राजनीतिक हाशिये पर जा रहे हरियाणा दिग्गजों के परिवार 

अशोक कुमार कौशिक 

राजनीति भी अजब खेल है. दशकों तक हरियाणा में सत्ता-राजनीति के केंद्र रहे तीनों चर्चित लालों यानी बंसीलाल, देवीलाल, भजनलाल और राव बीरेंद्र सिंह के परिवार इस विधानसभा चुनाव में हाशिये पर हैं। 

एक नवंबर, 1966 को पृथक राज्य बने हरियाणा की राजनीति में दशकों तक इन तीन लालों की तूती बोलती रही। तब उन राजनीतिक दिग्गजों के बिना कोई भी दल हरियाणा में राजनीति करने की सोच भी नहीं सकता था, पर अब जबकि हरियाणा के मतदाता अपनी नई विधानसभा और सरकार चुनने के लिए पांच अक्तूबर, 2024 को वोट डालने जा रहे हैं तो उन लाल परिवारों के परिजन सत्ता-राजनीति की मुख्य धारा से दूर हाशिये पर नजर आ रहे हैं। बेशक तीनों लालों व राव राजा ने अपनी राजनीति की शुरुआत कांग्रेस से ही की थी, लेकिन चारों ने ही कांग्रेस छोड़ी भी।

तथ्य यह भी है कि पिछले दस साल से हरियाणा में सत्तारूढ़ भाजपा देवीलाल और बंसीलाल के दल के साथ गठबंधन कर राजनीति करती रही, लेकिन पिछले एक दशक में तीनों ही लाल परिवार उसका कमल थामे नजर आए। जो परिवार हरियाणा में लोगों को नेता बनाते थे, आज उनकी राजनीति अपने लिए टिकट की जोड़तोड़ तक सिमट कर रह गई है।

भूपेंद्र सिंह हुड्डा से लंबी तनातनी के बाद किरण चौधरी को आखिरकार भाजपा की शरण में जाना पड़ा, जिसने उन्हें राज्यसभा सांसद बनाने के बाद अब बेटी श्रुति चौधरी को तोशाम से विधानसभा का टिकट भी दे दिया है। इसी साल हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने श्रुति को भिवानी-महेंद्रगढ़ से टिकट नहीं दिया था, जबकि वे वहां से सांसद रह चुकी हैं।

भजनलाल के बड़े बेटे चंद्रमोहन की राजनीति पंचकुला और कालका विधानसभा सीट तक सिमट कर रह गई है। छोटे बेटे कुलदीप बिश्नोई का पूरा ध्यान बेटे भव्य को राजनीतिक रूप से स्थापित करने पर है। कोशिशों के बावजूद वह न भव्य को मंत्री बनवा पाए और न ही खुद राज्यसभा सांसद बन पाए।

बेशक आदमपुर से भव्य के अलावा भी इस बार भाजपा ने कुलदीप के कहने पर फतेहाबाद से डूडाराम और नलवा से रणधीर पनिहार को भी टिकट दे दी है, लेकिन कभी ‘दाता’ की हैसियत में रहा भजनलाल परिवार भी अब ‘याचक’ की मुद्रा में आ गया है। देवीलाल परिवार की कहानी कुछ अलग है। उसके सदस्य दो अलग-अलग दल चला रहे हैं।

ओमप्रकाश चौटाला अपने छोटे बेटे अभय के साथ मिल कर इनेलो चला रहे हैं तो बड़े बेटे अजय अपने दोनों बेटों दुष्यंत और दिग्विजय के साथ मिल कर जजपा। इन दलों की राजनीतिक हैसियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इनेलो को मायावती की बसपा से गठबंधन करना पड़ा है तो जजपा को उनके धुर विरोधी चंद्रशेखर रावण की आजाद समाज पार्टी से। समझना मुश्किल नहीं होना चाहिए कि इनेलो और जजपा, दोनों ही खुद को हरियाणा की राजनीति में प्रासंगिक बनाए रखने की कोशिश कर रही हैं।

बात करते हैं दक्षिणी हरियाणा के दिग्गज परिवार रामपुरा हाउस की। एक समय था जब राव तुलाराम के वंशज राव बीरेंद्र सिंह कि दक्षिणी हरियाणा में तूती बोलती थी। उन्होंने कांग्रेस से जुदा होकर विशाल हरियाणा पार्टी का गठन किया। वह हरियाणा के दूसरे मुख्यमंत्री रहे। आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी सत्ता से बेदखल हो गई थी। बताते हैं कि इंदिरा गांधी राव बीरेंद्र सिंह से मिलने के लिए चप्पलों में ही आ गई थी। उसके बाद राव बीरेंद्र सिंह ने दोबारा कांग्रेस में एंट्री की।

राव बीरेंद्र के बाद उनके बड़े पुत्र चुनाव इंद्रजीत सिंह ने न केवल विधानसभा चुनाव जीते अभी तो लोकसभा चुनाव की जीते। इस समय वह गुरुग्राम सीट से छठी बार सांसद बने हैं। उन्होंने अपने छोटे भाई यादवेंद्र सिंह को कोसली से दो बार विधायक बनाया पर भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने उनको तोड़ दिया और अपने गुट में शामिल कर लिया। भुपेंद्र सिंह हुड्डा से खपा होकर 2014 में रविंदरजीत सिंह ने भारतीय जनता पार्टी को ज्वाइन कर लिया। वर्तमान में इस परिवार की स्थिति है कि उनके अलावा इस परिवार से कोई दूसरा सदस्य राजनीति में विधायक या सांसद नहीं है। इस बार अटेली विधानसभा से उन्होंने अपनी पुत्री को राजनीतिक विरासत रोकने के लिए भाजपा की टिकट पर बड़ी मशक्कत से उतारा है। अहीरों में ‘ताज’ समझे जाने वाला यह परिवार अब मोदी परिवार में बदल गया है।

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