हमारी भूमिका क्या है, और क्या हम वास्तव में शक्ति एवं धर्म की रक्षा के लिए तत्पर हैं।

इसलिए, इस चैत्र नवरात्र में केवल बाहरी आडंबरों तक सीमित न रहते हुए, अपने भीतर की शक्ति को पहचानें और आत्मसुधार एवं समाज के कल्याण का संकल्प लें। यही सच्ची शक्ति साधना और नवरात्र की सार्थकता होगी।

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