-चोर रास्तों से भी हो सकती है कोरोना की एंट्री,कुछ नाकों पर पुलिस ही दिखा रही रास्ते -दिल्ली से कैसे रेलवे पुलिस जवान नारनौल, नारनौल का युवक और रेवाडी़ सेक्टर -4 में एक महिला आखिर कैसे पहुंच गये-नसीबपुर की लाल माटी नारनौल तथा पीतल नगरी रेवाडी़ को ग्रीन जोन से बाहर निकालने में आखिर कौन जिम्मेदार -क्या निक्कमें अधिकारियों पर होगी कार्यवाही

अशोक कुमार कौशिक

 नारनौल।  पुरी दुनिया के सामने ‘ब्लैक पैंथर’ की तरह प्रकट हुए कोविड-19 वायरस से अभी तक अछूते ग्रीन जोन में शामिल रेवाड़ी-नारनौल में खतरे के बादल एका मंडरा गये है। पीतल नगरी के साथ, साथ लगती नसीबपुर की धरती पर भी कोविड दस्तक दे चुका है। वहीं नसीबपुर की माटी और पीतल नगरी का सेक्टर-4 भी 24 घंटे के अंदर सुर्खियों का केन्द्र बन गया है।

नारनौल में रेलवे पुलिस के तीन जवान और शहर का युवक को आज पोजीटिव घोषित कर दिया है। रेवाडी़ शहर में एंट्री करने वाली एक महिला, उसकी लड़की व एक अन्य कोरोना की चपेट में है। कैंसर पीड़ित मां से मिलकर तीन दिन पहले लौटी इस महिला के भाई की रिपोर्ट दिल्ली में पॉजीटिव आ चुकी है।

-आज जिले की पत्रकारिता चाटुकारिता में बदलती जा रही है आज कुछ लोग इस सेवा की आड़ में सरकार और प्रशासन की जी हजूरी में लगे हुए वह जनता के बीच गलत तथ्यों को पेश कर रहे हैं मैं आम जनता से निवेदन करता हूं कि वह निम्न बातों को सोचे और विचार करें कि जब प्रदेश सरकार ने दिल्ली के बॉर्डर को सील कर दिया उसके बाद गुरूग्राम बॉर्डर रेवाड़ी जिला बॉर्डर तत्पश्चात जिला महेंद्रगढ़ का बॉर्डर जहां पर पुलिस नाक की लगे हुए हैं आखिर वह क्या कर रहे थे चलो यह मान लेते हैं कि यह रेलवे पुलिस में होने के कारण पुलिस ने इनको सहयोग कर दिया लेकिन जो चौथा मरीज कैब में बैठकरआया है, जो नारनौल का ही है। वह कौन से पास से आया ? आखिर दिल्ली से नारनौल तक कि पुलिस नाका किस लिये लगाए गए? केवल जनता को भ्रमाने  या उनकी जेब काटने के लिए?

सबसे बड़ी बात यह है कि कुछ तो हॉटस्पॉट एरिया से भी नारनौल और रेवाड़ी पहुंच गए । यह तो भला हो ‘जुगलखोर’ लोगों का जोे समय रहते एक्टिव रहते हुए सूचित कर रहे है, वरना चैन इतनी लंबी खींच जाएगी कि संभालना मुश्किल हो सकता है। कोरोना से पहले भले ही ‘जुगलखोर’ लोगों को बुरी नजर से देखा जाता था, लेकिन अब यह किसी भगवान से कम नहीं है। उम्मीद है कि आप भी इसी रास्ते पर चलते हुए दोनों शहर और जिले नहीं, बल्कि खुद को भी बचाने की कोशिश करेंगे।

कल तक ये करोना योद्धा थे। इन्हें सम्मानित किया जा रहा था।  आज सेवा के दौरान जब यह संक्रमित हो गये तो एकाएक विलेन बना दिये गये? आज जब यह लोग स्वयं चलकर अस्पताल में पहुंचे तब इनके विरुद्ध गलत बातें प्रचारित की जा रही है आखिर क्यों इसमें किसका दोष है, केवल प्रशासन का जो अपनी जिम्मेदारियों से भाग रहा था।

 आखिर जब इनके संक्रमित होने की जानकारी प्रशासन को लगी तो आखिर क्यों नहीं छानबीन करनी शुरू की गई। यह लोग किन किन के संपर्क में आए यह जानकारी तभी क्यों नहीं जुटानी शुरू की गई । आखिर रिपोर्ट का इंतजार क्यों किया गया क्या रिपोर्ट इन सब कुछ है ।

जब पुलिस अधीक्षक सुलोचना गजराज स्वयं बार-बार जिले के बॉर्डर पर लगाए गए पुलिस नाकों को चेक करती रही और लगातार मीडिया नाक पर से बेरोकटोक आवागमन की बात सार्वजनिक करता रहा प्रशासन क्यों नही चेता। यह खामी कहां मिली आखिर यह लोग उड़कर तो आए नहीं आए तो सड़क रास्ते से ही है । क्या प्रशासन पर लापरवाही और सरकार को अंधेरे में रखने का मामला दर्ज नहीं होना चाहिए उसके खिलाफ कार्रवाई नही होनी चाहिए। क्या जिले के मंत्री को स्वयं पहल करके प्रशासन के खिलाफ ठोस कार्रवाई की सिफारिश नहीं करनी चाहिए । 

प्रशासन यह बताने की जहमत उठायेगा कि उसने गांवों में ठीकरी पहरा न लगने पर कितने सरपंचों के खिलाफ कार्रवाई की। जबकि मीडिया लगातार इस और से प्रशासन को आगाह करता आ रहा है।हम जिला महेंद्रगढ़ को छोड़ दें, रेवाड़ी में भी तो एक महिला सड़क रास्ते से चलकर आई थी और वहां भी उसके कारण दो लोग और पोजीटिव हो गये।

आखिर उसके पास पास कहां था प्रशासन पुलिस अपनी खामियों को छुपाने के लिए जनता को इस महामारी की चपेट में ले आई और नारनौल के अस्पताल का तो राम ही रखवाला है यहां तो जेबी काटने में नहीं बल्कि गर्दन उठाने में पीछे नहीं रह जाता यहां का स्टाफ डॉक्टर सीधे मुकेश जी से बात नहीं करते थे मैं यह बात करो ना महामारी के आगमन से पहले की बता रहा हूं लेकिन इस ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया मेरी एक भाजपा के चेयरमैन रह चुके नेता से इस बारे में बातचीत बात भी हुई थी उसके बाद भाजपा के ही एक अन्य नेता से भी इस बारे में गुफ्तगू हुई

महिला में भी खांसी, जुकाम, बुखार के लक्षण दिखाई दिए है। कोठी नंबर में रहने वाले 9 सदस्यों के सैंपल लिए गए है। सबसे बड़ी बात यह है कि आखिर सबकुछ सील होने के बावजूद एक से दूसरे जिले में एंट्री कैसे हो रही है। अगर कोई कहे की नाकों पर ढील है तो यह बिल्कुल ठीक नहीं है, लेकिन यह जरूर ठीक है कि कुछ पुलिसकर्मी ही दरियादिली से ‘चोर रास्तों’ की कच्ची-पक्की सड़क दिखा रहे है।

-कोरोना फाइटर्स आखिरी  तक लड़े जिले के लिए

जब पुरे देश में लोक डाउन हुआ  ,सब बंद हो गया तब ये कोरोना फाइटर दिन रात बिना किसी लोभ व लालच के लिए अपने जिले को बचाने में लगे थे पुरे जिले में भूखे लोगो तक खाना पहुंचना , लोगो की मदद करना लोगो को जागरूक करना यहाँ तक अपनी जान की परवाह किये बिना ये लड़ रहे थे देश के लिए कोरोना की जंग

 दिल्ली से चल कर कोरोना नारनौल पंहुचा इस मामले की जानकारी कोरोना योद्धाओ को लगी तो फ़ास्ट न्यूज़ ग्रुप में खबर ब्रेक हुई अब आप अंदाजा लगाए अगर ये खबर कोरोना योद्धाओ के द्वारा नहीं चलाई जाती या फिर पत्रकारिता की बजाय चाटुकारिता कर इसे दबाने और दिल्ली से कोरोना लेकर आने वालो को वापस भेज दिया जाता तो इसके परिणाम क्या होते? 

लेकिन जिले को बचाने के लिए इन योद्धाओ ने जिमेवारी निभाई और जिले की जनता को बचाया जा सके इसके लिए ठोस कदम उठाये गए लेकिन इन सब के बीच एक खचड़ी पक रही थी जिसका किसी को कोई अंदाजा नहीं था ये खिचड़ी कल सामने आई लेकिन इसे बनाया उस समय से जा रहा था जब ये योद्धा लड़ रहे थे। कोरोना की  जंग कोरोना योद्धाओ पर ऊँगली उठा सवाल करने वालो ने 2 रूपए का योगदान तक नहीं दिया लेकिन कोरोना फाइटर की हिम्मत को तोड़ने के लिए कई विफल प्रयास किये

 नारनौल में कोरोना पॉजिटिव जवानो की जांच पड़ताल में हर बिंदु पर नजर डाली लेकिन वो आप को ये बताना जरूर भूल गये की खबर फ़ास्ट न्यूज़ ग्रुप में खबर आने के बाद प्रशासन हरकत में आया खबर चली तो एक के बाद एक  पहलू पर जिला प्रशासन जांच करने लगा 

अब इस मामले में मंत्री जी कहा है वो भी आप को बता देते है दरसल जब कोई चुनाव होता है तो उसके बाद ही उसके रुझान आते है ऐसा ही कुछ अब हो रहा है नारनौल से मंत्री जी मिलसार साधारण वयक्तित्व के धनी है मंत्री जी के लिए तो एक कहावत भी है की कोई भी बच्चा मंत्री जी हाथ पकड़ कर साथ ले जाता है लेकिन फिर भी चुनावो के दौरान मुँह की खाने वाले आज कोरोना के समय भी कही न कही मत्री जी को निशाना बना रहे है लेकिन ये जनता है इसे सब पता है की आज कल नारनौल में जनसरोकार पत्रकारिता  की बजाय राजनैतिक पत्रकारिता का ट्रैंड चल रहा है

ये सामग्री परोसी गई वहाटस अप पर

नारनौल आये आरपीएफ के कोरोना पोजीटिव जवानों की टे्रवल हिस्ट्री के जुटाये गए आंकडे, सुनकर चौंक जाएंगे आप* – **-डाक्टरों से लेकर मंत्री के पीए तक से छिपाई कोरोना पोजीटिव की *रिपोर्ट की जानकारी* क्या ऐसे होते है कोरोना फाइटर्स, जिनको अपना परिवार प्यारा लगा और दूसरों की जिदंगी कुछ नहीं।* 

महेंद्रगढ जिला को ग्रीन जोन से ओरेंज बनाने वाले इन जवानों के बारे में एक पोस्ट पढ़कर बहुत ही हैरानी हुई है। उस पोस्ट में इन जवानों को ऐसे हीरो बनाने की कोशिश की गई है जो वास्तविकता से कोसों दूर हैं।

जुटाये गए* *आंकडों के साथ कुछ सवाल है इनका जवाब कौन देगा, फाइटर्स या हवा में बातें करने वाले।* 

*नंबर 1:* -ये जवान 5 मई को अपनी यूनिट से चलने के बाद रास्ते में करोल बाग के एक निजी अस्पताल में अपनी जांच का सैंपल देकर राजस्थान के बुहाना, चरखी और नारनौल के पास के गांव स्थित अपने-अपने घरों के लिए रवाना होते हैं, तो ये नारनौल हुडा हाउसिंग बोर्ड में क्यों ठहरते हैं। क्या ये नारनौल रुककर अपनी रिपोर्ट का इसलिए इंतजार कर रहे थे कि कही ये सीधे अपने-अपने घर जाकर परिवार के लोगों से घुल मिल जाये और रिपोर्ट पोजीटिव आ गई तो इनके परिवार वालों की जिंदगी भी दाव पर होगी। इन लोगों को अपने परिवार की तो चिंता रही, लेकिन नारनौल के लोगों की जिंदगी इनके लिए कुछ नहीं थी जो यहां रुककर इन्होंने कोरोना की सौगात दे दी।

 *नंबर 2:-* अगले दिन 6 मई को इन तीन जवानों में से दो को मेल या व्हाटसअप से उनकी जांच कोरोना पोजीटिव होने की जानकारी मिल जाती है तो ये लोग इसकी सूचना सीधे प्रशासन या सीएमओ को देने की बजाय अपनी जांच रिपोर्ट की क्रास चेकिंग के लिए अस्पताल पहुंचते है। अस्पताल के फ्लू कार्नर में, जहां पर इन लोगों ने किसी भी डाक्टर को अपनी दिल्ली की रिपोर्ट जांच का जिक्र नहीं किया। केवल फ्लू कार्नर के माध्यम से अपनी जांच करवाना चाहते थे।

*नंबर 3:-* इस फ्लू कार्नर में ये लोग अपना पता हाउसिंग बोर्ड बताते हैं, पोजीटिव की बात तक छिपाकर अस्पताल के डाक्टरों से लेकर फ्लू कार्नर में आने वाले अन्य पेशेंटो के संपर्क में आये। फ्लू कार्नर में जांच के ठोस कारण नहीं बता पाने पर सैंपल 6 मई को नहीं लिए गए तो ये तीनों यहां से वापस चले जाते हैं लेकिन तब तक भी ना तो सीएमओ और ना ही प्रशासन के किसी अधिकारी को अपनी पोजीटिव जांच के बारे में अवगत करवाते हैं। इसके बाद 6 मई की रात तक ये लोग कई लोगों से संपर्क में भी रहे।

*नंबर 4:-* अगले दिन 7 मई को ये लोग फिर अस्पताल पंहुचते हैं तो इनको यह कहा जाता है कि जब आप बिल्कुल ठीकठाक हो तो आखिर क्यों जांच करवाना चाहते हैं तो *इनके परिचित से मंत्री जी के कार्यालय में इनकी जांच के लिए फोन किया जाता है लेकिन तब तक उनको भी अंधेरे में रखा जाता है।* फिर भी जब अस्पताल में इनकी जांच बाबत सवाल किए जाते हैं तो फिर मंत्री कार्यालय को आखिर में यह बताया जाता है कि उनके पास दिल्ली के एक अस्पताल की पोजीटिव जांच रिपोर्ट है।

*फिर मंत्री जी के पीए द्वारा अस्पताल प्रशासन को यह बात बताई जाती है तो अस्पताल प्रशासन से लेकर जिला प्रशासन तक हडकंप मच जाता है।* इन जवानों की दिल्ली से लेकर नारनौल अस्पताल में जांच करवाने तक की यह सारी हिस्ट्री तथ्यों पर आधारित है और हर बिंदु पर क्रास चेक करके ही यहां लिखा गया है। फिर भी इन जवानों को आखिर हीरो क्यों बनाया जा रहा है। इनके बारे में सोशल मीडिया पर लिखा जाता है कि खुद अस्पताल पहुंचे कोरोना पोजीटिव लेकिन अस्पताल प्रशासन ने भर्ती नहीं किया, फलां ग्रुप की न्यूज पर एक्शन लेकर फोन घनघनाएं तो बाछोद से बुलाकर किया गया भर्ती।

इसकी सच्चाई सुन लो, यह कोरोना पोजीटिव हां चलकर अस्पताल पंहुचे लेकिन अपनी जांच को क्रास चेक करवाना इनका मकसद था। यदि ये वास्तव में कोरोना फाइटर्स थे तो इनको 5 मई को नारनौल रुकने की बजाय सीधे अपने अपने घर जाकर परिवार वालों को यह बताना चाहिए था हम अपना सैंपल दिल्ली छोडकर आये हैं, रिपोर्ट आने तक हमें अपने घर में कुरंनटाइन रहना है।

चलो मान ले 5 मई को यदि घर नहीं जा सकते थे तो 6 मई को रिपोर्ट आने तक किसी से नहीं मिलना चाहिए और रिपोर्ट आते ही इसकी सूचना फोन से पुलिस या जिला प्रशासन को सबसे पहले देनी चाहिए थी क्योंकि ये एक तरह से पुलिस सेवा का ही हिस्सा हैं, लेकिन इन्होंने 6 मई को अपनी रिपोर्ट छिपाई और 7 मई को तब बताया जब नारनौल अस्पताल प्रशासन को यह जांच के लिए अपना ठोस आधार नहीं बता पाए।अब वापस बुलाकर भर्ती करने की सच्चाई भी सुन लो। अस्पताल प्रशासन का कहना है कि ये जवान दिल्ली के लिए रवाना ही नहीं हुए थे, इनको कॉल करके बुलाने की बात ही कहां से आ गई वे खुद हैरान है। सीएमओ का कहना है कि जैसे ही दिल्ली लैब की रिपोर्ट के बारे में जब उन्हें पता चला तो उन्होंने खुद चलाकर जिला प्रशासन और अपने उच्चाधिकारियों को सूचना दी। उनके पास *चंडीगढ या उनके विभाग के किसी उच्चाधिकारियों का अस्पताल में भर्ती बाबत कोई कॉल नहीं आई।  मीडिया में जो प्रचार किया गया वो सत्यता से परे हैं।

* तो यह है इन *कोरोना के फाइटरों की असलियत अब लोग कुछ भी कहे और क्यों कह रहे हैं

-नारनौल ही नहीं जिला महेंद्रगढ़ के निवासियों को यह भी यह भी जानना चाहिये कि दिल्ली पुलिस के जवान की ऑडियो वायरल होने के बाद जो पीड़ा दर्शाया गई वह नारनौल सिविल अस्पताल से मिलता जुलता ही मामला है। हालांकि ऐसी स्थिति कमोवेश पूरे देश में देखने को मिल जाएगी लेकिन महेंद्रगढ़ जिला के लोगों से इसलिए अपील की जा रही है कि आप अभी तक ग्रीन जोन में थे लेकिन कल से ऑरेंज जॉन में आ चुके हो और और इससे बढ़कर रेड जोन में ना आ जाओ इसलिए घरों में रहो और सुरक्षित रहो 

अस्पताल नारनौल की तीन चार मामले से जरूर पाठक को अवगत होना चाहिये। 

गांव कुलताजपुर कि जो महिला जयपुर के एक अस्पताल में पॉजिटिव मिली थी। उसी अस्पताल के वार्ड में नारनौल की एक महिला का इलाज चल रहा था कुलताजपुर वाली महिला की जब तीसरी रिपोर्ट पॉजिटिव आई तो नारनौल के इस परिवार ने खुद ही जाकर नारनौल के अस्पताल में अपना चेकअप करवाया था क्योंकि इनका मानना था कि यह भी उस कुलताजपुर वाली महिला के संपर्क में थे। इस परिवार के चेकअप के दौरान इनकी जो पेशेंट महिला थी उसने ऑपरेशन जयपुर से करवाया था जिसकी एक नली जो ऑपरेशन के दौरान खाने पीने के लिए लगाई थी वह निकल गई थी जब उसके परिजनों ने नारनौल के अस्पताल के डॉक्टरो से इस नली को ठीक करने के लिए कहा तो सिविल अस्पताल के डॉक्टरों ने यह कहकर उस नली को दोबारा से लगाने से इनकार कर दिया था कि यह महिला कुलताजपुर वाली महिला के संपर्क में रही है। इसके बाद उस महिला को नारनौल के निजी अस्पतालों में ले जाया गया लेकिन किसी ने भी उसकी नली को ठीक नहीं किया।

रेवाड़ी रोड पर बहरोड़ से आये एक परिवार को खांसी जुखाम की शिकायत पर अस्पताल में फोन करके बुलाया तो अस्पताल प्रशासन ने हाथ खड़े कर दिये थे।

-राजस्थान के बॉर्डर कुंड के गांव मनेठी कि एक प्रेग्नेंट महिला को डिलीवरी के दौरान एडमिट करने से मना कर दिया गया था जबकि वह महिला 2 महीने से नारनौल में ही रह रही थी

 -अब  बृहस्पतिवार को रेलवे पुलिस के जवानों का सारा प्रकरण आपके सामने हैं जब इनके पास पॉजिटिव जांच रिपोर्ट की जानकारी मिली तो किस प्रकार नारनौल अस्पताल के डॉक्टरों ने इसे इनको भर्ती करने से मना कर दिया था।

 इससे स्पष्ट है कि यदि आप लोग इसकी चपेट में आ गये तो आप लोगों को अस्पताल में कोई पूछने वाला नहीँ है। आपके घर वालों से भी नहीं मिलने दिया जाएगा।

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