रामपुरा हाउस वटवृक्ष के सामने क्यों नहीं पनप पाए अहीर नेता? 

भ्रष्टाचार को लेकर नरबीर सिंह की अधिकारियों की चेतावनी के क्या है मायने, क्या बीजेपी के पूर्व के 10 साल के शासन में भ्रष्टाचार था? 

अशोक कुमार कौशिक 

हरियाणा में अहीरवाल बेल्ट सरल और साहसी लोगों के लिए जाना जाता है जो प्राचीन काल से अपनी बहादुरी और देशभक्ति के लिए प्रसिद्ध हैं। इसी तरह यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि इस क्षेत्र में राजनीतिक परिवारों का भी अपना समूह है, जिनका उल्लेख राज्य के तीन लाल राजवंशों- पूर्व मुख्यमंत्रियों बंसी लाल, देवी लाल और भजन लाल- से कम नहीं है। अहीरवाल के तीन परिवारों की तीसरी पीढ़ी महेंद्रगढ़, रेवाड़ी और गुरुग्राम जिलों वाले इस क्षेत्र में अपनी वंशवादी विरासत को आगे बढ़ा रही है। 

अहीरवाल के राजनीतिक परिवारों की आपसी वर्चस्व की लड़ाई एक बार फिर से तेज होने के आसार है। 2024 के विधानसभा चुनाव में दो राजनीतिक प्रतिद्वंदी परिवारों की जीत तथा मंत्रिमंडल में कैबिनेट स्तर के मंत्री बनाए जाने के बाद अब यह जंग ओर तेज होने की संभावना बन गई है। राव नरबीर सिंह ने अपने दम पर भाजपा की टिकट हासिल की और बादशाहपुर से जीते भी दर्ज करके अपने वजूद की धमक दिखाई है। बादशाहपुर से चुनाव जीते राव नरबीर सिंह ने का दिवस गुरुग्राम में अधिकारियों की मीटिंग में भ्रष्टाचार को लेकर जो बात कही है उसके राजनीतिक क्षेत्र में कई मायने निकाले जा रहे हैं। कुछ लोगों का यह मानना है कि राव नरबीर सिंह ने यह चेतावनी केवल अधिकारियों को दी है। जबकि कुछ लोगों का यह तर्क है कि राव नरबीर सिंह का इशारा गुरुग्राम के सांसद और केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह की ओर भी है। इस प्रकार का तर्क देने वाले लोगों का कहना है की राव नरवीर सिंह ने राव इंद्रजीत सिंह को खुली चुनौती दे दी है। लेकिन यहां यह सबसे बड़ा सवाल खड़ा होता है भले ही चाहे अधिकारी भ्रष्ट है या राव इंद्रजीत सिंह के चेहते अधिकारियों ने भ्रष्टाचार किया है। पर 10 साल के मनोहर लाल खट्टर तथा नायब सिंह सैनी की भाजपा सरकार की शाख पर भी सवाल खड़ा हो गया है। 

राव तुलाराम वंशज परिवार 

इनमें से एक परिवार का वंश राव तुला राम से जुड़ा है, जो एक सरदार थे जिन्होंने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था। केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह, हरियाणा के दूसरे मुख्यमंत्री राव बीरेंद्र सिंह के बेटे हैं। साथ ही वह पूर्ववर्ती राज्य रेवाड़ी के रामपुरा हाउस के प्रमुख सदस्य भी हैं। गुरुग्राम सांसद के दो भाई भी हैं जिनका नाम राव अजीत सिंह और राव यादवेंद्र सिंह हैं। राव इंद्रजीत सिंह की बेटी आरती राव जहां हरियाणा में बीजेपी की राज्य कार्यकारिणी सदस्य हैं, वही वह इस बार अटेली विधानसभा से बामुश्किल चुनाव जीतकर राज्य मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री बनी है। वहीं अजीत सिंह के बड़े बेटे स्व.राव अर्जुन सिंह कांग्रेस पार्टी से जुड़े हुए थे। उनके छोटे बेटे राव अभीजित सिंह ने भी अपने भाई की जगह राजनीति में उतरने का निर्णय किया था लेकिन वह चुनाव में नहीं उतर पाए। वह अटेली विधानसभा सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे। पर अपनी चचेरी बहन आरती सिंह राव के चुनाव लड़ने के कारण वह मैदान में नहीं उतरे। 

अटेली विधानसभा सीट पर राव इंद्रजीत सिंह की बेटी आरती सिंह राव ने कड़ी मशक्कत के बाद चुनाव जीता। अटेली विधानसभा चुनाव ने रामपुरा हाउस को ठाकुर अतर लाल ने नाको चने चबवा दिया। राव राजा इंद्रजीत सिंह को अपने लोकसभा चुनाव में इतनी मशक्कत नहीं करनी पड़ी जितना जोर अटेली विधानसभा में अपनी बेटी को जिताने में लगाना पड़ा। नायब सिंह सैनी सरकार में आरती सिंह राव को स्वास्थ्य विभाग का कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। 

राव अभय सिंह के बेटे कैप्टन अजय सिंह यादव रेवाड़ी से छह बार विधायक रहे हैं। उनके पिता ने 1952 में रेवाड़ी से राव बीरेंद्र सिंह को हराया था। अजय सिंह के बेटे चिरंजीव राव ने 2019 में अपने पहले चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में रेवाड़ी से जीत हासिल की थी। वह 2024 का चुनाव भाजपा के लक्ष्मण यादव से हार गए।

इस क्षेत्र का तीसरा महत्वपूर्ण परिवार राव मोहर सिंह द्वारा स्थापित बूढ़पुर हाउस है। मोहर सिंह को गुरुग्राम में विभाजन से पहले पहला सहकारी बैंक खोलने का श्रेय दिया जाता है। उनके पुत्र राव महावीर सिंह और राव विजयवीर सिंह विधायक बने। राव महावीर सिंह के बेटे राव नरबीर सिंह तीन बार के विधायक हैं, उन्होंने 2014 में बीजेपी उम्मीदवार के रूप में बादशाहपुर से अपनी जीत दर्ज की थी। 5 साल की राजनीति के बनवास के बाद 2024 में वह बादशाहपुर से फिर चुनाव जीते हैं और नायब सिंह सैनी मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री बने हैं।

अहीरवाल क्षेत्र में तीनों राजवंश लगभग सात दशकों से सक्रिय हैं, लेकिन राव बीरेंद्र सिंह से शुरू हुआ राजवंश सबसे प्रभावशाली है।“राव बीरेंद्र सिंह और अब, राव इंद्रजीत सिंह ने न केवल अपने दम पर चुनाव जीता, भले ही उन्हें किसी भी पार्टी ने मैदान में उतारा हो, बल्कि उनके पास अहीरवाल बेल्ट की अन्य विधानसभा सीटों से अपने समर्थकों को चुनाव जीताने की क्षमता भी है।” 2024 का लोकसभा चुनाव हो या 2024 का विधानसभा चुनाव राव इंद्रजीत सिंह की लोकप्रियता में कमी अवश्य देखने को मिली है।

क्षेत्र में तीन और परिवार कर्नल राम सिंह यादव तथा राव निहाल सिंह के भी रहे जो राजनीति में आगे नहीं चल पाये। तीसरा परिवार राव बंशी सिंह का परिवार है जो कभी राव बीरेंद्र सिंह से जुड़े थे। बंशी सिंह के देहांत के बाद उनके बेटे के नरेंद्र सिंह लगातार तीसरा चुनाव हार कर अपने राजनीतिक वर्चस्व के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। वैसे राव दान सिंह और जगदीश यादव भी अपने वजूद के लिए संघर्ष कर रहे हैं। 

रामपुरा हाउस राजनीति का वट वृक्ष 

राव तुला राम के वंशज रामपुरा हाउस के नाम से लोकप्रिय है। रामपुरा हाउस नामक राजनीतिक वट वृक्ष के नीचे किसी अन्य नेता को पनपने का अवसर नहीं मिला। राव राजा बीरेंद्र सिंह और राव इंद्रजीत सिंह ने अपने सामने किसी को उभरने ही नहीं दिया। इस पीड़ा का दंश स्वयं उनके अनुज राव अजीत सिंह तथा राव यादवेंद्र सिंह ने भी झेला। राव अजीत सिंह तो चुनाव में कभी विजेता नहीं बन पाए। राव यादवेंद्र सिंह को स्वयं राव इंद्रजीत सिंह ने विधानसभा चुनाव लड़वाया था, पर जब वह उन्हें छोड़कर उनके प्रतिद्वंदी भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पाले में चले गए तो उन्होंने उन्हें भी घर बैठा दिया। 

राव इंद्रजीत सिंह कोपभाजन का शिकार संतोष यादव, विक्रम यादव ठेकेदार, रणधीर सिंह कापड़ीवास, डॉक्टर बनवारी लाल जैसे प्रमुख नेता रहे। इस बार काफी जोर लगाने के बावजूद नांगल चौधरी से डॉक्टर अभय सिंह को भी उनके विरोध के कारण मात खानी पड़ी। यही स्थिति विपक्षी पार्टी कांग्रेस से लोकसभा चुनाव में राव दान सिंह के साथ भी रही। भिवानी महेंद्रगढ़ लोकसभा क्षेत्र से अटेली, नारनौल, नांगल चौधरी तथा महेंद्रगढ़ से कांग्रेस प्रत्याशी को करारी से शिकस्त मिली थी। 

राव बीरेंद्र सिंह की विरासत

फरवरी में डाक विभाग की ओर से राव बीरेंद्र सिंह की याद में एक डाक टिकट जारी किया गया था। इस अवसर पर, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने राव बीरेंद्र सिंह को “जनता के लोकप्रिय नेता के रूप में वर्णित किया, जिन्होंने हमेशा लोगों, विशेष रूप से समाज के कमजोर वर्गों के मुद्दों का समर्थन किया और राष्ट्र निर्माण में बहुत योगदान दिया।”

राव बीरेंद्र सिंह, पंडित भगवत दयाल शर्मा के स्थान पर हरियाणा के दूसरे मुख्यमंत्री बने थे। हालांकि वह 24 मार्च, 1967 से 2 नवंबर, 1967 तक ही इस पद पर रह पाए। स्वतंत्रता सेनानी राव तुला राम के वंशज, राव बीरेंद्र सिंह ने अंग्रेजों की सेवा की थी 1939 से 1947 तक भारतीय सेना में कैप्टन पद पर काम किया था। 1950 से 1951 तक वह एक कमीशन अधिकारी के रूप में प्रादेशिक सेना में थे।

उनका चुनावी पदार्पण काफी मुश्किल भरा रहा क्योंकि वह 1952 में रेवाड़ी से राव अभय सिंह से हार गये थे। रेवाड़ी तब पंजाब विधानसभा का हिस्सा था। इसके बाद वह 1954 में कांग्रेस में शामिल हो गए और उन्हें अविभाजित पंजाब के लिए विधान परिषद (एमएलसी) के सदस्य के रूप में नामांकित किया गया और 1966 तक लगातार दो कार्यकाल तक पद पर बने रहे।

इस अवधि के दौरान, वह प्रताप सिंह कैरों सरकार में पीडब्ल्यूडी, सिंचाई, बिजली, राजस्व और चकबंदी जैसे कई महत्वपूर्ण मंत्रालयों के मंत्री रहे। इस समय राव बीरेंद्र सिंह उन नेताओं में से थे जिन्होंने लगातार अलग हरियाणा राज्य की मांग उठाई।

नवंबर 1966 में पंजाब से अलग होकर हरियाणा बनने के बाद, पंडित भगवत दयाल शर्मा पहले मुख्यमंत्री बने और राव बीरेंद्र सिंह नवगठित राज्य के पहले स्पीकर बने।

1967 में हरियाणा के लिए हुए पहले विधानसभा चुनाव में राव बीरेंद्र सिंह पटौदी से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुने गए। हालांकि, उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और अपनी विशाल हरियाणा पार्टी की स्थापना की।

उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण समय तब आया जब उन्हें 24 मार्च, 1967 को राज्य का दूसरा मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया। लेकिन नवंबर 1967 में, विधानसभा भंग कर दी गई और हरियाणा में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।

राज्यपाल बी.एन. चक्रवर्ती ने राव बीरेंद्र सिंह की सरकार को बर्खास्त कर दिया था क्योंकि उन्हें पता चला था कि दो विधायकों ने दो बार कांग्रेस और विशाल हरियाणा पार्टी के साथ पाला बदल लिया था। यह वह साल था जब हरियाणा में पहली बार एक ऐसी संस्कृति का आगमन हुआ, जिसमें निर्वाचित प्रतिनिधियों ने तत्परता के साथ अपनी वफादारी बदल ली – जो कि ‘आया राम, गया राम’ वाक्यांश में समाहित है, जिसे किसी और ने नहीं बल्कि राव बीरेंद्र सिंह ने गढ़ा था, जो खुद इसके शिकार हुए थे।

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