-कमलेश भारतीय

क्या हरियाणा प्रदेश कांग्रेस के पास जीत को हार में बदलने का कोई मंत्र है ? यह मैं नहीं बल्कि शिवसेना (उद्धव ठाकरे) के मुखपत्र ‘सामना’ के संपादकीय में लिखा है कि कांग्रेस जीत को हार में बदलने का मंत्र जानती है । हरियाणा प्रदेश कांग्रेस ने यह करिश्मा कर दिखाया है । हरियाणा की हार से कांग्रेस को सीख और सबक लेने की जरूरत है । हार कांग्रेस के अतिविश्वास और राज्य के कांग्रेस नेताओं के अहंकार में डूबे होने का परिणाम है । नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने गैर जाट मतदाताओं को साथ नहीं लिया, जिसका खामियाजा भुगतना पड़ा कांग्रेस को ! शिवसेना ही नहीं जम्मू कश्मीर की नेशनल‌ कांफ्रेंस के नेता व पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी यही कहा है कि कांग्रेस को हरियाणा में हुई हार के कारणों का पता लगाने के लिए गहराई से सोचने की जरूरत है । मैंने कहा भी था कि हम एग्जिट पोल के भरोसे बैठे नहीं रह सकते बल्कि अपना समय बर्बाद कर रहे हैं और किसी ने यह नहीं सोचा होगा कि एग्जिट पोल इतने गलत भी हो सकते हैं । वहीं तृणमूल कांग्रेस नेता साकेत गोखले ने भी कहा कि अहंकार और क्षेत्रीय दलों को हीन दृष्टि से देखना हार के कारणों में से एक है । केजरीवाल भी अपनी बात कहने से नहीं चूके ।

केजरीवाल ने भी कांग्रेस के अतिविश्वास को ही निशाने पर लेते कहा कि किसी चुनाव को हल्के में नहीं लेना चाहिए । कांग्रेस ने यही किया । आप से आखिरी वक्त तक समझौता नहीं किया जिसके चलते उचाना, रानिया, डबवाली और असंध सीटें खो दी़ं‌, जहां आप पार्टी ने नुकसान पहुंचाया ! सबसे कम अंतर 32 मतों से पूर्व आईएएस अधिकारी बृजेन्द्र सिंह हारे !

कांग्रेस की आश्चर्यजनक हार पर अनेक कारण सामने आ रहे हैं। यह अतिविश्वास और अहंकार दूसरे दलों की नज़र में सबसे बड़े कारण तो हैं, इसके अतिरिक्त कांग्रेस के बड़े नेताओं के बीच गुटबाजी सार्वजनिक हो चुकी थी और ऐन चुनाव के बीच यह गुटबाजी अपना रंग दिखाती रही जब रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि हम तीन यानी मैं, भूपेंद्र सिंह हुड्डा और सैलजा मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं ! सुश्री सैलजा ने भी इस बार नहीं तो कभी नहीं की तर्ज पर मुख्यमंत्री बनने का दावा आखिरी दिन तक जारी रखा और हुड्डा पिता पुत्र पर भाजपा मुख्यमंत्री बनने के लिए सबका कांटा निकालने की बात कहकर आलोचना करती रही ।

जनवरी में लोकसभा चुनाव से पूर्व तक सुश्री सैलजा अलग बस यात्रा पर निकली रहीं तो श्री हुड्डा अलग से कार्यकर्त्ता सम्मलेन आयोजित करते रहे यानी कांग्रेस नेता तू डाल डाल, मैं पात पात की नीति पर चलते रहे । इसी आपसी विरोध और खींचतान के चलते श्रीमती किरण चौधरी का हौंसला टूट गया और वे भाजपा में शामिल होकर राज्यसभा में पहुंच गयीं और अब बेटी श्रुति चौधरी को भी विधानसभा में पहुंचा दिया है । इस तरह आपसी गुटबाजी कांग्रेस को कमज़ोर करती चली गयी और कांग्रेस हाईकमान लगातार सब देखते हुए भी मूकदर्शक बनी रही, एकजुटता की कोई कोशिश नहीं की, जो आत्मघाती साबित हुई । इसलिए जो सामना के संपादकीय में कहा गया अतिविश्वास और अहंकार ने कांग्रेस की जीती हुई बाजी गंवा दी ! यह बहुत दिल को लगने वाली बात है ! बच्चों की तरह राहुल गांधी ने असंध की जनसभा में श्री हुड्डा और सैलजा के हाथ मिलवाये, जो नज़र का धोखा ही साबित हुए जबकि दिल नहीं मिले ! बरवाला में सुश्री सैलजा कांग्रेस प्रत्याशी के चुनाव प्रचार में भी नहीं आईं और यह बात जनता के गले नहीं उतरी ! कांग्रेस का टिकट वितरण भी बहुत आश्चर्यजनक रहा । नलवा से प्रो सम्पत सिंह जैसे वरिष्ठ नेता का टिकट काटना आत्मघाती कदम ही साबित हुआ और अनिल मान हारे । अम्बाला क्षेत्र में लगातार दूसरी बार चित्रा सरवारा की टिकट ही नहीं कटी उन्हें छह साल के लिए निष्कासित भी कर दिया गया । यहां भी जीती बाजी हार दी कांग्रेस ने !

बहादुरगढ़ में जिसे टिकट नहीं दी, वे निर्दलीय चुनाव लड़े और जीतकर भाजपा को समर्थन दे रहे हैं ! ऐसी अनेक सीटें हैं जो गुटबाजी के चलते गलत बंटीं और हार दीं ! सच ही तो कह रह रहे हैं दूसरे दलों के नेता कि जीती हुई बाजी हारना कोई हरियाणा प्रदेश कांग्रेस से सीखे ! वैसे तो फिल्मी डायलॉग है -जो हार कर भी जीते उसे बाजीगर कहते हैं लेकिन कांग्रेस के लिए यह एकदम उलट है कि जो जीती हुई बाजी हार जाये, उसे जनता ही बतायेगी कि क्या कहें? वैसे शायर नसरीन कह रहे हैं :

वो मुल्तफ़ित थे हम ही बयाँ कर सके न हाल
मंज़िल के पास आ के क़दम डगमगा गए!

-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी। 9416047075

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