भारत क़ी अनुमानित जीडीपी 7.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर विकास की तरफ इशारा कर रहीहैं, तो आईएमफ ने डेटा क़ो ग्रेड”सी” रेटिंग क्यों दी?
आईएमफ जैसी संस्था किसी देश के राष्ट्रीय खाते आँकड़ों की गुणवत्ता को कमज़ोर वर्ग में रखे,तो वह वैश्विक नीति- निर्माताओं और निवेशकों की दृष्टि में चिंता का विषय बन जाता है
– एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी

गोंदिया – वैश्विक स्तरपर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) द्वारा भारत के नेशनल अकाउंट्स स्टैटिस्टिक्स को वर्ष 2025 के लिए “सी” ग्रेड दिए जाने ने देशभर में व्यापक आर्थिक और राजनीतिक बहस को जन्म दिया है। यह निर्णय उस समय आया है जब भारत की अनुमानित जीडीपी 7.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की ओर बढ़ते हुए वैश्विक मंच पर अपनी आर्थिक शक्ति का विस्तार कर रही है। ऐसे में स्वाभाविक प्रश्न उठता है-जब भारतीय अर्थव्यवस्था तेज़ वृद्धि दर्शा रही है, तब आईएमएफ ने डेटा की गुणवत्ता को “सी” श्रेणी में क्यों रखा? यह केवल तकनीकी समीक्षा नहीं, बल्कि भारत की वैश्विक आर्थिक विश्वसनीयता से जुड़ा गंभीर विषय है। जैसा कि मैं, एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया (महाराष्ट्र) लंबे समय से आर्थिक-नीति विश्लेषण से जुड़ा हूँ, मेरा मानना है कि इस प्रकार की ग्रेडिंग वैश्विक निवेशकों और नीति-निर्माताओं की दृष्टि में एक महत्वपूर्ण संकेतक बन जाती है और इसलिए इसे गंभीरता से समझना आवश्यक है।
आईएमएफ ने भारत को ‘सी’ ग्रेड क्यों दिया?-पद्धति,चुनौतियाँ और तकनीकी कमजोरियाँ
आईएमएफ की ग्रेडिंग प्रणाली में “सी” वह श्रेणी है जिसमें डेटा तो उपलब्ध होता है, लेकिन उसकी विश्वसनीयता, व्यापकता, पारदर्शिता और आधुनिकता पर प्रश्न उठते हैं। भारत को यह ग्रेड चार मुख्य कारणों से मिला:
(1) पुराना आधार वर्ष-2011-12 का फ्रेमवर्क अब अप्रासंगिक
भारत अभी भी जीडीपी गणना के लिए 2011-12 को आधार वर्ष मानता है। यह वह समय था जब डिजिटल अर्थव्यवस्था, स्टार्टअप इकोसिस्टम, ई-कॉमर्स, गिग-इकोनॉमी और प्लेटफ़ॉर्म-आधारित सेवाओं का विस्तार आज की तुलना में बहुत कम था।
आईएमएफ का तर्क है कि पुराने फ्रेमवर्क के कारण वास्तविक आर्थिक गतिविधियाँ आँकड़ों में पूर्ण रूप से प्रतिबिंबित नहीं हो पातीं।
(2) डेफ़्लेटर और मूल्य सूचकांकों में कमी
अधिकांश विकसित देश प्रोड्यूसर प्राइस इंडेक्स (PPI) आधारित विस्तृत मूल्य तंत्र अपनाते हैं, जबकि भारत मुख्यतः होलसेल प्राइस इंडेक्स (WPI) पर निर्भर है। इससे नॉमिनल से रियल जीडीपी गणना में असमानता उत्पन्न हो सकती है।
(3) अनौपचारिक अर्थव्यवस्था की वास्तविक हिस्सेदारी का अभाव
भारत की अर्थव्यवस्था में अनौपचारिक क्षेत्र का योगदान बहुत बड़ा है। आँकड़ा संग्रहण की पारंपरिक पद्धतियाँ इस क्षेत्र की सही तस्वीर नहीं दिखा पातीं, जिससे उत्पादन और व्यय आधारित जीडीपी में अंतर दिखाई देता है।
(4) तिमाही आँकड़ों की गुणवत्ता और आधुनिक सांख्यिकीय तकनीकों की कमी
सीज़नल एडजस्टमेंट, हाई-फ्रीक्वेंसी डेटा हार्मोनाइज़ेशन और इंस्टिट्यूशनल सेक्टर ब्रेकडाउन जैसी प्रक्रियाएँ अभी पर्याप्त रूप से नहीं अपनाई गई हैं।
इन सभी कारणों से आईएमएफ का निष्कर्ष यह रहा कि भारत का डेटा उपलब्ध तो है, पर उसकी आधुनिकता और तकनीकी गुणवत्ता अभी मजबूत नहीं है-जिसके परिणामस्वरूप “सी” ग्रेड दिया गया।
विपक्ष का तंज-राजनीतिक प्रतिध्वनि और उठते सवाल
आईएमएफ की रिपोर्ट सामने आते ही विपक्ष ने सरकार पर हमला बोल दिया।
कांग्रेस ने आरोप लगाते हुए कहा कि जब डेटा की गुणवत्ता पर सवाल हैं तो 8.2% जैसी उच्च विकास दर कैसे विश्वसनीय मानी जाए? वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने टिप्पणी की कि यह “काग़ज़ी विकास” है, जबकि वास्तविकता में बेरोज़गारी, ग्रामीण आय और उपभोग के संकेत मजबूत नहीं दिख रहे।
विपक्ष का दूसरा बड़ा तर्क था कि:
- यह ग्रेडिंग भारत की अंतरराष्ट्रीय आर्थिक विश्वसनीयता को प्रभावित कर सकती है
- इससे एफडीआई, अंतरराष्ट्रीय फंडिंग और वैश्विक बाज़ारों में निवेशक भरोसा कमजोर पड़ सकता है
- सरकार “डेटा पारदर्शिता” की जगह “डेटा सौंदर्यीकरण” पर अधिक ध्यान दे रही है
विपक्ष ने इस विवाद को संसद और मीडिया में बड़े राजनीतिक मुद्दे के रूप में उछाल दिया।
संसद में सरकार का जवाब-वित्त मंत्री का स्पष्टीकरण
3 दिसंबर 2025 को संसद में वित्त मंत्री ने इस पूरे विवाद पर सरकार की नीति स्पष्ट की। उनका मुख्य तर्क था:
- आईएमएफ ने भारत की जीडीपी वृद्धि दर पर कोई सवाल नहीं उठाया है
- “सी” ग्रेड केवल पद्धति और तकनीकी संरचना से संबंधित है
- सरकार 2022–23 को नया आधार वर्ष बनाने की प्रक्रिया पहले ही शुरू कर चुकी है
- नया आधार वर्ष फरवरी 2026 से लागू होने की संभावना है
- आईएमएफ ने भारत की आर्थिक मजबूती, डिजिटल अर्थव्यवस्था, बैंकिंग प्रणाली और वित्तीय स्थिरता की विशेष प्रशंसा की है
- विपक्ष “तकनीकी समीक्षा” को “आर्थिक अविश्वसनीयता” के रूप में प्रस्तुत कर रहा है, जो दुष्प्रचार है
सरकार का यह जवाब स्पष्ट करता है कि मुद्दा विकास दर की विश्वसनीयता का नहीं, बल्कि सांख्यिकीय तंत्र को आधुनिक बनाने का है।
राष्ट्रीय और वैश्विक महत्व-यह विवाद देश को क्या सिखाता है?
यह घटना एक बड़े प्रश्न की ओर संकेत करती है:
क्या आर्थिक विकास केवल आँकड़ों से मापा जाता है, या आँकड़ों की गुणवत्ता ही विकास की विश्वसनीयता की नींव है?
भारत आज वैश्विक स्तर पर पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। ऐसे में आवश्यक है कि:
- डेटा आधुनिक हो
- पद्धतियाँ पारदर्शी हों
- सांख्यिकीय ढाँचा समयानुकूल हो
- अनौपचारिक क्षेत्र का वास्तविक आकलन हो
अंतरराष्ट्रीय निवेशक, मल्टी-नेशनल कंपनियाँ और रेटिंग एजेंसियाँ डेटा की विश्वसनीयता पर निर्भर करती हैं।
कमज़ोर सांख्यिकी किसी भी बड़ी अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का विषय बन सकती है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे क़ि,आँकड़ों की गुणवत्ता ही आर्थिक विश्वसनीयता की नींवआईएमएफ की “सी” ग्रेडिंग भारत की आर्थिक वृद्धि पर प्रश्न नहीं उठाती, बल्कि सांख्यिकीय प्रणाली के आधुनिकीकरण की आवश्यकता को दर्शाती है।विपक्ष अपनी राजनीतिक भूमिका निभा रहा है, जबकि सरकार ने आधार वर्ष अपडेट, पद्धतिगत सुधार और डेटा गुणवत्ता बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।यह विवाद हमें याद दिलाता है कि:
- मजबूत अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत और पारदर्शी डेटा होती है
- आधुनिक अर्थव्यवस्थाएँ डेटा-आधारित नीति निर्धारण पर निर्भर हैं
- भारत का आगामी सांख्यिकीय सुधार इसे वैश्विक स्तर पर और अधिक विश्वसनीय बनाएगा
यदि नवीन आधार वर्ष, बेहतर डेफ़्लेटर और उन्नत सांख्यिकीय तकनीकों को अपनाया जाता है, तो भविष्य में भारत न केवल बेहतर ग्रेड प्राप्त करेगा, बल्कि वैश्विक आर्थिक नीति-निर्माताओं और निवेशकों के लिए और अधिक भरोसेमंद देश बनकर उभरेगा।
-संकलनकर्ता, लेखक, कर विशेषज्ञ, स्तंभकार, साहित्यकार, अंतरराष्ट्रीय लेखक, चिंतक, कवि, संगीत साधक,सीए(ATC) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया, महाराष्ट्र |









