वर्ल्ड इनइक्वालिटी रिपोर्ट 2026-वैश्विक और भारतीय असमानता का कठोर आईना

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असमानता की सदी में प्रवेश करती दुनियाँ ?-एक समग्र विश्लेषण

असमानता को कम करना कोई आदर्शवादी सपना नहीं, बल्कि राजनीतिक इच्छाशक्ति और सही नीतियों का परिणाम है

वर्ल्ड इनइक्वालिटी रिपोर्ट 2026 के संदर्भ में नीतिगत सुधार-भारत और विश्व के लिए न्यायपूर्ण विकास का रोडमैप ज़रूरी-असमानता अब नीति-विफलता का नाम है

– एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी

गोंदिया – वैश्विक स्तरपर 21वीं सदी को तकनीकी प्रगति, वैश्वीकरण और आर्थिक विस्तार की सदी के रूप में प्रचारित किया गया है। दुनिया के अधिकांश देशों में जीडीपी, डिजिटल अर्थव्यवस्था और बाजारों का आकार लगातार बढ़ा है। किंतु इस चमकदार विकास के पीछे छिपी सच्चाई यह है कि आय, संपत्ति, अवसर और संसाधनों का वितरण अत्यंत असमान होता जा रहा है। वर्ल्ड इनइक्वालिटी रिपोर्ट 2026 इसी असहज सत्य को वैश्विक और राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर उजागर करती है और स्पष्ट करती है कि आर्थिक विकास अपने आप में सामाजिक न्याय की गारंटी नहीं है।मैं, एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया (महाराष्ट्र), यह मानता हूँ कि यह रिपोर्ट निर्णायक रूप से सिद्ध करती है कि आय और संपत्ति की बढ़ती खाई कोई प्राकृतिक या आकस्मिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि सुनियोजित नीतिगत विकल्पों का प्रत्यक्ष परिणाम है।

वर्ल्ड इनइक्वालिटी रिपोर्ट 2026: स्रोत और विश्वसनीयता

वर्ल्ड इनइक्वालिटी रिपोर्ट 2026 को वर्ल्ड इनइक्वालिटी लैब के तत्वावधान में तैयार किया गया है। यह लैब पेरिस स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स से जुड़े विश्वप्रसिद्ध अर्थशास्त्रियों द्वारा स्थापित एक स्वतंत्र अकादमिक मंच है। इसका उद्देश्य वैश्विक आय और संपत्ति असमानता पर तथ्यात्मक, पारदर्शी और दीर्घकालिक शोध प्रस्तुत करना है।यह रिपोर्ट किसी सरकार या अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्था द्वारा नहीं, बल्कि स्वतंत्र शोधकर्ताओं और डेटा वैज्ञानिकों द्वारा तैयार की जाती है, जिससे इसकी निष्पक्षता और विश्वसनीयता बनी रहती है।

रिपोर्ट निर्माण की वैश्विक और पारदर्शी प्रक्रिया

वर्ल्ड इनइक्वालिटी रिपोर्ट 2026 के निर्माण में 200 से अधिक शोधकर्ता, अर्थशास्त्री और सामाजिक विशेषज्ञ शामिल रहे। इसके प्रमुख संपादकों में ल्यूकस चांसल, थॉमस पिकेटी, रिकार्डो गोमेज़ कैररा और रोवाइदा मोशरिफ जैसे वैश्विक ख्यातिप्राप्त विद्वान शामिल हैं।रिपोर्ट में 180 से अधिक देशों के टैक्स डेटा, राष्ट्रीय आय खाते, घरेलू सर्वेक्षण और ऐतिहासिक अभिलेखों का विश्लेषण किया गया है। यह केवल वर्तमान स्थिति नहीं, बल्कि 1980 से 2025 तक की दीर्घकालिक प्रवृत्तियों को भी सामने लाती है।

भारत में आय असमानता-रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचता संकट

वर्ल्ड इनइक्वालिटी रिपोर्ट 2026 के अनुसार भारत में आय असमानता ऐतिहासिक उच्च स्तर पर पहुँच चुकी है। रिपोर्ट बताती है कि भारत की कुल राष्ट्रीय आय का लगभग 58 प्रतिशत हिस्सा केवल शीर्ष 10 प्रतिशत आबादी के पास केंद्रित है, जबकि नीचे की 50 प्रतिशत आबादी को मात्र 15 प्रतिशत आय ही प्राप्त होती है।यह स्थिति 2021 की तुलना में और अधिक गंभीर हुई है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि आर्थिक वृद्धि का लाभ समाज के निचले तबकों तक पहुँचने के बजाय और अधिक ऊपर सिमटता जा रहा है।

प्रति व्यक्ति आय का भ्रम-औसत बनाम वास्तविकता

रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रति व्यक्ति औसत वार्षिक आय (पीपीपी आधार पर) लगभग 6.56 लाख रुपये है। किंतु यह आंकड़ा अत्यंत भ्रामक है। वास्तविकता यह है कि इसी कुल आय का 58 प्रतिशत शीर्ष 10 प्रतिशत को प्राप्त होता है, जबकि शेष 90 प्रतिशत आबादी केवल 42 प्रतिशत आय में संतोष करने को विवश है।यह स्पष्ट करता है कि औसत आय भारत की वास्तविक सामाजिक-आर्थिक स्थिति को प्रतिबिंबित नहीं करती।

संपत्ति असमानता-आय से भी अधिक भयावह संकट

यदि आय असमानता चिंताजनक है, तो संपत्ति असमानता उससे कहीं अधिक गंभीर और खतरनाक है। रिपोर्ट के अनुसार भारत की कुल संपत्ति का लगभग 65 प्रतिशत शीर्ष 10 प्रतिशत के पास केंद्रित है, जबकि शीर्ष 1 प्रतिशत के पास ही करीब 40 प्रतिशत संपत्ति सिमटी हुई है।संपत्ति असमानता इसलिए अधिक घातक है क्योंकि यह पीढ़ी-दर-पीढ़ी स्थानांतरित होती है और सामाजिक गतिशीलता को लगभग समाप्त कर देती है।

महिला श्रम भागीदारी-भारत की सबसे बड़ी नीतिगत विफलता

वर्ल्ड इनइक्वालिटी रिपोर्ट 2026 भारत की फीमेल लेबर पार्टिसिपेशन रेट को भी रेखांकित करती है, जो मात्र 15.7 प्रतिशत है। इसका अर्थ है कि हर 100 पुरुषों के मुकाबले केवल 15–16 महिलाएं ही औपचारिक रोजगार में हैं।

पिछले एक दशक में यह स्थिति लगभग स्थिर बनी हुई है। वैश्विक स्तर पर महिलाएं कुल श्रम आय का लगभग 25 प्रतिशत अर्जित करती हैं, जबकि भारत इस वैश्विक औसत से भी काफी नीचे है।

मिडिल क्लास का पतन-भारत का सामाजिक अवनयन

रिपोर्ट का एक अत्यंत चौंकाने वाला निष्कर्ष यह है कि 1980 में भारत की बड़ी आबादी वैश्विक मिडिल 40 प्रतिशत में शामिल थी, लेकिन 2025 तक वह लगभग पूरी तरह बॉटम 50 प्रतिशत में खिसक चुकी है।

इसके विपरीत, चीन ने इसी अवधि में अपनी बड़ी आबादी को आर्थिक सीढ़ी पर ऊपर की ओर स्थानांतरित किया। यह तथ्य दर्शाता है कि भारत का विकास मॉडल समावेशी नहीं रहा।

वैश्विक असमानता की तस्वीर- एक संरचनात्मक संकट

रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक स्तर पर शीर्ष 10 प्रतिशत लोगों के पास 75 प्रतिशत संपत्ति है, जबकि नीचे की 50 प्रतिशत आबादी के पास मात्र 2 प्रतिशत संपत्ति ही है। आय के स्तर पर भी शीर्ष 10 प्रतिशत 53 प्रतिशत वैश्विक आय नियंत्रित करते हैं, जबकि बॉटम 50 प्रतिशत को केवल 8 प्रतिशत ही प्राप्त होता है।यह स्पष्ट करता है कि असमानता केवल विकासशील देशों की समस्या नहीं, बल्कि एक वैश्विक संरचनात्मक संकट है।

भारत की वैश्विक स्थिति-दक्षिण अफ्रीका के बाद सबसे असमान

रिपोर्ट के अनुसार भारत दुनिया के सबसे अधिक असमान देशों में से एक है। केवल दक्षिण अफ्रीका भारत से आगे है, जहाँ शीर्ष 10 प्रतिशत को 66 प्रतिशत आय और 85 प्रतिशत संपत्ति प्राप्त होती है।लैटिन अमेरिका के देशों-ब्राजील और मैक्सिको:में भी शीर्ष 10 प्रतिशत लगभग 60 प्रतिशत आय नियंत्रित करते हैं। इसके विपरीत, स्वीडन और नॉर्वे जैसे यूरोपीय देशों में बॉटम 50 प्रतिशत को 25 प्रतिशत तक आय मिलती है, जो यह सिद्ध करता है कि सही नीति-निर्माण से असमानता को नियंत्रित किया जा सकता है।

क्षेत्रीय असमानता और कार्बन न्याय

रिपोर्ट बताती है कि नॉर्थ अमेरिका और ओशिनिया में औसत वैश्विक संपत्ति से 338 प्रतिशत अधिक संपत्ति केंद्रित है, जबकि साउथ एशिया (भारत सहित) वैश्विक औसत से काफी नीचे है। यह असमानता केवल देशों के भीतर ही नहीं, बल्कि देशों के बीच भी बढ़ती जा रही है।रिपोर्ट पहली बार आर्थिक असमानता और कार्बन उत्सर्जन के संबंध को भी स्पष्ट करती है। वैश्विक कार्बन उत्सर्जन का 77 प्रतिशत शीर्ष 10 प्रतिशत लोगों के कारण होता है, जबकि नीचे की 50 प्रतिशत आबादी केवल 3 प्रतिशत उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है, फिर भी जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा बोझ गरीब वर्गों पर पड़ता है।

भारत के लिए नीतिगत सुधार- न्यायपूर्ण विकास का रोडमैप

वर्ल्ड इनइक्वालिटी रिपोर्ट 2026 का केंद्रीय संदेश स्पष्ट है-असमानता को कम करना कोई आदर्शवादी सपना नहीं, बल्कि राजनीतिक इच्छाशक्ति और सही नीतियों का परिणाम है।

भारत के लिए आवश्यक है कि वह:

  • प्रगतिशील कर प्रणाली लागू करे
  • संपत्ति पुनर्वितरण और सामाजिक निवेश बढ़ाए
  • श्रम-केंद्रित नीतियाँ अपनाए
  • महिला श्रम भागीदारी को बढ़ावा दे
  • शिक्षा और स्वास्थ्य को प्राथमिकता दे
  • क्षेत्रीय असमानता और संघीय वित्तीय सुधारों पर ध्यान दे
  • जलवायु न्याय और लोकतांत्रिक पारदर्शिता सुनिश्चित करे

अतःअगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे क़िvविकास बनाम न्याय की निर्णायक लड़ाईवर्ल्ड इनइक्वालिटी रिपोर्ट 2026 यह स्पष्ट चेतावनी देती है कि यदि भारत और दुनिया ने अपनी आर्थिक नीतियों में बदलाव नहीं किया, तो विकास सामाजिक स्थिरता, लोकतंत्र और पर्यावरण के लिए खतरा बन जाएगा। असमानता केवल आर्थिक समस्या नहीं, बल्कि एक गहरा राजनीतिक, सामाजिक और पर्यावरणीय संकट है।भारत के लिए यह रिपोर्ट एक चेतावनी भी है और अवसर भी कि यदि विकास का लाभ व्यापक आबादी तक नहीं पहुँचा, तो आर्थिक वृद्धि के आंकड़े अंततः अर्थहीन हो जाएंगे।

-संकलनकर्ता एवं लेखक-कर विशेषज्ञ | स्तंभकार | साहित्यकार | अंतरराष्ट्रीय लेखक | चिंतक | कवि | सामाजिक विश्लेषक सीए (एटीसी) | एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया, महाराष्ट्र

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Author: Bharat Sarathi

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