चंडीगढ़, 26 मार्च: हाल ही में हरियाणा के अम्बाला और सोनीपत नगर निगमों में मेयर पद के लिए हुए उपचुनाव कानूनी वैधता के सवालों के घेरे में आ गए हैं। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार ने इन उपचुनावों को हरियाणा नगर निगम अधिनियम, 1994 के प्रावधानों के खिलाफ बताते हुए कानूनी आपत्तियां दर्ज कराई हैं।

20 मार्च को हरियाणा राज्य निर्वाचन आयोग ने शहरी स्थानीय निकाय विभाग के निदेशक को पत्र लिखकर इन आपत्तियों पर आवश्यक कार्रवाई करने को कहा है। आयोग ने यह भी निर्देश दिया कि इस मामले में उठाए गए कदमों की जानकारी हेमंत कुमार और राज्य निर्वाचन आयोग को दी जाए।

कानूनी अड़चनें और विवाद

हेमंत कुमार के अनुसार, हरियाणा नगर निगम अधिनियम 1994 की धारा 13(1) में 2020 में संशोधन किया गया था, जिसमें स्पष्ट किया गया कि यह प्रावधान रिक्त मेयर पद पर लागू नहीं होगा। इसका अर्थ यह है कि अगर किसी कारणवश नगर निगम का मेयर पद रिक्त होता है, तो उसे उपचुनाव द्वारा भरा नहीं जा सकता। बावजूद इसके, हरियाणा निर्वाचन आयोग ने अम्बाला और सोनीपत नगर निगमों में मेयर पद के उपचुनाव कराए।

इसके अलावा, अधिनियम की धारा 9(5) के तहत, यदि किसी नगर निगम का मेयर या सदस्य पद रिक्त होने के बाद उसका कार्यकाल 6 महीने या अधिक बचा हो, तो उपचुनाव 2 महीने के भीतर कराना अनिवार्य है।

अम्बाला और सोनीपत नगर निगमों के मेयर पद 8 अक्टूबर 2024 को रिक्त हुए थे, जब तत्कालीन मेयर शक्ति रानी शर्मा (अम्बाला) और निखिल मदान (सोनीपत) हरियाणा विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए। हरियाणा निर्वाचन आयोग ने 2 दिसंबर 2024 को उन्हें आधिकारिक रूप से मेयर पद से डी-नोटिफाई किया था।

हेमंत कुमार का कहना है कि यदि आयोग को उपचुनाव कराना ही था, तो 8 दिसंबर 2024 तक इसे पूरा कर लेना चाहिए था, लेकिन चुनाव फरवरी-मार्च 2025 में कराए गए। इससे धारा 9(5) का उल्लंघन हुआ है और चुनाव की कानूनी वैधता पर सवाल उठता है।

क्या कहता है राज्य निर्वाचन आयोग?

राज्य निर्वाचन आयोग ने इस मामले में कोई स्पष्ट बयान नहीं दिया है, लेकिन 20 मार्च को शहरी निकाय विभाग को भेजे गए पत्र में कानूनी आपत्तियों पर विचार करने और उचित कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं।

क्या होगा आगे?

हेमंत कुमार का कहना है कि जब तक हरियाणा विधानसभा द्वारा नगर निगम अधिनियम की धारा 9(5) और 13(1) में संशोधन नहीं किया जाता, तब तक इन चुनावों को कानूनी मान्यता नहीं मिल सकती। उन्होंने राज्य सरकार से तत्काल विधानसभा सत्र बुलाकर संशोधन लाने की मांग की है।

यदि संशोधन नहीं किया जाता, तो यह मामला हाईकोर्ट तक पहुंच सकता है, जिससे इन उपचुनावों को रद्द किए जाने की संभावना भी बन सकती है।

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