भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

बुधवार को सारा दिन यही चर्चाएं चलती रहीं कि 17 मई के बाद का लॉकडाउन-4 कैसा होगा। सभी अपने-अपने अनुमान जाहिर कर रहे थे। किसी का कहना था कि बाजार भी खुलेंगे, दुकानें भी खुलेंगी, कल कारखाने भी खुलेंगे, हो सकता है कि मॉल न खुलें लेकिन बाजार तो खुल ही रहे हैं तो खुले ही रहेंगे।

चर्चा में जो सबसे अधिक चर्चा थी तो वह थी लोकल को वोकल करना है। अब इसका अर्थ सभी अपने-अपने तरीके से निकाल रहे थे। कोई कह रहा था कि इसका अर्थ है कि अब केवल देश में बनी हुई चीजें इस्तेमाल करनी है, विदेशी नहीं। उसके पक्ष में उन्होंने तर्क भी दिया कि एक जून से अमित शाह ने सभी फौजी कैंटीनों पर लोकल सामान बेचने के आदेश भी कर दिए हैं। बहुत से लोगों का कहना था कि ये आदेश तो कर दिए लेकिन विदेशी सामान हमारे रोजमर्रा के जीवन में इस कद्र व्याप्त हो चुका है कि उसके बिना जीवन की कल्पना ही मुश्किल है। तो चर्चा में यह बात भी सामने आई कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो चाहें वो कर सकते हैं। चर्चा में यह बात भी आई कि 6 वर्ष से अधिक हो गए मोदी जी को, अब तक उन्होंने लोकल को वोकल करने के लिए क्या किया? अभी चंद दिनों पहले ही हमारे मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री, यूपी के मुख्यमंत्री बड़े जोरों से चर्चा कर रहे थे कि हमारे देश में अमेरिकी कंपनियां आने को इच्छुक हैं, जो चाइना से अपना कारोबार समेट रही हैं और यह पलकें बिछाए उनका इंतजार कर रहे हैं। अब ऐसे में लोकल को वोकल कैसे कर पाएंगे?

वर्तमान में स्थिति यह है कि जगह-जगह बॉर्डर जाम किए हुए हैं, सामान की सप्लाई चेन बन नहीं पा रही है। इस कारण से रोजमर्रा का सामान ही कालाबाजारी पर बिक रहा है। बहुत से सामानों की किल्लत भी हो रही है। इन स्थितियों से जूझने के लिए और जनता को इसका अभ्यस्थ बनाने के लिए भी शायद लोकल को वोकल करने का नारा दिया गया है।

चलिए यह तो हुई लोकल के वोकल की बात। अब प्रश्न यह है कि जो सामान्य जीवन की चेन टूट रही है, फैक्ट्रियां बंद हो गई हैं, दुकानें बंद हैं, कार-स्कूटर की वर्कशॉप बंद हैं, इन सभी को आरंभ करने के लिए कुछ समय की दरकार होगी, क्योंकि काम करने वाले मजदूरों ने काम न मिलने की वजह से इधर-उधर नए ठिकाने ढूंढ लिए हैं। कुछ अपने घर भी चले गए हैं। आपने भी देखा होगा कि अनेक गोल गप्पे, ऑमलेट, टिक्की लगाते थे, वे अब सब्जी बेच रहे हैं। इसी प्रकार बहुत से रिक्शा ऑटो वाले भी इन्हीं कामों में लगे हैं। अब परिवर्तन करके काम आरंभ होने वाले समय तो लगेगा ही।

चलिए यह तो छोटे काम की बात हुई। दो दिन पूर्व मारूति का मानेसर प्लांट आरंभ हो गया है लेकिन फिर भी काम में वह फ्लो नहीं आया, जो वहां देखी जाती थी। इसके पीछे कारण कई हो सकते हैं, प्रथम तो यह है कि आने वाले टाइम में मारूति की गाडिय़ां कितनी बिकेंगी, जब गाडिय़ां सडक़ पर चल ही नहीं रहीं और लोगों के पास धन की भी कमी आ रही हैं तो ऐसे गाडिय़ां कहां से बिकेंगी। गाडिय़ां नहीं बिकेंगी तो प्रोडक्शन करके गाडिय़ों को शोरूम में रखेगी कंपनी और मारूति से जुड़ी हुई अनेक कंपनियां हैं, जो मारूति पर निर्भर होकर ही चलती हैं। ऐसी ही हालत हीरो और होड़ा मोटर्स की है। तात्पर्य है कि इन सभी का रूटीन में आना बड़ा मुश्किल लग रहा है।

लॉकडाउन-4 की सबसे बड़ी समस्या स्वास्थ विभाग ही रहने वाला है, क्योंकि स्वास्थ विभाग पर जनता को भरोसा नहीं है कि वह कब, कैसे, किसकी कोविड की जांच करते हैं और सामान्य बीमारी के मरीजों को कब देखना शुरू करेंगे। इस ओर न स्वास्थ विभाग का ध्यान है, न विधायक का ध्यान है, न उपायुक्त का ध्यान है, न कुंडू साहब का ध्यान है और हमारे सांसद इस बारे में कुछ बोल रहे हैं। इन सभी लोगों से आम जनता की ओर से एक बात पूछना चाहेंगे कि आप सभी तो समर्थ हैं किसी भी हाल में किसी भी समय दवा ले सकते हैं लेकिन आमजन का क्या होगा?

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