दिल्ली की ऐतिहासिक रैली में भी एकजुट नहीं हो सकी गुरुग्राम कांग्रेस, कार्यकर्ता हुए हताश
गुरुग्राम। देश की राजधानी दिल्ली के रामलीला मैदान में रविवार, 14 दिसंबर 2025 को इंडियन नेशनल कांग्रेस द्वारा आयोजित बहुचर्चित ‘वोट चोर–गद्दी छोड़’ महारैली जहां राष्ट्रीय स्तर पर सत्ता के खिलाफ विपक्ष की ताकत दिखाने का मंच बनी, वहीं गुरुग्राम कांग्रेस के लिए यह रैली आपसी फूट, गुटबाज़ी और संगठनात्मक विफलता का आईना बनकर सामने आई।
रैली को सफल बनाने के लिए कांग्रेस नेतृत्व द्वारा करीब एक माह पहले से सभी प्रदेश, जिला और ब्लॉक स्तर की कमेटियों को सक्रिय किया गया था। जगह-जगह बैठकों का दौर चला और निर्देश दिए गए कि अधिक से अधिक कार्यकर्ताओं को दिल्ली ले जाया जाए, ताकि लोकतंत्र और संविधान की रक्षा की लड़ाई को मजबूती मिल सके।
गुरुग्राम से शुरू हुई थी तैयारी, पर एकता नदारद रही
दक्षिण हरियाणा के जिलों की एक अहम बैठक गुरुग्राम ग्रामीण जिला कांग्रेस कार्यालय में आयोजित की गई थी। इस बैठक में
- प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राव नरेंद्र सिंह,
- पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा,
- प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष जतिंदर भारद्वाज,
- सांसद दीपेंद्र हुड्डा,
- विधायक एवं अन्य वरिष्ठ नेता,
- गुरुग्राम ग्रामीण अध्यक्ष वर्धन यादव
सहित कई पदाधिकारी मौजूद रहे।
लेकिन इस बैठक में कांग्रेस की वरिष्ठ नेता कुमारी शैलजा और रणदीप सिंह सुरजेवाला की गैरमौजूदगी ने कई सवाल खड़े कर दिए। न केवल वे स्वयं नहीं पहुंचे, बल्कि उनके समर्थक भी इस बैठक से पूरी तरह नदारद रहे। यहीं से यह साफ हो गया कि गुरुग्राम कांग्रेस भीतर से कितनी बंटी हुई है।
प्रेस से दूरी, प्रचार से दूरी, ज़िम्मेदारी से दूरी
इस महत्वपूर्ण बैठक के बाद गुरुग्राम जिला कांग्रेस ने मीडिया से दूरी बनाए रखी।
रैली से ठीक पहले के 2–4 दिन, जब संगठन को युद्ध स्तर पर काम करना चाहिए था, उस दौरान:
- न शहरी जिला अध्यक्ष पंकज डावर
- और न ही ग्रामीण जिला अध्यक्ष वर्धन यादव
ने रैली को लेकर एक भी प्रेस कॉन्फ्रेंस की। ना कोई प्रेस रिलीज, ना अखबारों में विज्ञापन, ना कार्यकर्ताओं को एकजुट करने के लिए कोई संगठित प्रयास।
जबकि अन्य जिलों के कांग्रेस अध्यक्ष रोज़ अखबारों में बयान, विज्ञप्तियां और रैली को लेकर प्रचार कर रहे थे।
रैली के दिन भी अलग-अलग दिखे नेता
14 दिसंबर को, जब गुरुग्राम कांग्रेस को एकजुट होकर दिल्ली रवाना होना था, तब तस्वीर बिल्कुल उलट नजर आई।
- शहरी जिला अध्यक्ष पंकज डावर ने अपने समर्थकों को कमान सराय कार्यालय पर इकट्ठा किया।
- ग्रामीण जिला अध्यक्ष वर्धन यादव ने अपने समर्थकों को अपने कार्यालय पर बुलाया।
एक मंच, एक नेतृत्व और एक रणनीति की जगह तीतर-बितर कांग्रेस दिखाई दी।
ग्रामीण कांग्रेस में भी कई गुट
ग्रामीण कांग्रेस में भी एकजुटता पूरी तरह गायब रही—
- चौधरी संतोष सिंह अपनी अलग टीम लेकर रैली में पहुंचे।
- पर्ल चौधरी और नीरज यादव भी अपनी-अपनी अलग टीम के साथ गए।
प्रदेश अध्यक्ष राव नरेंद्र सिंह, पर्ल चौधरी के कार्यक्रम में तो नजर आए, लेकिन दोनों जिला अध्यक्षों के कार्यक्रमों से दूरी बनाए रखी, जिससे अंदरूनी खींचतान और स्पष्ट हो गई।
बड़े नेताओं की मौजूदगी भी सवालों के घेरे में
गुरुग्राम के जिन बड़े नेताओं से संगठन को मजबूती मिलनी चाहिए थी— सुखबीर कटारिया, कुलराज कटारिया, प्रदीप जैलदार, मुकेश शर्मा, सूबे सिंह—
उनकी रैली में मौजूदगी को लेकर कोई ठोस जानकारी सामने नहीं आई।
कार्यकर्ता बोले— हम कांग्रेस के सिपाही हैं, किसी गुट के नहीं
कई कार्यकर्ता ऐसे भी थे, जो स्थानीय नेताओं की आपसी खींचतान से परेशान होकर सीधे मेट्रो से रामलीला मैदान पहुंचे।
उनका साफ कहना था— “हम कांग्रेस के सिपाही हैं, किसी स्थानीय नेता के नहीं। यहां सिर्फ चहेतों को पूछा जाता है। जो जी-हुज़ूरी नहीं करता, उसे संगठन में जगह नहीं मिलती।”
संवाददाता की आपबीती: संगठन की हकीकत सामने आई
संवाददाता के तौर पर मेरी अपनी आपबीती भी इस अव्यवस्था को उजागर करती है।
चार दिन पहले कमान सराय कार्यालय में टैलेंट हंट को लेकर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की गई थी।
जब ग्रामीण जिला अध्यक्ष वर्धन यादव से सवाल किया गया, तो जवाब मिला—
“ मैं किसी का फोन नहीं उठाता।”
कार्यकर्ताओं ने बताया कि ये सांसद दीपेंद्र हुड्डा के चहेते है, और ये सिर्फ सांसद दीपेंद्र हुड्डा का फोन उठाते हैं, बाकी कार्यकर्ताओं या आम कांग्रेसजनों से संपर्क करना उन्हें ज़रूरी नहीं लगता। ऐसे में सवाल उठता है कि जो कार्यकर्ता आगे आना चाहता है, वह संपर्क किससे करे?
दिल्ली से सटा जिला, फिर भी कमजोर मौजूदगी
गौर करने वाली बात यह भी है कि गुरुग्राम, दिल्ली से सटा हुआ जिला है।
इसके बावजूद—
- ग्रामीण अध्यक्ष वर्धन यादव के काफिले में सिर्फ तीन बसों की खबर सामने आई।
- शहरी अध्यक्ष पंकज डावर,
पूर्व विधानसभा प्रत्याशी मोहित ग्रोवर,
मेयर प्रत्याशी सीमा पाहुजा,
महिला कांग्रेस अध्यक्ष पूजा शर्मा,
प्रदेश महिला कांग्रेस सचिव सीमा हुड्डा,
एससी सैल अध्यक्ष राजकुमार
—सब मिलकर भी 200 कार्यकर्ता तक नहीं जुटा सके।
काफिले में 25–30 गाड़ियां जरूर दिखीं, लेकिन
रैली स्थल पर वास्तविक संख्या आज भी रहस्य बनी हुई है।
कुछ कार्यकर्ताओं ने बताया कि—
“हमें सिर्फ फोटो खिंचवाने के लिए कमान सराय बुलाया गया था। बस का कोई इंतज़ाम नहीं था। फोटो के बाद ज़्यादातर लोग लौट आए।”
बस नहीं, व्यवस्था नहीं, नेतृत्व नहीं
कमान सराय से एक भी बस रैली के लिए रवाना नहीं हुई।
यानी—
- न परिवहन व्यवस्था,
- न स्पष्ट नेतृत्व,
- न संगठनात्मक अनुशासन।
पूरी गुरुग्राम जिला कांग्रेस तीतर-बितर नजर आई।
अब कांग्रेस हाईकमान से सीधे सवाल
इन हालातों में सबसे बड़ा सवाल यही है—
- जब समय युद्ध स्तर का था, तब दोनों जिला अध्यक्षों ने
- कार्यकर्ताओं को फोन क्यों नहीं किए?
- सामूहिक बैठकें क्यों नहीं बुलाईं?
- प्रेस कॉन्फ्रेंस और विज्ञप्तियां क्यों नहीं जारी कीं?
- अखबारों में विज्ञापन क्यों नहीं दिए?
क्या यह सब किसी बड़े नेता के इशारे पर किया गया? या फिर यह केवल नेतृत्व की नाकामी है?
हाईकमान को लेना होगा फैसला
अगर गुरुग्राम के जिला अध्यक्ष कांग्रेस को एकजुट करने में असफल हैं, तो कांग्रेस हाईकमान को गंभीरता से विचार करना होगा कि—
क्या ऐसे पदाधिकारियों को पद पर बनाए रखना उचित है, या फिर किसी ऐसे नेता/कार्यकर्ता को ज़िम्मेदारी दी जाए,
जो सच में संगठन को जोड़ सके?
राज बब्बर की मौजूदगी भी बनी चर्चा का विषय
अंत में एक और सवाल—
गुरुग्राम से कांग्रेस के सांसद उम्मीदवार राज बब्बर इस रैली में अपने कितने समर्थकों को लेकर पहुंचे?
यह भी आज गुरुग्राम के कार्यकर्ताओं और आम जनता के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है।








