यह सरासर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का अपमान और गरीबों के हितों पर प्रहार है- राव नरेंद्र सिंह
चंडीगढ़, 16 दिसंबर। संसद के शीतकालीन सत्र में केंद्र सरकार द्वारा पेश किए गए ‘विकसित भारत – रोजगार एवं आजीविका गारंटी मिशन (ग्रामीण) विधेयक 2025’ ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। यह विधेयक मौजूदा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) को पूरी तरह निरस्त कर एक नई योजना की नींव रखने का प्रस्ताव करता है। जहां सरकार इसे ‘विकसित भारत 2047’ के विजन से जोड़कर ग्रामीण विकास की मजबूती का दावा कर रही है, वहीं विपक्षी दल, खासकर कांग्रेस, इसे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अपमान और गरीबों के हितों पर प्रहार बता रहे हैं। हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष राव नरेंद्र सिंह ने इस पर तीखा हमला बोलते हुए भाजपा की ‘तुच्छ मानसिकता’ को जिम्मेदार ठहराया है, और सवाल उठाया है – ‘अब बापू से भी दिक्कत?’
राव नरेंद्र सिंह ने कहा कि यह विधेयक मनरेगा की जगह एक नई योजना लाने का प्रयास है, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार गारंटी को 100 दिनों से बढ़ाकर 125 दिनों तक करने का प्रावधान है। उन्होंने बताया कि सरकार का तर्क है कि यह बदलाव ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करेगा और 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लक्ष्य को साकार करेगा।
हालांकि, यह मात्र नाम बदलने का खेल है।
राव नरेंद्र सिंह ने कहा, “नाम बदलना मुख्य मुद्दों से ध्यान भटकाने का तरीका है, ताकि लोग इसमें उलझे रहें। दुर्भाग्यपूर्ण है कि अब आपको महात्मा गांधी से भी दिक्कत हो गई है, आप उनका नाम हटा रहे हैं।” उन्होंने योजना के फंडिंग मॉडल में बदलाव पर भी सवाल उठाया। पहले केंद्र सरकार 90 प्रतिशत फंड देती थी, जबकि राज्य 10 प्रतिशत, लेकिन नए विधेयक में इसे 60:40 के अनुपात में बदल दिया गया है। सिंह ने चिंता जताई कि गरीब राज्य, जैसे बिहार या उत्तर प्रदेश, अतिरिक्त 30 प्रतिशत फंड कहां से जुटाएंगे? इससे योजना की प्रभावशीलता पर असर पड़ सकता है, और ग्रामीण गरीबों को रोजगार की गारंटी मिलना मुश्किल हो जाएगा। इसके अलावा, सिंह ने मजदूरी दरों में वृद्धि न करने पर भी आपत्ति जताई। वर्तमान में मनरेगा के तहत औसत मजदूरी 200-300 रुपये प्रतिदिन है, जो मुद्रास्फीति को देखते हुए अपर्याप्त है।
उन्होंने कहा कि 2006 में कांग्रेस सरकार ने मनरेगा को 100 दिनों के रोजगार गारंटी के साथ शुरू किया था, जो ग्रामीण भारत की क्रांति साबित हुई। उन्होंने नाम बदलने को ‘राष्ट्रपिता का अपमान’ करार दिया।
मनरेगा गांधीजी के ग्राम स्वराज के सपने का प्रतीक है। नाम हटाना सिर्फ एक योजना का नहीं, बल्कि भारतीय इतिहास के एक अध्याय को मिटाने की कोशिश है।”
राव नरेंद्र सिंह ने कहा कि भाजपा सरकार ने पहले कई योजनाओं के नाम बदले हैं, जैसे इंदिरा आवास योजना को प्रधानमंत्री आवास योजना में बदलना, लेकिन गांधीजी का नाम हटाना एक नई निम्नता है।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस द्वारा शुरू की गई मनरेगा ने ग्रामीण गरीबी उन्मूलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है – 2024 तक इसने 3 करोड़ से अधिक परिवारों को रोजगार प्रदान किया। लेकिन भ्रष्टाचार और देरी से भुगतान जैसी समस्याएं भी रही हैं। नाम बदलाव से क्या फर्क पड़ेगा, लेकिन अगर फंडिंग अनुपात बदलता है, तो राज्य सरकारों पर बोझ बढ़ सकता है, जो अंततः गरीबों को प्रभावित करेगा। उन्होंने कहा कि सरकार का यह कदम ‘अमृत काल’ की राजनीति से जुड़ा लगता है, जहां पुरानी योजनाओं को नए नाम से पुनर्ब्रांड किया जा रहा है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह बदलाव वास्तविक सुधार लाएगा या सिर्फ सतही? आंकड़ों के अनुसार, मनरेगा का बजट 2024-25 में 86,000 करोड़ रुपये था, लेकिन नए अनुपात से राज्य बजट पर दबाव बढ़ सकता है। यदि मजदूरी दरें नहीं बढ़ीं, तो मुद्रास्फीति के दौर में मजदूरों की क्रय शक्ति घटेगी, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को कमजोर कर सकती है।
वहीं नेशनल हेराल्ड प्रकरण पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए राव नरेंद्र सिंह ने कहा कि दिल्ली की राउज एवेन्यू अदालत द्वारा प्रवर्तन निदेशालय (ED) की चार्जशीट पर संज्ञान लेने से इनकार किया जाना सत्य की स्पष्ट विजय है।
उन्होंने कहा कि यह फैसला इस बात का प्रमाण है कि झूठ और साजिश की राजनीति आखिरकार न्याय के सामने टिक नहीं पाती। भाजपा का सिंहासन अब डगमगाने लगा है, इसी हताशा में वह आनन-फानन में झूठे आरोप गढ़कर कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को फंसाने का प्रयास कर रही है।
राव नरेंद्र सिंह ने स्पष्ट किया कि इस पूरे मामले में न तो किसी प्रकार का धन का लेन-देन हुआ और न ही किसी संपत्ति का हस्तांतरण, इसके बावजूद मनी लॉन्ड्रिंग जैसा गंभीर आरोप गढ़ा गया। उन्होंने कहा कि यह मामला कानून का नहीं, बल्कि पूरी तरह से राजनीतिक प्रतिशोध और बदले की भावना से प्रेरित है।
उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा कांग्रेस की बढ़ती मजबूती से भयभीत है, इसी कारण वह झूठे मामलों के जरिए विपक्ष की आवाज को दबाने का असफल प्रयास कर रही है।








