हारे कांग्रेस उम्मीदवार ने कहा- दीपेंद्र के लोगों ने मेरे खिलाफ प्रचार किया, भूपेंद्र हुड्डा ने मेरे लिए वोट नहीं मांगे

असल कारणों पर कोई बोलना नहीं चाहता, जिला और बूथ स्तर की कांग्रेस कमेटियां नदारद?

अशोक कुमार कौशिक 

कांग्रेस की हार की जांच कर रही कमेटी का मानना है कि टिकट के बहुत अधिक दावेदार, पार्टी के अंदर चल रही गुटों के बीच साजिश, राज्य में बड़े नेताओं की रैलियों के बारे में आम जनता में जानकारी का अभाव और भाजपा की जाट विरोधी वोटों के ध्रुवीकरण में सफलता ही पार्टी की हार के असली कारण रहे। 

कमेटी राज्य में हारे हुए प्रत्याशियों से बातचीत करके अगर कुछ ऐसे ही निष्कर्षों पर पहुंची है तो ये सतही निष्कर्ष ही साबित होंगे। क्या सिर्फ यही कारण थे, जिसके चलते कांग्रेस हरियाणा में बीजेपी के प्रति नाराजगी का लाभ नहीं उठा पाई। कमेटी को जो कारण बताए जा रहे हैं यह जरूरी कारणों को दरकिनार करने की एक साजिश की तरह है। कांग्रेस हो या कोई भी राजनीतिक दल आजकल सत्य सामने नहीं लाया जाता है। सच सामने लाने वाले को भी अपनी गर्दन प्यारी होती है। जांच करने वाला और गवाही देने वाला दोनों ही जानते हैं कि ऐसे निष्कर्षों का कुछ होना नहीं है। अब तक जितनी जांच रिपोर्ट्स बनीं सभी कहीं कबाड़े में धूल फांक रही हैं। पार्टी में हाईकमान से पंगा लेने की किसी में नहीं होती है। आखिर जब रहना इसी दल में है तो जल में रहकर मगरमच्छ से बैर करने की जरूरत ही क्या है?

हरियाणा में कांग्रेस की हार के बाद अब पार्टी नेताओं की लड़ाई खुलकर सामने आने लगी है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और रोहतक से सांसद उनके बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा पार्टी में विरोधियों के निशाने पर हैं। बता दे कि जीत की तमाम उम्मीदों के बाद भी हरियाणा में कांग्रेस को हार मिली है। इस हार के बाद कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व सकते में है और पार्टी ने हार के लिए जिम्मेदार नेताओं और कारणों की खोज शुरू की है।

हरियाणा के विधानसभा चुनाव में तमाम विपरीत हालात के बाद भी बीजेपी ने जीत हासिल की है और लगातार तीसरी बार सरकार बनाई है। पार्टी ने एक बार फिर नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया है और नई सरकार ने शपथ लेकर कामकाज भी शुरू कर दिया है। सैनी के साथ 13 मंत्रियों ने शपथ ली है। कांग्रेस पार्टी को उम्मीद थी कि वह भाजपा को सत्ता से बेदखल कर देगी, लेकिन वह 90 में से केवल 37 विधानसभा सीटें ही जीत सकी। कमेटी के समक्ष कांग्रेस के उम्मीदवारों ने चुनाव में हारने के जिन कारणों को गिनाया वो हैरान करने वाले थे।

कांग्रेस ने हार के कारणों की तलाश के लिए छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और राजस्थान के विधायक हरीश चौधरी की दो सदस्यों की कमेटी बनाई है। इस कमेटी का काम है कि वह विधानसभा चुनाव लड़े कांग्रेस के उम्मीदवारों से फीडबैक ले और हाईकमान को अपनी रिपोर्ट दे।

विधानसभा चुनाव में हार का सामना करने वाले कांग्रेस के एक उम्मीदवार ने बताया कि उन्होंने कमेटी के सदस्यों से फोन पर बातचीत की। उम्मीदवार ने कहा, “मैंने कमेटी को बताया कि दीपेंद्र सिंह हुड्डा के खेमे के लोगों ने मेरे खिलाफ खुलकर प्रचार किया और लोगों से कहा कि मुझे जीतने नहीं देना है।” कांग्रेस उम्मीदवार ने कमेटी को बताया कि जाट समुदाय के खिलाफ किए गए ध्रुवीकरण से बीजेपी को फायदा हुआ।

कांग्रेस उम्मीदवार के मुताबिक, उन्होंने कमेटी के सदस्यों को बताया कि उन्हें विधानसभा चुनाव में इसलिए नुकसान हुआ क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने पार्टी के मंच से तब भी उनके लिए वोट नहीं मांगे जब लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी खुद मंच पर मौजूद थे।

उम्मीदवार के मुताबिक, उनकी विधानसभा सीट पर जाट समुदाय के बीच ऐसा नैरेटिव था कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा उनका समर्थन नहीं कर रहे थे और इस वजह से उन्हें जाट समुदाय के वोट नहीं मिले और वह चुनाव हार गये।

चुनाव हारने वाले कांग्रेस के एक उम्मीदवार ने कहा कि चुनाव के दौरान हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी (पीसीसी) की जमीन पर मौजूदगी नहीं दिखाई दी और यह भी हार की एक बड़ी वजह है।

प्रदेश कांग्रेस कमेटी पर आरोप

एक अन्य उम्मीदवार जो चुनाव हार गया था उसने बताया कि राज्य में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के कार्यक्रमों के बारे में किसी को पता नहीं होता था। इन नेताओं के आगमन के बारे में आम लोगों तक बात ही नहीं पहुंच पाती थी।

एक अन्य कांग्रेस उम्मीदवार, जिसने चुनाव में हार का सामना किया ने हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी पर हार का ठीकरा फोड़ दिया। उसका कहना था कि मैंने बघेल जी और चौधरी जी को बताया कि चुनाव के दौरान पीसीसी के लोगों से संपर्क नहीं हो पा रहा था। वे आम लोगों को सुलभ नहीं थे, यहां तक कि फोन पर भी बात करना मुश्किल था। एआईसीसी के नेता राज्य नेतृत्व की तुलना में अधिक सुलभ थे।

अनिता यादव, जो अटेली से भाजपा की आरती सिंह राव व बसपा प्रत्याशी अतरलाल से हार गईं, ने भी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) और स्थानीय प्रशासन के दबाव को हार का कारण बताती हैं। ईवीएम में 99% बैटरी कैसे हो सकती है जब उन्हें कई दिनों तक इस्तेमाल किया गया हो? चुनाव प्रचार के दौरान हमारे समर्थकों पर स्थानीय प्रशासन द्वारा भी दबाव डाला गया था।

खींचतान भी बनी हार की वजह

हरियाणा के विधानसभा चुनाव में नतीजों के बाद कांग्रेस की हार को लेकर जो खबरें सामने आ रही हैं, उनके मुताबिक पार्टी नेताओं के बीच खींचतान होना भी हार की एक बड़ी वजह रही है। चुनाव प्रचार के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और सिरसा से सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा के बीच खींचतान साफ दिखाई दी थी। कुमारी शैलजा चुनाव प्रचार से कई दिन तक गैर हाजिर रही थीं।

दरअसल जो भी बातें सामने आ रही हैं अगर कांग्रेस इन बातों के आधार पर विश्लेषण करेंगी तो उसे कभी भी जीत हासिल नहीं हो सकेगी। उपरोक्त सभी बातें सभी पार्टियों में होती हैं। बीजेपी में भी आपसी गुटबाजी कम नहीं है। बीजेपी में तो सीएम तक को गुटबाजी के चलते पसंदीदा सीट नहीं मिल सकी। वहां भी एक सीट पर टिकट के लिए मारामारी कांग्रेस से कम नहीं था। कांग्रेस ने भी बीजेपी के खिलाफ दलितों के वोट ध्रुवीकरण के लिए काफी कहांनियां गढ़ीं थीं। इसमें कोई नई बात नहीं थी।

सियासी हमले झेल रहे हुड्डा

विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद भूपेंद्र सिंह हुड्डा शैलजा गुट के निशाने पर हैं। चुनाव नतीजों के बाद कुमारी शैलजा के अलावा शमशेर सिंह गोगी, परविंदर सिंह परी और राज्य पार्टी की ओबीसी विंग के अध्यक्ष कैप्टन अजय सिंह यादव समेत कई वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं ने पार्टी की हार के लिए हुड्डा और उनके बेटे और सांसद दीपेंद्र हुड्डा को खुले तौर पर जिम्मेदार ठहराया।

कैप्टन अजय यादव ने छोड़ी पार्टी

कांग्रेस की ओबीसी विंग के राष्ट्रीय अध्यक्ष और हरियाणा की सियासत के बड़े नेता कैप्टन अजय सिंह यादव ने नतीजों के बाद कांग्रेस को अलविदा कह दिया है। अजय यादव का लंबे वक्त से पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ 36 का आंकड़ा चल रहा था। विधानसभा चुनाव में हार के बाद भी यादव काफी मुखर रहे थे।

असली मुद्दे हवा हवाई, क्‍या राहुल को बचाने की कवायद है

दरअसल असल कारणों पर कोई बोलना नहीं चाहता है। प्रदेश में एक दशक से जिला स्तर की और बूथ स्तर की कांग्रेस कमेटियां नदारद रहीं। किसी शहर में एक बहुत बड़ा शो रूम खोल दिया जाए। माल भी भर दिया। गोदामों में जब तक अच्छे एजेंट नहीं होंगे, न शोरूम तक कोई पहुंचेगा और न ही सामान बिकेगा। कांग्रेस के साथ भी यही हाल हुआ। शोरूम तो खुल गए पर घर घर पहुंचने वाले एजेंट गायब थे। दूसरे अगर प्रदेश कांग्रेस कमेटी ठीक से काम नहीं कर रही थी। हुड्डा अपनी चला रहे थे तो हाईकमान क्या कर रहा था? क्या केंद्रीय नेतृत्व में कोई राहुल गांधी का नाम भी लेगा? या राहुल गांधी को बचाने के लिए हुड्डा पिता-पुत्र की बलि दे दी जाएगी। हुड्डा पिता-पुत्र नहीं होते कांग्रेस को 37 सीट भी नहीं मिलती।

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