रिटायरमेंट आयु वृद्धि,युवाओं के लिए चिंता का विषय है, सरकार का संभावित दावा,निर्णय संतुलित तरीके से लागू किया जाएगा,दोनों वर्गों के हित सुरक्षित रहें।
भारत अनुभवी व युवा मानव संसाधन के संतुलन से वैश्विक स्तरपर कार्यकुशलता का एक संभावित नया मॉडल भी प्रस्तुत कर सकता है
-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी

गोंदिया-भारत सरकार द्वारा कर्मचारियों की रिटायरमेंट आयु 60 से बढ़ाकर 62 वर्ष करने पर गंभीरता से विचार किए जाने की हालिया जानकारी ने पूरे देश में एक व्यापक बहस को जन्म दिया है। यह चर्चा केवल सरकारी ढांचे तक सीमित नहीं है, बल्कि भारत के विशाल श्रम बाज़ार, आर्थिक योजनाओं, पेंशन प्रणाली, युवाओं की रोजगार संभावनाओं और प्रशासनिक निरंतरता के प्रश्नों से गहराई से जुड़ी हुई है। विश्व के कई देशों में बढ़ती जीवन प्रत्याशा, वृद्ध होती जनसंख्या और बढ़ते सामाजिक- सुरक्षा व्यय को देखते हुए रिटायरमेंट आयु बढ़ाने की नीति अपनाई गई है। ऐसे में भारत का यह संभावित कदम एक परिवर्तनशील सामाजिक-आर्थिक ढांचे के संकेत के रूप में भी देखा जा रहा है।मैं, एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया (महाराष्ट्र), यह मानता हूँ कि भारत सरकार द्वारा रिटायरमेंट आयु 60 से बढ़ाकर 62 वर्ष करने का विचार केवल वित्तीय गणना का परिणाम नहीं है, बल्कि इसके पीछे कई व्यापक, दीर्घकालिक और राष्ट्रीय दृष्टि से महत्त्वपूर्ण कारण मौजूद हैं। पिछले कुछ वर्षों में वरिष्ठ नागरिकों की स्वास्थ्य-सक्षम आयु बढ़ी है, अनुभवाधारित क्षेत्रों में 60 वर्ष से अधिक आयु के विशेषज्ञों का प्रदर्शन बेहतर रहा है, और अनुभवी मानव संसाधन की महत्ता कई विभागों में पहले से अधिक बढ़ी है।
सरकार का संभावित प्रस्ताव: 60 से 62 वर्ष-एक नीतिगत परिवर्तन

सरकार के संकेतों के अनुसार, रिटायरमेंट आयु 60 से 62 वर्ष तक बढ़ाए जाने की संभावना मजबूत मानी जा रही है। यह परिवर्तन केंद्रीय एवं राज्य कर्मचारियों, सार्वजनिक उपक्रमों और कई अर्ध-सरकारी संस्थाओं पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालेगा। सरकार के इस निर्णय के पीछे मुख्य तर्क निम्नलिखित हो सकते हैं—
- अनुभवी कर्मचारियों को बनाए रखना- प्रशासन, इंजीनियरिंग, स्वास्थ्य, न्याय और तकनीक जैसे क्षेत्रों में अनुभव कार्यकुशलता से सीधे जुड़ा है। वरिष्ठ कर्मचारियों का रहना नीतिगत निरंतरता को मजबूत करता है।
- पेंशन भार कम करना-दो अतिरिक्त वर्षों तक सेवा होने से सरकार पर तत्काल पेंशन-व्यय का दबाव टलेगा।
- कर्मचारियों के वित्तीय जीवन में स्थिरता- महंगाई, स्वास्थ्य-खर्च और लंबी आयु को देखते हुए कर्मचारी लंबे समय तक आर्थिक सुरक्षा पा सकेंगे।
- पोस्ट-रिटायरमेंट तनाव में कमी-अधिक आयु तक नौकरी से परिवार की वित्तीय मजबूती और रिटायरमेंट के बाद स्थिर जीवन का आधार मिलता है।
कर्मचारियों की उम्मीदें: दो अतिरिक्त वर्षों के प्रमुख लाभ
भारत में 60 वर्ष की आयु के बाद भी क्षमता, अनुभव और कार्यकुशलता बरकरार रहती है। ऐसे में कर्मचारियों के लिए यह निर्णय कई स्तरों पर लाभ प्रदान कर सकता है-
- अतिरिक्त वेतन और बचत में वृद्धि
- पेंशन, ग्रेच्युटी और कम्यूटेशन में बढ़ोतरी
- ईपीएफ (PF) कॉर्पस में वृद्धि
- स्वास्थ्य सुविधाओं का दो वर्ष अतिरिक्त लाभ
- 2025–2026 में रिटायर होने वाले कर्मचारियों को तत्काल राहत
सरकारी दृष्टिकोण-दक्षता और अनुभव को प्राथमिकता
सरकार का तर्क है कि अनुभवी कर्मचारियों के पास संस्थागत ज्ञान, प्रशासनिक परिपक्वता और कार्यस्थल की समझ अधिक होती है। कई क्षेत्रों में इसी आयु में विशेषज्ञ सर्वोत्तम प्रदर्शन देते हैं। वरिष्ठ कर्मचारियों का अचानक रिटायर होना संस्थागत असंतुलन पैदा कर सकता है। इसलिए यह निर्णय रणनीतिक रूप से आवश्यक माना जा रहा है।
युवाओं की चिंताएँ: रोजगार अवसरों पर संभावित प्रभाव
युवाओं के लिए यह मुद्दा सबसे बड़ी चिंता का विषय है। उनकी मुख्य चिंताएँ-
- नौकरी में देरी-पद रिक्त होने में अधिक समय लगेगा।
- भर्ती चक्र धीमा होगा-रिटायरमेंट पर आधारित रिक्तियों की संख्या कम होगी।
- करियर की शुरुआत पीछे जाएगी-प्रतियोगी परीक्षाओं में उम्र-सीमा दबाव बढ़ेगा।
- निजी क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा और कठिन होगी- सरकारी नौकरियों की कमी से निजी क्षेत्र में भी बोझ बढ़ेगा।
सरकार की रणनीति: संतुलन बनाकर नीति लागू करने की तैयारी
सरकार का कहना है कि यह नीति अचानक लागू नहीं होगी। संभावित विकल्प-
- विभागवार रिटायरमेंट आयु वृद्धि
- युवाओं के लिए विशेष भर्ती मिशन
- नए पद सृजित करना
- भर्ती प्रक्रिया पर प्रभाव न पड़े, इसके लिए दिशानिर्देश
सरकार का मुख्य उद्देश्य है युवाओं और वरिष्ठ दोनों वर्गों का संतुलन बनाए रखना।
आर्थिक, सामाजिक और प्रशासनिक प्रभाव-विस्तृत विश्लेषण
- आर्थिक प्रभाव
- पेंशन-व्यय में कमी
- वरिष्ठ कर्मचारियों के अनुभव से स्थिरता
- सामाजिक प्रभाव
- परिवारों की सुरक्षा बढ़ेगी
- वृद्धजन अधिक सक्रिय रहेंगे
- प्रशासनिक प्रभाव
- युवा और अनुभवी कर्मचारियों का संतुलन
- संस्थागत ज्ञान संरक्षित रहेगा
संतुलन ही समाधान-आगे की राह
रिटायरमेंट आयु बढ़ाना दो पीढ़ियों — वरिष्ठ और युवा — दोनों को प्रभावित करता है। इसलिए आवश्यक है कि—
- सरकार स्पष्ट और पारदर्शी दिशा-निर्देश जारी करे
- युवाओं के लिए समानांतर रोजगार सृजन योजनाएँ लाए
- भर्ती पदों की संख्या बढ़ाई जाए
- वरिष्ठ कर्मचारियों का मूल्यांकन क्षमता आधारित हो
- तकनीक, स्टार्टअप और डिजिटल क्षेत्रों में युवाओं के नए अवसर बनाए जाएँ
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे क़ि 60 से 62 वर्ष रिटायरमेंट आयु वृद्धि का संभावित प्रस्ताव भारत की आर्थिक, प्रशासनिक और सामाजिक संरचना को नया स्वरूप दे सकता है। कर्मचारियों के लिए यह अत्यंत लाभदायक है, वहीं युवाओं के लिए यह चिंता का विषय भी है। किंतु यदि यह नीति संतुलन, पारदर्शिता और सुचिंतित योजना के साथ लागू की जाती है, तो भारत अनुभवी और युवा मानव संसाधन के संतुलित उपयोग का एक वैश्विक मॉडल प्रस्तुत कर सकता है।
-संकलनकर्ता, लेखक, कर विशेषज्ञ, स्तंभकार, साहित्यकार, अंतरराष्ट्रीय लेखक,चिंतक कवि सीए (ATC), एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया, महाराष्ट्र









