“बच्चियों के सम्मान से खिलवाड़ किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं, यह भारतीय संस्कृति और नैतिक मूल्यों का खुला अपमान”

हिसार: इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा महिलाओं के प्रति अपराधों को लेकर दिए गए हालिया फैसले ने पूरे देश में गंभीर बहस को जन्म दिया है। यह न केवल न्यायपालिका की निष्पक्षता पर सवाल खड़े करता है, बल्कि समाज में महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों को मजबूती प्रदान करने वाला फैसला साबित हो सकता है। बीजेपी के वरिष्ठ नेता हनुमान वर्मा ने इस फैसले पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि “इस तरह के निर्णय जेहादी मानसिकता के परिचायक हैं और भारतीय संस्कृति का अपमान हैं।”
न्यायपालिका पर सवाल, न्याय की देवी की आंखों पर बंधी पट्टी पर भी संशय!
इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले में कहा गया कि बच्ची के निजी अंग पकड़ना और पायजामा का नाड़ा तोड़ना दुष्कर्म की कोशिश के दायरे में नहीं आता। इस फैसले पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए हनुमान वर्मा ने कहा, “यदि यह अपराध नहीं है, तो फिर महिलाओं की गरिमा और सुरक्षा का क्या मतलब रह जाता है? यह फैसला समाज में महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों को और अधिक बढ़ावा देने वाला है।”
उन्होंने सवाल उठाया कि “क्या किसी बच्ची के निजी अंगों को छूना, उसका पायजामा फाड़ना और उसे घसीटना मानसिक प्रताड़ना नहीं है? क्या एक मासूम बच्ची पर इस प्रकार की बर्बरता कोई छोटी-मोटी हरकत है?” वर्मा ने इस फैसले को भारतीय नैतिकता और मर्यादा का घोर अपमान करार देते हुए कहा कि “इस तरह के निर्णय समाज में अपराधियों को और अधिक बढ़ावा देंगे तथा महिलाओं के प्रति हिंसा को वैधता प्रदान करने जैसा होगा।”
“बेटियों को देवी मानने वाले देश में ऐसा फैसला शर्मनाक”
हनुमान वर्मा ने कहा कि भारत वह देश है जहां बेटियों को देवी का स्वरूप माना जाता है। ऐसे में न्यायपालिका को महिलाओं के प्रति दिए जाने वाले फैसलों में सामाजिक मूल्यों और नैतिकता का विशेष ध्यान रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि “यह फैसला महिला सम्मान के प्रति हमारी जिम्मेदारी को कमजोर करता है और अपराधियों को संरक्षण देने का काम करता है।”
“महिलाओं के प्रति अपराधों को न्योता देते फैसले”
बीजेपी नेता ने यह भी कहा कि “देश में पहले से ही महिलाओं और बच्चियों के प्रति अपराध बढ़ते जा रहे हैं। ऐसे में यदि न्यायालय इस तरह के फैसले देंगे, तो अपराधियों को और अधिक बल मिलेगा।”
उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा, “अगर यह कृत्य दुष्कर्म नहीं है, तो फिर किस श्रेणी में आएगा? क्या समाज में महिलाओं की गरिमा और उनकी सुरक्षा का अब कोई महत्व नहीं बचा?”
“न्यायपालिका को समाज की मर्यादाओं का भी ध्यान रखना होगा”
हनुमान वर्मा ने न्यायपालिका से अपील की कि “ऐसे संवेदनशील मामलों में निर्णय लेते समय भारतीय संस्कृति, नैतिक मूल्यों और सामाजिक मर्यादाओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए।” उन्होंने कहा कि “कुछ फैसले सिर्फ कानूनी दायरे में नहीं, बल्कि समाज की लोक-लाज, मर्यादा और नैतिकता के आधार पर भी लिए जाने चाहिए।”
उन्होंने आगे कहा, “भारत में न्यायपालिका को जनता का अपार विश्वास प्राप्त है, लेकिन जब ऐसे फैसले सामने आते हैं, तो यह विश्वास डगमगाने लगता है। न्यायपालिका को अपनी भूमिका को और अधिक सशक्त और संवेदनशील बनाना होगा, ताकि महिलाओं को उचित न्याय मिल सके और समाज में अपराधियों को कड़ा संदेश दिया जा सके।”
“महिलाओं के सम्मान के लिए सख्त कानून और सही मानसिकता जरूरी”
हनुमान वर्मा ने कहा कि “महिलाओं की गरिमा और सम्मान की रक्षा के लिए सिर्फ कानून पर्याप्त नहीं, बल्कि न्यायपालिका और समाज की मानसिकता में भी बदलाव जरूरी है।” उन्होंने न्यायालय से अपील करते हुए कहा कि “ऐसे फैसलों पर पुनर्विचार किया जाए और महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए न्यायपालिका को सख्त रुख अपनाना होगा।”
निष्कर्ष:
“बच्चियों की गरिमा से कोई समझौता नहीं किया जा सकता।”
“ऐसे फैसले महिलाओं के खिलाफ अपराधों को बढ़ावा देते हैं।”
“न्यायपालिका को सामाजिक और नैतिक मूल्यों का भी सम्मान करना चाहिए।”
“देश की जनता न्यायपालिका से उचित और न्यायपूर्ण फैसलों की अपेक्षा रखती है।”
हनुमान वर्मा ने अंत में कहा कि “महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान के साथ कोई समझौता नहीं होना चाहिए। न्यायपालिका को अपने फैसलों में समाज की संवेदनशीलता और नैतिकता को प्राथमिकता देनी चाहिए, ताकि बेटियां सुरक्षित और सम्मानित महसूस कर सकें।”