शिक्षकों का राष्ट्र-निर्माता से लेकर बहु-विभागीय कर्मचारी बनने और अब आवारा कुत्तों की निगरानी, गिनती व पहचान तक ………

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किशन सनमुखदास भावनानी

गोंदिया – वैश्विक स्तरपर भारत में शिक्षा को सदैव राष्ट्र-निर्माण का आधार माना गया है,और शिक्षक इस आधारशिला के प्रमुख स्तंभ हैं। किंतु आज स्थिति यह है कि शिक्षक अपने वास्तविक कार्य बच्चों को शिक्षित करने से अधिक समय गैर-शैक्षणिक कार्यों में व्यतीत कर रहे हैं। हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पुंछ और कुपवाड़ा जिलों में जारी वह विचित्र प्रशासनिक निर्देश, जिसमें शिक्षकों को आवारा कुत्तों की पहचान, गिनती, रिपोर्टिंग और ‘कुत्तों से सावधान रहें’ बोर्ड लगाने का कार्य सौंपा गया, इस समस्या का सबसे ताज़ा और चिंताजनक उदाहरण है। यह घटना न केवल शिक्षकों के पेशेवर सम्मान पर प्रश्नचिह्न है, बल्कि भारत की शिक्षा व्यवस्था और प्रशासनिक प्राथमिकताओं की उलझन को भी उजागर करती है।

शिक्षकों पर बढ़ता गैर-शैक्षणिक बोझ: कुत्तों की निगरानी तक सिमटती शिक्षा व्यवस्था

भारतीय शिक्षा तंत्र में लंबे समय से यह प्रवृत्ति देखी जाती है कि शिक्षकों से पढ़ाई के अतिरिक्त अनेक प्रशासनिक और गैर-शैक्षणिक कार्य करवाए जाते हैं—जनगणना, चुनाव ड्यूटी, स्वास्थ्य विभाग की गतिविधियाँ, विभिन्न सर्वेक्षण, खाद्यान्न वितरण रिकॉर्ड, पंचायत से जुड़े कार्य, और अब पशु-निगरानी भी इसमें शामिल हो गई है। ऐसे कार्यों ने शिक्षक समुदाय के वास्तविक उद्देश्य को हाशिए पर धकेल दिया है।गोंदिया, महाराष्ट्र के एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी के अनुसार, यह असंतुलन न केवल शिक्षकों की गरिमा को आघात पहुंचाता है, बल्कि बच्चों की सीखने की गुणवत्ता पर भी गहरा असर डालता है। शिक्षक का काम बच्चों का भविष्य गढ़ना है, न कि आवारा कुत्तों की गिनती करना।

आदेश की पृष्ठभूमि: जब शिक्षक कुत्तों की गिनती करने लगे

जम्मू-कश्मीर के पुंछ और कुपवाड़ा जिलों में शिक्षकों के लिए जारी आदेश में कहा गया कि वे स्कूल परिसरों और उसके आसपास दिखने वाले आवारा कुत्तों की पहचान करें, उनकी गतिविधियों का रिकॉर्ड रखें और प्रतिवेदन जिला शिक्षा अधिकारी को भेजें।
इस आदेश में हर विद्यालय को एक नोडल अधिकारी नियुक्त करने तक का निर्देश शामिल था—जिसे देखकर शिक्षक संगठनों ने कड़ा विरोध जताया।

पहले से ही मिड-डे मील मॉनिटिरिंग, स्कूल प्रबंधन, आरटीई अनुपालन, विभागीय रिपोर्टिंग और अविरत निरीक्षणों के बोझ से दबे शिक्षकों पर कुत्तों की निगरानी का अतिरिक्त भार शिक्षा की गुणवत्ता को गंभीर रूप से प्रभावित करता है।

क्या आदेश जारी करने का तर्क उचित था? प्रशासन का दावा बनाम वास्तविकता

प्रशासन का कहना है कि स्कूलों में आवारा कुत्तों द्वारा बच्चों पर हमले की घटनाएँ बढ़ी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी आवारा कुत्तों की जनसंख्या नियंत्रण और पशु जन्म नियंत्रण (ABC) कार्यक्रम लागू करने का निर्देश दिया था।

लेकिन अदालत ने कहीं भी शिक्षकों को कुत्तों की गिनती का उत्तरदायित्व देने की बात नहीं कही। यह स्पष्ट रूप से प्रशासनिक जिम्मेदारी को गलत दिशा में मोड़ने का मामला है।

नगर निकाय, पशुपालन विभाग और नगरपालिका टीमें इस कार्य के लिए नामित संस्थाएँ हैं।
शिक्षकों को यह कार्य सौंपना:

  • उनके प्रशिक्षण से असंबद्ध है,
  • जोखिमपूर्ण है,
  • और शिक्षक की पेशेवर भूमिका के खिलाफ है।
कुत्तों से सावधान रहें बोर्ड: समाधान या प्रतीकात्मकता?

हर स्कूल के बाहर चेतावनी बोर्ड लगाने का आदेश विशेषज्ञों द्वारा अव्यावहारिक बताया गया।

  • यह बच्चों में भय का वातावरण बनाता है,
  • समस्या का वास्तविक समाधान नहीं,
  • केवल प्रतीकात्मक जिम्मेदारी-निभाने का तरीका है।
शिक्षकों की प्रतिक्रिया: “हम शिक्षक हैं, पशु निरीक्षक नहीं”

शिक्षक संगठनों ने इस आदेश को अपमानजनक बताया।
प्रमुख प्रतिक्रियाएँ:

  • “हमें हंसी का पात्र बनाया जा रहा है।”
  • “यह हमारी पेशेवर गरिमा पर हमला है।”
  • “हम बच्चों को पढ़ाने आए हैं, कुत्ते गिनने नहीं।”

फेडरेशन और यूनियनों ने कहा कि शिक्षक पहले से ही अनेक गैर-शैक्षणिक ड्यूटी से दबे हुए हैं, और यह आदेश शिक्षा प्रणाली के प्रति प्रशासन के असंवेदनशील रवैये को दर्शाता है।

गैर-शैक्षणिक कार्यों का सीखने की गुणवत्ता पर दुष्प्रभाव

अध्ययनों से सिद्ध है कि:

  • जब शिक्षक गैर-शैक्षणिक कार्यों में व्यस्त होते हैं, तो शिक्षण समय 20–30% तक घट जाता है।
  • प्राथमिक शिक्षा सबसे अधिक प्रभावित होती है।
  • छात्रों का प्रदर्शन घटता है।
  • शिक्षक तनावग्रस्त होते हैं, जिससे शिक्षा का वातावरण प्रभावित होता है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 स्पष्ट रूप से कहती है कि शिक्षकों को गैर-शैक्षणिक कार्यों से मुक्त किया जाए, लेकिन ज़मीनी हकीकत बिल्कुल उलट है।

अंतरराष्ट्रीय तुलना: क्या अन्य देशों में ऐसा होता है?

विश्व के विकसित और प्रगतिशील शिक्षा तंत्रों में:

  • फ़िनलैंड
  • जापान
  • सिंगापुर
  • दक्षिण कोरिया
  • फ्रांस
  • जर्मनी
  • यूके
  • यूएस

किसी भी देश में शिक्षकों को ऐसे प्रशासनिक कार्य नहीं सौंपे जाते।
भारत में शिक्षक को ‘ऑल-राउंड एडमिनिस्ट्रेटिव वर्कर’ के रूप में देखा जाने लगा है—चुनाव, जनगणना, स्वास्थ्य सर्वे, कोविड ड्यूटी, मिड-डे मील रिकॉर्ड, और अब आवारा कुत्तों की गिनती।

यह स्थिति दर्शाती है कि भारत में शिक्षण पेशे की प्रतिष्ठा के प्रति गंभीरता की कमी है।

शिक्षक प्रतिष्ठा और मानसिक स्वास्थ्य पर असर

लगातार गैर-शैक्षणिक कार्य:

  • शिक्षकों का आत्मविश्वास घटाते हैं,
  • पेशेवर पहचान में भ्रम पैदा करते हैं,
  • तनाव बढ़ाते हैं,
  • और समाज में शिक्षक के प्रति सम्मान को धीरे-धीरे कम करते हैं।

बच्चों के मन में भी शिक्षक की छवि कमजोर होती है, जिससे शिक्षा के प्रति उनका दृष्टिकोण प्रभावित होता है।

क्या प्रशासन आसान रास्ता चुन रहा है?

आवारा कुत्तों की समस्या का वैज्ञानिक समाधान यह होना चाहिए:

  • पशु जन्म नियंत्रण कार्यक्रम
  • वैक्सीनेशन टीम
  • पकड़ने और पुनर्वास की विशेषज्ञ इकाइयाँ
  • नगरपालिका की जिम्मेदारी
  • पर्याप्त सुरक्षा गार्ड
  • स्कूलों की फेंसिंग और सुरक्षा अवसंरचना

लेकिन सबसे आसान विकल्प शिक्षक को जिम्मेदारी दे देना माना जाता है—क्योंकि वे उपलब्ध हैं, सरकारी कर्मचारी हैं, और विरोध करने पर कार्रवाई की तलवार उनकी गर्दन पर लटकती है।

यह दृष्टिकोण शिक्षा तंत्र के प्रति गंभीर उदासीनता को दर्शाता है।

शिक्षा के अधिकार बनाम सुरक्षा अधिकार: संतुलन की आवश्यकता

बच्चों का अधिकार है:

  • सुरक्षित रहना
  • गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा प्राप्त करना

शिक्षक का अधिकार है:

  • सम्मान
  • पेशेवर गरिमा

प्रशासन का कर्तव्य है:

  • दूरदर्शी नीति
  • सही विभाग को उचित दायित्व

समस्या का समाधान किसी एक पक्ष पर बोझ डालकर नहीं होगा।

आवश्यक नीति सुधार: संभावित समाधान
  1. शिक्षकों को गैर-शैक्षणिक कार्यों से मुक्त किया जाए
  2. जिला स्तर पर स्कूल सुरक्षा प्रकोष्ठ बनाया जाए
  3. ABC (Animal Birth Control) के लिए विशेष टीमें
  4. स्कूलों की सुदृढ़ बाड़बंदी व सुरक्षा स्टाफ
  5. नगरपालिका को उत्तरदायी बनाना
  6. शिक्षकों के सम्मान और भूमिका की रक्षा करना

शिक्षा तभी मजबूत होगी जब शिक्षक सम्मानित होंगे।

निष्कर्ष: शिक्षा तंत्र की प्राथमिकताएँ पुनर्परिभाषित करने का समय

जम्मू-कश्मीर में हुआ आदेश सिर्फ एक प्रशासनिक गलती नहीं, बल्कि भारतीय शिक्षा व्यवस्था में गहराई तक फैली उन समस्याओं का संकेत है जिनमें शिक्षक राष्ट्र-निर्माता से हटकर ‘बहु-विभागीय कर्मचारी’ बनते जा रहे हैं।

आवश्यक है कि:

  • शिक्षक अपने वास्तविक कार्य-शिक्षण-पर केंद्रित रह सकें
  • प्रशासन विशेषज्ञ विभागों से समस्याओं का समाधान करे
  • बच्चों की सुरक्षा वैज्ञानिक तरीके से सुनिश्चित की जाए
  • शिक्षक को प्रशासनिक “फिलर” की तरह इस्तेमाल करना बंद किया जाए

शिक्षक राष्ट्र का भविष्य गढ़ने वाले सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ हैं।
उनकी ऊर्जा, समय और सम्मान शिक्षा को समर्पित होना चाहिए—किसी भी प्रकार के अनुपयुक्त प्रशासनिक बोझ को उठाने में नहीं।

संकलनकर्ता, लेखक, स्तंभकार, अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक, कवि,एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया, महाराष्ट्र

Bharat Sarathi
Author: Bharat Sarathi

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