-कमलेश भारतीय

देश के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक तिरुपति बालाजी अर्पित किये जाने वाले लड्डुओं में घटिया सामग्री और प्रतिबंधित पशु के मांस की चर्बी के कथित उपयोग को लेकर विवाद उठ खड़ा हुआ है । सत्तारूढ़ तेलुगु देशम पार्टी ने दावा किया है कि गुजरात स्थित पशुधन प्रयोगशाला द्वारा इस मिलावट की पुष्टि की गयी है । इसकी रिपोर्ट भी तेलुगु देशम के प्रवक्ता ने दिखाई है । इस पर आंध्र प्रदेश सरकार या श्री वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर के प्रबंधन ने अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है !

इस तरह भगवान् के प्रसाद पर विवाद शुरू हो गया है । वैसे ये लड्डू हमने भी भारत यात्रा के दौरान खाये हैं, अब यह तो याद नहीं कि स्वाद कैसा रहा होगा?

वैसे मंदिरों के चढ़ावे के अनेक किस्से हैं जो समय समय पर सामने आते रहते हैं। कभी हिमाचल के ज्वालाजी मंदिर में बचपन के दिनों में तिलक लगाकर बकरे को कुर्बान होते देखा था तो मन बहुत बेचैन सा होता रहा वहां से लौटकर भी ! अब सिर प्रतीक स्वरूप ही अर्पण किया जाता है, बलि नहीं दी जाती, यह देखकर मन गद्गद हो गया था, अभी इसी वर्ष पहले जाने पर ! यह परंपरा सही नहीं कि अपनी खुशी के लिए किसी मासूम जीव की जान ही ले लो !

फिर एक और प्रसाद बड़ी चर्चा में रहता है कि काली माता की मूर्ति के चरणों में शराब चढ़ा दो ! यह कैसा प्रसाद? ऐसा प्रसाद क्यों? किसलिए? किस काम का? क्या अपनी तलब पूरी करने के लिए इसे प्रसाद का नाम दिया जा रहा है? यह प्रसाद के रूप में भेंट बंद होनी चाहिए, जहां कहीं भी प्रचलन में है तो इसे बंद किया जाये ! प्रसाद तो बूंदी का भी हो सकता है या घर से बनाकर हलवा अर्पित किया जा सकता है, फिर चर्बी वाले लड्डू ही क्यों? और यह व्यवस्था मंदिर प्रबंधन की ओर से ही होती है। वहीं ये लड्डू खरीदे जाते हैं, बाहर कोई दुकान नहीं है तिरुपति बालाजी के मंदिर में ! पहले लाइन में लगकर प्रसाद खरीदो, फिर चढ़ाओ और फिर भोग खाओ ! अब इस भोग के लड्डुओं में क्या है, यह कौन जानता है ! ये परंपरा यें बदलनी चाहिएं ।

अब तो इस तालाब का पानी बदल दो इसके कमल के फूल मुर्झाने लगे हैं!!
-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी । 9416047075

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