सत्ता के सिंहासन पर कौन होगा विराजमान भविष्य के गर्भ में राजलीला में जनता पहले भी रही दर्शक और 5 वर्ष भी रहेगी दर्शक राज दरबार में कौन-कौन होंगे शामिल बनी हुई है जिज्ञासा फतह सिंह उजाला गुरुग्राम । रामलीला और राजलीला। इन दोनों में एक घटनाक्रम एक जैसा और महत्वपूर्ण है । यह घटनाक्रम है , वनवास और राजतिलक का। इन दिनों रामलीलाओं का मंचन किया जा रहा है । दूसरी तरफ राजलीला का मंगलवार को विधिवत रूप से आरंभ हो जाएगा । एक चीज और सामान्य है, रामलीला और राजलीला में अपना अपना किरदार निभाने वाले पूरी तरीके पूरे तरीके से सक्रिय बने हुए हैं। रामलीला का मंचन किया जाने के लिए मंच से पर्दा हट चुका है। लेकिन मंगलवार को राजलीला का मंचन आरंभ होने का चुनाव परिणाम के साथ पर्दा भी पूरी तरह से हट जाएगा। राजलीला का महत्व इस बात पर निर्भर रहेगा कि किस पार्टी को दर्शक बनी जनता के द्वारा अपना राज दरबार सजाने का मौका प्रदान किया गया। इसी कड़ी में यह भी देखना महत्वपूर्ण रहेगा की किसको राज दरबार से पूरी तरह बेदखल करते हुए रामलीला मंचन के किरदारों की तरह विपक्ष अथवा विरोधी की भूमिका निभाने की जिम्मेदारी सौंप दी जाएगी। रामलीला का मंचन अनादि काल से धर्म शास्त्रों के मुताबिक सार्वजनिक मंच पर होता आ रहा है।। यही सिलसिला राजलीला के लिए भी बना हुआ है । फिर भी दोनों ही लीलाओं में कहीं ना कहीं अंतर और समानताएं भी हैं। राजनीति में विशेषज्ञों के मुताबिक और गणितज्ञों के मुताबिक पूर्वानुमान लगाकर बहुत कुछ इशारे में या फिर दावे के साथ भी कहा जाता आ रहा है । इसी प्रकार के घटनाक्रम रामलीला के संदर्भ में भी कहे जा सकते हैं । जैसे सबसे बड़ा और प्रमुख उदाहरण है भगवान राम का राजतिलक होते-होते उनका 14 वर्ष के वनवास का आदेश हो गया और यह भगवान राम के द्वारा स्वीकार कर लिया गया । मौजूदा दौर में राजतिलक राजनीति के हालात पर और घटनाक्रम पर अधिक निर्भर करता है। मंगलवार को मतगणना के साथ ही राजलीला का आरंभ होते हुए राजलीला के रहस्य से पटाक्षेप भी आरंभ होना शुरू हो जाएगा । राजलीला के पूर्वानुमान के मुताबिक बहुमत कांग्रेस के पक्ष में ही बताते हुए दावा किया गया है। सवाल यही है कि वर्ष 2024 में आरंभ होने वाली राजलीला के राज दरबार में राजतिलक किसके भाग्य में लिखा है ? इसके साथ ही राज दरबार में कौन-कौन लोग अथवा जनता के चुने हुए जनप्रतिनिधि शामिल हो सकेंगे। इस बात को लेकर भी लोगों में अभी से जिज्ञासा बनी हुई है । अनादि काल में राजा महाराजाओं के दरबार में भी कहीं ना कहीं दरबारी अथवा मंत्री की संख्या सीमित रहा करती थी । बदलते समय और राजनीतिक हालात में भी अब राज दरबार में राज दरबारी की संख्या सीमित कर दी गई है । ऐसे में राज दरबार में मंत्री बने रहने के लिए या फिर मंत्री बनने के लिए भी अलग से अपनी दावेदारी प्रस्तुत करते हुए शक्ति प्रदर्शन विभिन्न माध्यम से दावेदारी को मजबूत बनाने के लिए किया जाता है । सीधी और सरल बात यही है कि मंगलवार को हरियाणा की राजनीति की राजलीला आरंभ हो जाएगी और राज दरबार में किसके सिर पर ताज होगा या फिर राज दरबार का कौन मुख्यमंत्री होगा ? इसके लिए कई नाम पर चर्चा चल रही है । लेकिन यह भी अभी फिलहाल भविष्य के गर्भ में ही है । अभी तक जो राज सत्ता में रहे वह मंगलवार से विरोधी अथवा विपक्ष की भूमिका में दिखाई देने लगेंगे । इसके बीच में एक जो सामान्य चीज और बात रहेगी , वह है जनता जनार्दन जो की पहले भी दर्शक की भूमिका में रही और अब 5 वर्ष तक भी दर्शक की भूमिका में ही रहने से इनकार नहीं किया जा सकता । रामलीला का मंचन भी कुछ ना कुछ शिक्षा देता आ रहा है और राजलीला के मंच से कोई ना कोई नई सीख अथवा शिक्षा किसी ने किसी रूप स्वरूप में मिलती चली आ रही है । इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। Post navigation दिव्यांग जन व बुजुर्ग मतदाताओं का सहारा बने रेड क्रॉस के सदस्य कालोनियों में सीवरेज की समस्याओं का करवाया समाधान नवीन गोयल ने