मौजूदा 14वीं हरियाणा विधानसभा को तत्काल भंग करके ही टाला जा सकता है प्रदेश में संवैधानिक संकट !

वर्तमान चुनावी माहौल में 12 सितम्बर तक  विधानसभा सत्र बुलाना व्यवहारिक नहीं 

सुप्रीम कोर्ट के वर्ष 2002  निर्णयानुसार समय पूर्व भंग हुई विधानसभा के मामले में 6 महीने के भीतर अगला सत्र बुलाने की संवैधानिक अनिवार्यता लागू नहीं  — एडवोकेट हेमंत 

आज 11 सितम्बर को हरियाणा कैबिनेट की बैठक में लिया जा सकता है निर्णय 

चंडीगढ़ – गुरूवार  12 सितम्बर‌ तक  मौजूदा 14‌वीं हरियाणा विधानसभा‌ का सत्र बुलाना  संवैधानिक तौर पर अनिवार्य‌  है बेशक ‌गत माह  16 अगस्त को  भारतीय चुनाव आयोग द्वारा  15 वीं हरियाणा विधानसभा के  आम चुनाव कार्यक्रम की  घोषणा हो गई थी  जिससे तत्काल प्रभाव से पूरे प्रदेश में आदर्श आचार संहिता भी लागू हो गई. अगर ऐसा नहीं किया जाता है, तो प्रदेश में अभूतपूर्व  संवैधानिक संकट उत्पन्न हो जाएगा. 

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के एडवोकेट और विधायी एवं संवैधानिक मामलों के जानकार  हेमंत कुमार (9416887788) ने गत माह   एक ज्ञापन याचिका  भारत की महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमन्त्री  नरेन्द्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, प्रदेश के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय और मुख्यमंत्री नायब सैनी को भेजी थी  जिसमें  उन्होंने  भारत देश  के संविधान के अनुच्छेद 174(1) का हवाला देते हुए लिखा  कि चूँकि मौजूदा 14वी हरियाणा विधानसभा, जिसका कार्यकाल  3 नवम्बर 2024 तक है, एवं जिसका पिछला एक दिन का विशेष सत्र साढ़े  5 माह पूर्व 13 मार्च 2024 को बुलाया गया था, जिसमें प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री नायब सैनी ने प्रदेश में सत्ता संभालने के उपरान्त   सदन में  विश्वास मत हासिल किया था, इसलिए भारत के संविधान के उक्त अनुच्छेद 174(1) की सख्त  अनुपालना  में मौजूदा  प्रदेश विधानसभा का एक सत्र, बेशक वह एक दिन या आधे दिन  की अवधि  का ही  हो, वह आगामी 12 सितम्बर 2024 तक  बुलाना  अनिवार्य है क्योंकि उक्त अनुच्छेद में  स्पष्ट उल्लेख है कि विधानसभा  सदन के  दो सत्रों के मध्य और यदि विस्तार से कहा जाए तो पिछले सदन की अंतिम बैठक और अगले सत्र की प्रथम बैठक के बीच 6 महीने का अंतराल (अंतर) नहीं होना चाहिए.

हेमंत ने  बताया कि बेशक गत माह  चुनाव आयोग द्वारा  15वी हरियाणा विधानसभा के गठन के लिए आम चुनाव की घोषणा कर दी गई थी  परन्तु  इसके बावजूद 12 सितम्बर तक  वर्तमान 14 वीं प्रदेश विधानसभा‌ का सत्र बुलाने‌ में कोई कानूनी अथवा वर्तमान में पूरे  प्रदेश में लागू  आदर्श आचार संहिता  के फलस्वरूप कोई   अवरोध नहीं है चूँकि ऐसा करना संवैधानिक अनिवार्यता है, इसलिए इस सम्बन्ध में चुनाव आयोग द्वारा भी कोई रोक नहीं लगाई जा सकती है.   

यही नहीं  चार वर्ष पूर्व  वर्ष  2020 में जब हरियाणा सहित समस्त  देश एवं विश्व में कोरोना वैश्विक महामारी व्याप्त थी  एवं लॉकडाउन के हालत थे, तब भी  भारतीय संविधान के अनुच्छेद 174(1) की  अनुपालना के दृष्टिगत  एक दिन अर्थात  26 अगस्त 2020 को मोजूदा 14 वी हरियाणा विधानसभा का सत्र बुलाना पड़ा था. 

बहरहाल, जहाँ तक हरियाणा विधानसभा का  सत्र 12 सितम्बर से तक बुलाने के सम्बन्ध में  और उसकी वास्तविक तारीख तय  करने  का विषय है, तो इस विषय  सदन  के नेता अर्थात प्रदेश के मुख्यमंत्री नायब सैनी की अध्यक्षता में प्रदेश कैबिनेट द्वारा ही  निर्णय लिया जा सकता है हालांकि उसके बाद सदन बुलाने बारे   वांछित आदेश राज्यपाल के हस्ताक्षर से ही जारी किया जाता है. गौरतलब है कि गत माह  17 अगस्त  को सम्पन्न  हरियाणा कैबिनेट की पिछली  बैठक में इस विषय पर हालांकि कोई फैसला नहीं लिया गया था.

 यह पूछे जाने पर कि  क्या ऐसा कोई  संवैधानिक रास्ता‌ है जिससे  12 सितम्बर‌ तक  हरियाणा की मौजूदा नायब‌ सिंह सैनी सरकार को वर्तमान 14 वीं हरियाणा विधानसभा‌ का आगामी अर्थात मानसून सत्र बुलाने से छूट मिल सके, इस बारे में हेमंत का कानूनी मत‌  है कि अगर 12 सितम्बर‌ से पूर्व प्रदेश‌ कैबिनेट  की सिफारिश पर‌ प्रदेश के राज्यपाल द्वारा मौजूदा 14 वीं  प्रदेश विधानसभा‌ को  समयपूर्व भंग कर दिया जाता है, तो‌‌ आगामी सत्र बुलाने की आवश्यकता नहीं  होगी.  उन्होंने‌‌ इस बारे में ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌ वर्ष 2002 के सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय का हवाला देते हुए बताया कि  सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्पष्ट किया गया जा चुका है कि समयपूर्व भंग हुई विधानसभा‌ के मामले में 6 महीने में अगला  सत्र बुलाने की संवैधानिक अनिवार्यता नहीं होती है.

 बुधवार 11 अगस्त को हरियाणा मंत्रिपरिषद की बुलाई बैठक में मौजूदा 14वीं हरियाणा विधानसभा को समय पूर्व भंग करने का नायब सैनी सरकार द्वारा निर्णय लिया जा सकता है जिसके बाद  प्रदेश के राज्यपाल की स्वीकृति मिलने के बाद वर्तमान विधानसभा आधिकारिक एवं औपचारिक रूप से भंग हो जाएगी हालांकि राज्यपाल मुख्यमंत्री ( एवं मंत्रिपरिषद के सदस्यों) को मौजूदा जारी  चुनाव प्रक्रिया  सम्पन्न होने एवं अगली सरकार का गठन होने तक  कार्यवाहक मुख्यमंत्री के तौर पर बने रहे को कह सकते हैं. 

गत माह  प्रदेश सरकार द्वारा हरियाणा के राज्यपाल से कुल 5 अध्यादेश (आर्डिनेंस) भारत के संविधान के अनुच्छेद 213(1) में  प्रख्यापित (जारी)  करवाए गये जिसमें प्रदेश में कॉन्ट्रैक्ट (संविदा ) आधार पर कार्यरत कर्मचारियों को सेवा में सुरक्षा प्रदान करने बारे एक  अध्यादेश, प्रदेश के नगर निकायों (नगर निगमों, नगर परिषदों और नगरपालिका समितियों) और पंचायती राज संस्थाओं में पिछड़ा वर्ग ब्लाक बी के व्यक्तियों को आरक्षण प्रदान करने बारे कुल तीन अध्यादेश और हरियाणा शामलात (सांझा) भूमि विनियमन (संशोधन) अध्यादेश शामिल है. हेमंत  ने बताया कि अगर मौजूदा 14 वीं हरियाणा विधानसभा का अगला सत्र  12 सितम्बर तक  बुलाया जाता है, तो उस सत्र में उपरोक्त पाँचों अध्यादेश  प्रदेश सरकार द्वारा  विधेयक के तौर पर सदन में पेश करना अनिवार्य होगा जिसके बाद सदन चाहे  उन्हें पारित कर सकता है. अगर किसी भी कारण‌ से ऐसा नहीं हो‌‌ पाता है, तो‌ उस परिस्थिति में उनकी  वैधता उस सत्र  की  तारीख से केवल 6 सप्ताह तक ही रहेगी. बहरहाल, अगर 14 वीं हरियाणा विधानसभा को 12 सितम्बर तक  भंग कर दिया जाता है, तो‌ ऐसा होने से उपरोक्त पांचों  अध्यादेश की वैधता पर कोई असर नहीं पड़ेगा.  आगामी माह 8 अक्टूबर को  हरियाणा  विधानसभा आम चुनाव के नतीजे घोषित होने के बाद  बाद प्रदेश में बनने वाली  नई सरकार द्वारा 15वीं   विधानसभा के बुलाए गए पहले  सत्र में उक्त 5 अध्यादेश को  विधेयक के तौर पर पारित करने के लिए प्रदेश की  नई सरकार द्वारा नए सदन में  पेश किया जा सकता  है. 

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