भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। हरियाणा सरकार और चुनाव आयोग की ओर से कहा जा रहा है कि जनवरी 2025 में चुनाव की घोषणा हो जाएगी और फरवरी 2025 में सारे प्रदेश में स्थानीय निकाय के चुनाव संपन्न हो जाएंगे।

अब गुरुग्राम की बात करें तो यहां के निवासियों, सभी पार्टियों के नेताओं को यह विश्वास नहीं हो रहा कि फरवरी 2025 में गुरुग्राम नगर निगम के चुनाव हो जाएंगे। इसके पीछे कारण यह बताए जा रहे हैं कि एक तो अभी वोटों की गिनती आने के पश्चात वार्डबंदी दोबारा की जा सकती है और दूसरा पिछड़े वर्ग सीटों पर भी विवाद है। अधिकांश पिछड़े वर्ग के नेताओं का कहना है कि हमारी सीटें आधी दी गई हैं। ऐसी स्थिति में जब तक वार्डबंदी और पिछड़े वर्ग की सीटों का निर्णय नहीं होगा तब तक चुनाव कैसे संभव है?

इन चर्चाओं की बात सत्य मानें या असत्य, यह कोई भी निश्चित नहीं कह पा रहा। हमने कई भाजपा नेताओं से भी बातचीत की तो वे भी आश्वस्त नहीं हैं कि चुनाव फरवरी में होंगे। कुछ के मुंह से जून के आसपास चुनाव होने की बात कही जा रही है।
नेताओं को देखकर अनुमान यही लगाया जा रहा है कि चुनाव फरवरी में नहीं होने वाले, क्योंकि यदि फरवरी में चुनाव होने हैं तो लगभग दो माह का समय बचा है और दो माह पहले मेयर और पार्षदों की तैयारियां जोर पकडऩे लगती हैं लेकिन गुरुग्राम में ऐसा कहीं अभी नजर आ नहीं रहा।

कुछ पार्षद उम्मीदवारों से इस बारे में बात की तो उनका कहना था कि अभी हम इस बारे में विश्वस्त नहीं हैं कि हमारे वार्ड में कौन-कौन से क्षेत्र आएंगे। अत: अभी प्रचार की ओर ध्यान देना अपने समय और धन का अपव्यय ही कहलाएगा।

इसी प्रकार मेयर का चुनाव इस बार जनता ने ही करना है। अत: मेयर पद के प्रत्याशियों में भी अभी कहीं उत्साह नहीं दिखाई दे रहा, जबकि मेयर को तो चुनाव पूरे नगर निगम क्षेत्र में ही लडऩा है। उसके साथ तो ऐसी समस्या नहीं है कि कहां प्रचार करना है, कहां नहीं करना है जो उसके काम नहीं आएगा लेकिन ऐसा कुछ दिखाई दे नहीं रहा। न कहीं यह स्पष्ट हो पा रहा है कि कौन-कौन मेयर प्रत्याशी के लिए प्रयास कर रहे हैं। यह स्थिति भाजपा और कांग्रेस दोनों में ही है। तो ऐसे में स्थितियों को देखकर संभव यही लगता है कि फरवरी में गुरुग्राम में निगम चुनाव नहीं होंगे। कहीं से मीडिया में यह बात भी पढ़ी गई है कि एक नियम ऐसा पास हुआ है कि जिला मुख्यालय पर निगम नहीं नगर परिषद ही रहेगी। सब बातें असमंजस की स्थिति उत्पन्न कर रही हैं।

गुरुग्राम में नगर परिषद के गठन के पश्चात से ही राव इंद्रजीत सिंह अपना वर्चस्व निगम में बनाए रहे हैं परंतु इस बार राव इंद्रजीत सिंह के लिए स्थिति विषम हैं, क्योंकि पिछले 2017 से 2022 के निगम कार्यकाल में गुरुग्राम की स्थिति सुधरी नहीं, अपितु बिगड़ती ही चली गई और जो उनके विश्वस्त सेनानी होते थे, वे अधिकांश उनको छोडक़र जा चुके हैं। वर्तमान में ऐसा दिखाई नहीं दे रहा कि राव इंद्रजीत सिंह के नाम पर कोई अधिक प्रभाव क्षेत्र में रहा है। उनके मेयर या चेयरमैन बनाने के रणनीतिकार राव भोपाल सिंह भी नहीं रहे। और फिर इस बार मेयर जोड़-तोडक़र और पार्षदों को घुमाने ले जाने से तो बनना नहीं है, वह तो वोटों से ही बनना है।

माना कि गुरुग्राम में विधायक उनका है, चुनाव तो वह जीत गए लेकिन भाजपा के भी कुछ व्यक्ति उन्हें नहीं पसंद करते हैं। और फिर विधायक चुनाव तो मोदी और इंद्रजीत के नाम पर जीत लिया। दूसरी ओर बादशाहपुर क्षेत्र से विधायक राव नरबीर बने, जो वर्तमान में हरियाणा सरकार में मंत्री हैं। राव नरबीर के सामने मुकेश शर्मा का नाम बौना लगता है। अत: भाजपा के अनेक लोगों से बात हुई तो उनका कथन यही निकला कि इस बार मेयर जो भी होगा वह राव नरबीर के आशीर्वाद से ही बनेगा।

ये तो भाजपा की बात हुई। कांग्रेस वैसे ही हरियाणा में बिखराव की स्थिति में है और यदि फरवरी में चुनाव होते हैं तो कांग्रेस के संभलने की आशा भी नहीं है लेकिन चुनाव में यदि समय लगा तो संभव है कांग्रेस भी अपना वजन बढ़ा ले।

उपरोक्त स्थितियों से लगता है कि निगम में भाजपा का वर्चस्व होगा और जमीन पर चाहे उम्मीदवार न दिखाई दे रहे हों लेकिन संगठन में अपनी-अपनी गोटियां फिट करने में लगे हैं, जिससे उन्हें टिकट मिल सके। सुनने में तो यहां तक आया है कि गुरुग्राम विधायक कुछ टिकटें अपने परिवार के लिए भी मांग रहे हैं। बहुत कुछ कहना था शेष फिर कभी …………

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