उमेश जोशी 

 मारुति ने मानेसर में अपने दो प्लांटों में उत्पादन तो शुरू कर दिया है लेकिन बाज़ार के हालात देखते हुए मार्केटिंग सबसे बड़ी चुनौती है। पिछले महीने अप्रैल में मारुति की एक भी गाड़ी नहीं बिकी। मारुति ने 14 दिसंबर 1983 को पहली गाड़ी बाजार में उतारी थी। बीते करीब साढ़े 35 वर्षों में पहली बार ऐसा हुआ कि पूरे महीने मारुति की एक भी गाड़ी नहीं बिकी। भारतीय कार बाजार में लंबे समय से अग्रणी रही मारुति ने कभी नही सोचा होगा कि उसके इतिहास में यह काला पन्ना भी जुड़ेगा। उत्पादन करना कंपनी के बूते में है लेकिन कार बेचना उसके बूते में नहीं है। बाज़ार की ताकतों पर मांग निर्भर करती है। कंपनी के पास पहले ही 20 हज़ार गाड़ियां स्टॉक में हैं। अब फिर उत्पादन शुरू कर दिया है। कंपनी इस सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ सकती कि आने वाला समय बहुत चुनौतियों भरा होगा। कोरोना से उत्पन्न हालात से पूरे विश्व में प्राथमिकताएँ बदल गई हैं; आगे और भी बदलेंगी।

लॉक डाउन से पहले मारुति के पास 2800 गाड़ियां कई शहरों में भिजवाने के ऑर्डर थे लेकिन अचानक लॉक डाउन होने कारण वो गाड़ियां नहीं भिजवाई जा सकीं। जापानी कंपनी एपीआई लोजिस्टिक्स, जो मारुति की सप्लाई लाइन का काम देखती है, अब गाड़ियां भिजवाने का बंदोबस्त कर रही है। साढ़े छह सौ गाड़ियों की पहली खेप बावल से मालगाड़ी के ज़रिए भेजी जाएगी। 

अहम सवाल यह है कि गाड़ियां भेजने के बावजूद क्या बिक पाएगी। क्या बाज़ार में इस समय गाड़ियों की मांग है? रोज़ी रोटी के संकट से जूझ रहे लोग क्या कार खरीदने को प्राथमिकता देंगे? इन हालात में कंपनी उत्पादन कहाँ खपाएगी। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी हालात भारत जैसे ही हैं इसलिए निर्यात की भी गुंजाइश नज़र नहीं आती। 

 मारुति ने मानेसर प्लांट कल 48 दिन बाद फिर चालू कर दिया लेकिन प्लांट में वो गहमागहमी नहीं थी जो 25 मार्च को लॉक डाउन से पहले थी। इसकी वजह यह है कि कंपनी ने भारी ऐहतियाती कदम उठाए हैं और 600 कर्मचारियों के साथ उत्पादन शुरू किया है यानी पहले के 6000 मुकाबले मात्र 600 कर्मचारी काम पर लौटे हैं। 

 मारुति उद्योग लिमिटेड ने हर कदम पर सुरक्षात्मक उपाय अपनाए हैं। काम पर लौटने वाले कर्मचारियों को कंपनी की बस से प्लांट तक लाया गया। बस में सवार होने से प्रत्येक कर्मचारी का तापमान मापा गया। प्लांट में प्रवेश करने से पहले फिर से तापमान लिया गया, यानी हर कर्मचारी का दो बार तापमान जांचा गया। यह प्रक्रिया रोज़ाना अपनाई जाएगी। 

प्लांट में सभी के लिए मास्क और दस्ताने ज़रूरी हैं। प्लांट में प्रवेश से पहले हरेक कर्मचारी के स्वास्थ्य संबंधी 14 दिन के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया। मारुति ने भारत सरकार के आरोग्य सेतु’ एप्प जैसा ही अपना अलग एप्प तैयार करवाया है। उसमें  सभी कर्मचारियों के स्वास्थ्य संबंधी सारे आंकड़े उपलब्ध हैं। कंपनी इस मामले में कोई जोखिम नहीं लेना चाहती क्योंकि एक भी कर्मचारी संक्रमित हो गया तो प्लांट फिर से बंद करना पड़ जाएगा। कर्मचारी भी नहीं चाहते कि प्लांट बंद हो और रोज़ी रोटी का संकट फिर खड़ा हो जाए इसलिए सभी कर्मचारी सुरक्षात्मक उपायों का पूरी तरह पालन कर रहे हैं।

 प्लांट में सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखने के मकसद से कई छोटे छोटे जोन बना दिए हैं। हर कर्मचारी को अपने निर्धारित जोन में ही रह कर काम करना है। एक कर्मचारी को दूसरे कर्मचारी से अलग करने के लिए छह फुट ऊंचा पार्टीशन बनाया गया है। 

  कैंटीन में पहले एक टेबल पर छह लोग बैठ सकते थे लेकिन अब सिर्फ दो कर्मचारी ही बैठेंगे। उनके बीच में भी प्लास्टिक का पार्टीशन किया गया है। खाना भी उन्हें पैकेट्स में दिया जाता है।

 चाय और पानी की मशीनें अब हाथ के बजाय पांव से चलने वाली लगाई गई हैं। ऐसी मशीनें जहां हाथ लगाए बिना काम नहीं चलता, उनके लिए भी नई वैकल्पिक व्यवस्था बनाई गई है। उन मशीनों में सेंसर लगाए गए हैं या पांव से बटन दबाने का प्रावधान किया गया है। 

पहले लंच के वक़्त कर्मचारी बाहर आ जाते थे। अब कर्मचारी प्लांट में रहते हैं। अब कर्मचारी बातचीत के लिए इकट्ठे नहीं होते।  कर्मचारी 48 दिन बाद आपस में मिले थे फिर भी लंबे समय बाद मिलने की खुशी में गले लगने जैसी रस्म से दूर रहे। 

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